ब्राह्मणवादियों में शोक की लहर
भारतीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी की शख्सियत कुछ ऐसी है कि ‘वह सबके प्यारे थे।’ उनसे मिलकर हर एक को लगता था कि अटल ने उनको अपना बना लिया है और खुद भी अटल उनसे घुलमिल लेते थे। बेशक, वह बहुत मिलनसार थे। लेकिन वह ब्राह्मण बिरादरी के सबसे पास थे क्योंकि वह आर्य ब्राह्मणवादी और वर्ण व्यवस्था के विरोध को लेकर हमेशा चुप ही रहे।
आरएसएस में आजादी के बाद से लेकर साढ़े तीन दशक तक सौ में अठानवे लोग ब्राह्मण होते थे। और यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि जिस पांचजन्य से उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत की थी और पहले संपादक बने थे, वह ब्राह्मण महासभा की देन थी।

ब्राह्मण महासभा ने अटल को याद करते कहा है कि ‘अटल जी ने अपने पांच दशकों से अधिक के लंबे संसदीय सफर में देश को बहुत कुछ दिया। वह भीष्म ही तो थे जो मृत्यु को रोके बैठे थे।
वरिष्ठ पत्रकार राजशेखर व्यास ने कहा कि आशीष वचनों को सुनने के बाद अटल जी से भेंट हुई थी। वह पहली भेंट थी। हम बड़नगर और ग्वालियर के थे और और उनको ब्राह्मणों की परंपरा और संस्कारों के साथ मिले।

अजमेर (राजस्थान) में सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री अरुण चतुर्वेदी ने कहा, ‘ब्राह्मण समाज के प्रमुख नेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय व श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की नींव रखी थी। पंडित उपाध्याय व श्यामा प्रसाद मुखर्जी के प्रयासों से भारत के नव निर्माण का विचार अस्तित्व में आया। उनके विचार को देश के प्रमुख ब्राह्मण नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने आगे बढ़ाया था।’ अखिल भारतीय ब्राह्मण सभा मेरठ ने शोकसभा आयोजित की जिसमें आरएसएस और बीजेपी कार्यकर्ताओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की।
संघ की ब्राह्मणवादी दीक्षा से लैस थे अटल
जाहिर है, अटल बिहारी वाजपेयी के जाने से ब्राह्मण समाज गहरे शोक में है। लेकिन दलित-बहुजन समाज से जुड़े कार्यकर्ता और विचारक अटल की ब्राह्मणवादी सोच को उजागर करते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी पर एक स्मृति-लेख में प्रेमकुमार मणि कहते हैं कि ‘दीनदयाल उपाध्याय केवल चौआलिस रोज जनसंघ अध्यक्ष रह पाए। वाजपेयी जी के चाहने भर से मुगलसराय रेलवे स्टेशन के पास एक खम्भे किनारे उनकी लाश मिली।’ अटल ने आगे सफर बढ़ाया जो ‘इकहरे चरित्र के नहीं, जटिल चरित्र के थे ब्राह्मण थे…। दक्षिणपंथी थे। 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना से लेकर चेतना-शून्य होने तक वह सक्रिय रहे। मृदुभाषी, खुशमिज़ाज़, जलेबी कचौड़ी से लेकर दारू-मुर्गा तक के शौक़ीन रहे। उनमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी था, और थोड़े से सावरकर, हेडगेवार भी।’
यह भी पढ़ें : तो ऐसे थे अटल जी
वहीं दिलीप मंडल ने कहा है कि मंडल कमीशन के खिलाफ निकाली गई ‘सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा’ को हरी झंडी बीजेपी के किस नेता ने दिखाई थी? इस रथ यात्रा मार्ग पर हुए दंगों में सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए थे। प्रमोशन में आरक्षण खत्म होने की शुरूआत इनके ही समय हुई थी। भारत का एक भीषणतम दंगा हुआ, कई दिनों तक चला। कोई कार्रवाई नहीं की। जाति जनगणना कराने के एचडी देवेगौड़ा सरकार के फैसले को इनकी सरकार ने बदल दिया। आडवाणी तब गृह मंत्री थे।

दलित लेखक कंवल भारती कहते हैं कि अटल जी की सांस्कृतिक दीक्षा संघ परिवार में हुई थी। वह कभी उसके विपरीत नहीं गए और ना जा सकते थे। प्रगतिशीलता उनका मुखौटा था। वह ब्राह्मणवादी थे, इसके सिवा कुछ भी नहीं। 1970-71 में आंबेडकर जयंती के बरेली में हुए एक कार्यक्रम को याद कर भारती कहते हैं कि यह समय ऐसा भी था जब दलित बहुजन समाज के लोग अटल के भाषणों पर तालियां पीटते थे क्योंकि तब लोग ना राष्ट्रवाद के बारे में इतने जागरूक नहीं थे और ना ही मनुवाद को पहचानते थे। अटल के लिए तालियां बजाने वाले लोगों से उनके नेताओं ने बाद में बताया कि बाबा साहेब आंबेडकर को राष्ट्रवादी बताना उन्हें हिंदू धर्म से जोड़ने की आरएसएस की साजिश का हिस्सा था। असल में इस सभा में अटल बिहारी वाजपेयी ने बाबा साहेब आंबेडकर को सच्चा राष्ट्रवादी और आधुनिक मनु कहा था।
वहीं जेएनयू के छात्र नेता मुलायम सिंह यादव ने अपनी श्रद्धांजलि में तंज किया, ‘राम मंदिर बनाने जा रहे ब्राह्मणवादी आतंकियों के लिए ऊबड़ खाबड़ जमीन को समतल करने की वकालत करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल वाजपेयी के निधन पर हमारे विनम्र श्रद्धांजलि…। ब्राह्मणवाद की स्थापना के लिए आप हमेशा इतिहास में याद किए जाओगे।’ विपुल कुमार कहते हैं, मंडल के विरोध में बैलगाड़ी से सांसद का घेराव करने वाले की नीयत क्या थी किसी से छुपी नहीं है। अगर किसी को इन पुरानी बातों से मौजूदा हालात में मतलब नहीं भी हो तो कम से कम कारगिल के मैदान से कफ़न की चोरी और ताबूत घोटाला…। श्रद्धांजलि के वक़्त याद कर ही लेनी चाहिए।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें