बीते 29 जुलाई को दिल्ली के कंस्टीच्यूशन क्लब सभागार में जातिगत जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक करने के सवाल पर ‘प्रथम प्रवक्ता’ के संपादक सह दक्षिणपंथी विचारक व इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय और इंडिया टुडे (हिंदी) के पूर्व प्रबंध संपादक दिलीप मंडल आमने-सामने दिखे। वहीं इस मौके पर पूर्व सांसद शरद यादव ने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट के महत्व को विस्तारपूर्वक उल्लेखित किया तथा यह भी कहा कि षडयंत्र के तहत इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है।
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जनहित अभियान के तत्वावधान में आयोजित ‘जाति जनगणना : लोकतंत्र और संपूर्ण न्याय’ विषयक सम्मेलन में रामबहादुर राय ने जातिगत जनगणना के संदर्भ में मनमोहन सिंह एवं कांग्रेस को कटघरे में खड़ा किया। उनका कहना था कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार ने 2011 में जाति जनगणना के प्रश्न पर देश को गुमराह किया। जाति जनगणना के नाम पर स्वयं सेवी संस्थाओं को धन मुहैया कराया गया, लेकिन हुआ कुछ नहीं। बाद में इसके लिए केंद्र सरकार ने नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगड़िया की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई। उस कमेटी ने इस जनगणना उपयोगी नहीं पाया।
वहीं दिलीप मंडल ने रामबहादुर राय के कथन को खारिज करते हुए कहा कि जिस कमेटी की चर्चा की जा रही है, उसकी कोई बैठक ही नहीं हुई। उन्होंने कहा कि भाजपा-कांग्रेस दोनों पार्टियां जाति जनगणना के खिलाफ हैं। जाति जनगणना से यह पता चलेगा कि वे कौन मुट्ठीभर जातियां हैं, जो ज्यादा पा रही और ज्यादा खा रही हैंं, जिसके चलते बहुसंख्यक जातियां वंचना का शिकार हैं।
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अपने अध्यक्षीय संबोधन में पूर्व सांसद शरद यादव ने कहा कि 2011 में देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में जाति जनगणना पर पूर्ण सहमति बन चुकी है। जानबूझकर इस प्रक्रिया को रोक कर रखा गया है। उन्होंने कहा कि हम भी जानते हैं कि जाति जनगणना का उद्देश्य सामाजिक-आर्थिक हैसियत के अनुसार परिवारों का बंटवारा करना है। दूसरा, ऐसा विश्वसनीय आंकड़ा जुटाना, जिससे देश में जाति आधारित गिनती की जा सके और तीसरा सामाजिक समूहों की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति के बारे में आंकड़ा जुटाना। उन्होंंने कहा कि सामाजिक न्याय और लोकतंत्र के लिए जाति जनगणना जरूरी है। उन्होंने कहा कि इससे यह पता चल जायेगा कि संसाधनों और नौकरियों पर किस जाति का कितना कब्जा है।
वहीं पत्रकार उर्मिलेश ने कहा कि जाति जनगणना को बहुजनों के व्यापक हितों के संदर्भ देखा जाना चाहिए। उन्होंन जोर देकर कहा कि बहुजनों को डॉ. आंबेडकर की किताब ‘जाति का विनाश’ और मंडल कमीशन की रिपोर्ट जरूर पढ़नी चाहिए। यह दोनों चीजें हमें बहुजन की हकीकत से रूबरू कराती हैं और बताती हैं कि किस कदर देश के संसाधनों पर सवर्णों का कब्जा है। उन्होंने कहा कि ‘जाति का विनाश’ किताब हर बहुजन के हाथ में होना चाहिए। उन्होंने जाति जनगणना के लिए व्यापक अभियान चलाने की जरूरत पर जोर दिया।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए साहित्यकार जयप्रकाश कर्दम ने कहा कि देश संविधान के अनुसार नहीं, बल्कि हिंदू धर्मग्रंथों के आधार पर चलाने की कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा कि जाति जनगणना को चुनावी मद्दा बनाया जाना चाहिए। जबकि राज्यसभा के पूर्व सांसद अली अनवर ने कहा कि ओबीसी, दलित और मुस्लिम समुदायों में व्यापक बेचैनी है। आज संविधान और लोकतंत्र दोनों ही खतरे में पड़ गया है।
जनहित अभियान के संयोजक राजनारायण ने सम्मेलन के अंत में यह प्रस्ताव रखा कि 2021 की जनगणना में जाति की गिनती को शामिल करने की सरकार विधिवत घोषणा करे। जाति की गिनती जनगणना कानून, 1948 के तहत ही हो और इसे जनगणना कमिश्नर कराएं।
(कॉपी एडिटर : नवल)
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