कुलपतियों की नियुक्ति में महिला व एससी-एसटी को नहीं मिला प्रतिनिधित्व
बिहार में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे व्यक्तियों के सामाजिक स्वरूप में तेजी से बदलाव आ रहा है। ब्राह्मणों के आधिपत्य वाले शिक्षा के क्षेत्र में राजपूतों का दखल बढ़ता जा रहा है। राजभवन के अधीन संचालित राज्य के 18 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों में से अकेले राजपूत जाति के 7 कुलपति हैं। ब्राह्मणों का स्थान तीसरा है। दूसरे स्थान पर बनिया जाति के कुलपति हैं और उनकी संख्या 3 है। वहीं ब्राह्मण कुलपतियों की संख्या 2 है। तीसरे स्थान पर ही कायस्थ और मुसलमान भी हैं। जबकि भूमिहार और यादव जाति के कुलपतियों की संख्या एक-एक की बराबरी पर है। खास बात यह कि दलितों की कोई हिस्सेदारी नहीं है। जाहिर तौर पर यह संयोग नहीं है। इसमें भी शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारियों का सामाजिक व सत्ता समीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
राज्यपाल सत्यपाल मलिक के प्रधान सचिव विवेक कुमार सिंह राजपूत जाति के हैं। इसमें कोई विवाद नहीं हो सकता है कि राज्य के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णयों में राज्यपाल के प्रधान सचिव की भूमिका अहम होती है। राज्य के कुलाधिपति राज्यपाल ही होते हैं यानी विश्वविद्यालयों के नीति-नियंता राज्यपाल ही होते हैं। इससे स्पष्ट होत है कि कुलपतियों के चयन में प्रधान सचिव विवेक कुमार सिंह की भूमिका रही होगी। इसके साथ ही मई तक मुख्य सचिव रहे अंजनी कुमार सिंह भी राजपूत जाति से आते हैं।
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बिहार अभी कार्यरत कुलपतियाें में 12 सवर्ण हैं। 7 राजपूत के अलावा 2 कायस्थ, 2 ब्राह्मण और एक भूमिहार जाति के कुलपति हैं। फिर तीन कुलपति बनिया जाति वर्ग के हैं। इनमें से जो मूलरूप से बिहार के रहने वाले नहीं हैं, वे भी सवर्ण की श्रेणी में आते होंगे। कुलपतियों की नियुक्ति में महिला और अनुसूचित जाति व जनजाति की भी अनदेखी की गयी है और उन्हें प्रतिनिध्त्वि नहीं मिला है। इस जातीय वर्ग के विवाद से अलग हटकर भी सोचे तो क्या राजपूत कुलपतियों की भरमार शिक्षा जगत के सामाजिक समीकरण में आ रहे बदलाव का संकेत है? क्या बिहार में ब्राह्मणों का आधिपत्य शिक्षा जगत पर कमजोर पड़ रहा है?
बिहार के विश्वविद्यालयों में जाति
क्रम संख्या | विश्वविद्यालय का नाम | कुलपति | जाति |
---|---|---|---|
1 | डॉ. भीमराव आंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर | प्रो. अमरेंद्र नारायण यादव | यादव |
2 | बी.एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा | प्रो. अवध किशोर राय | भूमिहार |
3 | जे.पी. विश्वविद्यालय, छपरा | प्रो. हरिकेश सिंह | राजूपत |
4 | केएसडी संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा | सर्वनारायण झा | ब्राह्मण |
5 | एल.एन. मिश्रा विश्वविद्याल, दरभंगा | प्रो. एस.के. सिंह | राजपूत |
6 | मगध विश्वविद्यालय, बोधगया | प्रो. कमर अहसन | मुसलमान |
7 | अरबी-फारसी विश्वविद्यालय, पटना | प्रो. खालिद मिर्जा | मुसलमान |
8 | नालंदा खुला विश्वविद्यालय, पटना | डॉ. आर.के. सिन्हा | राजपूत |
9 | पटना विश्वविद्यालय, पटना | प्रो. रासबिहारी प्र. सिंह | राजपूत |
10 | टीएम विश्वविद्यालय, भागलपुर | प्रो. नलिनी कांत झा | ब्राह्मण |
11 | वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा | डॉ. नंदकिशोर साह | बनिया |
12 | पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, पटना | प्रो. गुलाब चंद जायसवाल | बनिया |
