h n

राजकिशोर : खबरों को विचार से सींचने वाले पत्रकार

राजकिशोर उन बिरले पत्रकारों में एक थे जो खबरों के मोहताज नहीं थे। राजकिशोर खबरों की भीड़ में से विचार चुन लेते थे या कहूं कि खबरों को विचारों से सींचने की अनोखी प्रतिभा थी उनमें। तपती कच्ची धरती पर बारिश की बूंदें जैसी सोंधी गमक से वातावरण सींच देती हैं, राजकिशोर के लेखन से वैसी सोंधी खुशबू उठती थी। राजकिशोर जी को याद कर रहे हैं कुमार प्रशांत :

स्मृति शेष : राजकिशोर (2 जनवरी 1947 – 4 जून 2018)


हम सभी दुनिया की भीड़ के हिस्से हैं। जब दुनिया छोड़ कर जाते हैं तो भीड़ कम कर जाते हैं। राजकिशोर भी दुनिया खाली कर गये तो एक अादमी की भीड़ कम तो हो गई लेकिन एक बड़ी जगह खाली भी हो गई। एक शून्य ! किसके जाने से कहां, कितनी जगह खाली छूट जाती है, शायद एक यह पैमाना हो सकता है यह अांकने का जो गया उसकी हमारे वक्त में क्या भूमिका थी। राजकिशोर उन बिरले पत्रकारों में एक थे जो खबरों के मोहताज नहीं थे। राजकिशोर खबरों की भीड़ में से विचार चुन लेते थे या कहूं कि खबरों को विचारों से सींचने की अनोखी प्रतिभा थी उनमें। तपती कच्ची धरती पर बारिश की बूंदें जैसी सोंधी गमक से वातावरण सींच देती हैं, राजकिशोर के लेखन से वैसी सोंधी खुशबू उठती थी। वे विचार की लड़ाई लड़ने वाले कलम के सिपाही थे।

राजकिशोर (2 जनवरी 1947 – 4 जून 2018)

कलम का सौदा अौर शब्दों की तिजारत के इस दौर में राजकिशोर मुझे किसी दूसरे ग्रह से अाए प्राणी लगते थे। मेरा बहुत नजदीक का तो नहीं, बहुत लंबे समय का नाता था उनसे। मैंने जिस गांधी से मूल्य-बोध पाया था उससे उनका नाता दूर का भी था अौर किसी हद तक टेढ़ा भी। वे समाजवाद वाले – लोहिया वाले – पत्रकार थे। तो एक-दूसरे को पढ़ते रहते थे हम, अौर उनके कोलकाता के ‘रविवार’ अौर बाद के दिनों में ऐसा भी हुअा कि उन्होंने मुझसे कई लेख लिखवाए। फिर ऐसा हुअा कि 1974 के दौर में जेपी का ज्वार ऐसा उठा कि उसमें कितनी सारी दीवारें गिरीं। कितनी ही प्रतिमाएं भू-लुंठित हुईं, स्थापनाएं गिरीं, हर राजनीतिक दल टूटा। विनोबा अौर जयप्रकाश भी टूटे। राजकिशोर भी इस ज्वार में बहे अौर बदले। जयप्रकाश के साथ बह कर राजकिशोर गांधी तक पहुंचे। इस विचार-यात्रा ने हम दोनों को काफी करीब ला दिया। राजकिशोर ने इसे कबूल करते हुए कहा भी कि मुझे गांधी का ठौर मिला, तो इसमें कहीं अापका दाय भी है। मैंने कहा : नहीं, विचार के प्रति अापकी प्रतिबद्धता ने अापको गांधी तक पहुंचाया है। वे हिंदी पत्रकारिता में प्रथम पंक्ति में थे लेकिन व्यक्ति राजकिशोर कभी अागे अाने की मशक्कत करता नहीं मिला। यही उनका व्यक्तित्व अौर उनकी शैली थी। लंबे समय से उनका शरीर मन का साथ नहीं देता था जिसका असर उनकी कलम पर भी होता था। इसका मुझे अफसोस होता था। फिर वे मानसिक संताप में पड़ कर अवसाद से घिरते गये। कुछ ऐसा चक्र था उनके जीवन का कि वह बहुत वक्र चलता था। वे सबको मन के किसी कोने में दबा कर रखते जाते थे जबकि जरूरत थी कि उन्हें गंदे कपड़ों की तरह उतार व निकाल फेंका जाए।