13 | मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर | प्रो. रणजीत कुमार वर्मा | कायस्थ |
14 | पूर्णिया विश्वविद्यालय, पूर्णिया | प्रो. राजेश सिंह | राजपूत |
15 | आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय, पटना | प्रो. अरुण अग्रवाल | बनिया |
16 | राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर | डॉ. आर.सी. श्रीवास्तव | कायस्थ |
17 | बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर | डॉ अजय कुमार सिंह | राजपूत |
18 | पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना | रामेश्वर प्रसाद सिंह | राजपूत |
इस संबंध में राजद के प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व विधायक विनोद कुमार यादवेंदु कहते हैं कि राज्य सरकार ने आरएसएस के दबाव में आरएसएस से जुड़े लोगों को कुलपति के पद पर नियुक्ति की है। वैचारिक रूप से भाजपा से जुड़े शिक्षाविदों को तरजीह मिली है। विश्वविद्यालयों के रजिस्ट्रार के पद पर भी कर्नल रैंक के सेवानिवृत्त अधिकारियों को बैठा दिया गया है। पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, मगध विश्वविद्यालय और बीएन मंडल विश्वविद्यालयों में कुलपति व रजिस्ट्रार के आपसी विवाद के कारण शैक्षणिक व प्रशासनिक कार्य बाधित हो रहा है। उन्होंने कहा कि नार्थ बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, साउथ बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय और नालंदा विश्वविद्यालय में भी वैसे ही कुलपतियों की नियुक्ति की गयी है, जो आरएसस के वैचारिक रूप से समर्थक रहे हैं। कुलपतियों की नियुक्ति में नीतीश कुमार ने सामाजिक न्याय की अवधारणा को हासिए पर धकेल दिया। मुख्यमंत्री का समता मूलक समाज के निर्माण का दावा पूरी तरह खोखला साबित हुआ।

विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ बैठक करते कुलाधिपति सह राज्यपाल सत्यपाल मलिक
इसके विपरीत जदयू के प्रदेश प्रवक्ता अरविंद निषाद कहते हैं कि नीतीश सरकार न्याय के साथ विकास में विश्वास करती है। सरकार ने पद के लिए उपयुक्त लोगों की नियुक्ति कुलपति के रूप में की है। इसमें किसी प्रकार को कोई भेदभाव नहीं किया गया है। कुलपतियों की नियुक्ति सर्चकमेटी द्वारा चयनित योग्य उम्मीदवारों में से की जाती है। इसमें शैक्षणिक योग्यता और प्रशासनिक अनुभवों को प्राथमिकता दी जाती है और उसी आधार पर चयन होता है। इसमें जाति या जातीय वर्ग के आधार पर चयन नहीं होता है। इसलिए जाति के आधार पर कुलपतियों की नियुक्ति पर सवाल खड़ा करना उचित नहीं है।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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उत्तर भारत के लगभग सभी विश्वविद्यालयों का यही हाल है। SC-ST-OBC उम्मीदवारों को तभी नियुक्त करेंगे जब वे आरएसएस की विचारधारा के होंगे। जो नियुक्त हो रहे हैं वो भी आरएसएस का एजेंडा लागू कर रहे हैं। प्रशासनिक व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। विश्वविद्यालय का कर्मचारी आपके पत्र को पढ़ कर प्राप्ति देने से खुल्लमखुल्ला इनकार कर रहे हैं। सरकारी नियमावली को ताक पर रख कर काम हो रहा है। कुलाधिपति को शिकायत करने पर कोई कार्यवाही नहीं होती। सब व्यवस्था ध्वस्त है और उसपर तुर्रा यह है कि विश्वविद्यालयों के कर्मचारियों पर और शिकंजा कसा जायेगा। जो गुनहगार हैं उनपर तो कोई कार्यवाही नहीं होती बाकि जाति देख कर उनका मूल्याङ्कन करके असफल बताब्दीय जाता है। पढ़ाने वाले शिक्षक का शैक्षिक रिकॉर्ड औसत और VC के अगल बगल घूमने वाले गंवारों का शैक्षिक रिकॉर्ड उत्तम मिलता है। गज़ब हाल है।