राजकिशोर द्वारा अनुदित ‘जाति का विनाश’ अब अमेजन पर बिक्री के लिए उपलब्ध

लेकिन हम हमेशा ऐसा कर कहां पाते हैं ! राजकिशोर भी नहीं कर पाये। अवसाद से निकलते थे तो इसी अाशंका में सतर्क जीते थे कि फिर यह कब धर दबोचेगा। लेकिन इन सब के बीच उनकी कलम रास्ता खोज लेती थी। वे लिखते रहते थे। फिर लखनऊ के ‘रविवार’ से उनका जुड़ाव हुअा। एक बार फिर मैंने उन्हें सक्रिय होते देखा। उनके अाग्रह पर मैंने भी वहां कुछ लिखा। लेकिन वह जुड़ाव भी टूटा। बड़े बुझे मन से इसकी खबर दी उन्होंने अौर मेरे इस दिलासे पर वे खामोश रहे कि अब मुक्त मन से कुछ बड़ी चीजें लिखिए। तब मैं कहां जानता था कि वे मुक्त मन से नहीं, दुनिया से ही मुक्ति सोच रहे हैं। अभी ही, कुछ माह पहले जयप्रकाश नारायण पर मेरा ही वह व्याख्यान था जिसकी अध्यक्षता उन्होंने की थी। जाते हुए मुझसे कह गये : यह व्याख्यान होना जरूरी था अौर मुझे बहुत संतोष है कि मैं यहां रहा। मैं सोच रहा हूं : वे राजकिशोर जो कल तक थे, अाज कहां हैं ? एक शून्य है कि जिसमें मैं उन्हें खोजता हूं अौर पाता हूं कि वे वहीं हैं जहां होना उन्हें सबसे पसंद था – विचारों के धागे सुलझाते अौर उनसे उलझते !

(कॉपी एडिटर : नवल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार 

लेखक के बारे में

कुमार प्रशांत

कुमार प्रशांत गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष व प्रतिष्ठान द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘गांधी मार्ग’ के संपादक हैं

संबंधित आलेख

व्यक्ति-स्वातंत्र्य के भारतीय संवाहक डॉ. आंबेडकर
ईश्वर के प्रति इतनी श्रद्धा उड़ेलने के बाद भी यहां परिवर्तन नहीं होता, बल्कि सनातनता पर ज्यादा बल देने की परंपरा पुष्ट होती जाती...
सरल शब्दों में समझें आधुनिक भारत के निर्माण में डॉ. आंबेडकर का योगदान
डॉ. आंबेडकर ने भारत का संविधान लिखकर देश के विकास, अखंडता और एकता को बनाए रखने में विशेष योगदान दिया और सभी नागरिकों को...
संविधान-निर्माण में डॉ. आंबेडकर की भूमिका
भारतीय संविधान के आलोचक, ख़ास तौर से आरएसएस के बुद्धिजीवी डॉ. आंबेडकर को संविधान का लेखक नहीं मानते। इसके दो कारण हो सकते हैं।...
पढ़ें, शहादत के पहले जगदेव प्रसाद ने अपने पत्रों में जो लिखा
जगदेव प्रसाद की नजर में दलित पैंथर की वैचारिक समझ में आंबेडकर और मार्क्स दोनों थे। यह भी नया प्रयोग था। दलित पैंथर ने...
राष्ट्रीय स्तर पर शोषितों का संघ ऐसे बनाना चाहते थे जगदेव प्रसाद
‘ऊंची जाति के साम्राज्यवादियों से मुक्ति दिलाने के लिए मद्रास में डीएमके, बिहार में शोषित दल और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय शोषित संघ बना...