बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल ( 25 अगस्त 1918 – 13 अप्रैल 1982)
कांग्रेसी रणनीति के तहत पहले सतीश प्रसाद सिंह और बाद में छोड़ दी बी.पी. मंडल के लिए कुर्सी
आजादी के बाद 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को जबदरस्त चुनौती मिली थी। केंद्र में कांग्रेस की सरकार जरूर बन गयी थी, लेकिन कई राज्यों की सरकार उसके हाथ निकल चुकी थी। उसी में एक था बिहार। बिहार में पहली बार गैरकांग्रेसी सरकार जन क्रांति दल (जेकेडी) के नेतृत्व में बनी और इसके नेता थे महामाया प्रसाद सिन्हा। इसे संविद सरकार यानी संयुक्त विधायक दल की सरकार कहा गया। महामाया प्रसाद सिन्हा ने पटना पश्चिम विधान सभा क्षेत्र से के. बी. सहाय को पराजित किया था।
महामाया प्रसाद सिन्हा ने 5 मार्च, 1967 को पदभार संभाला था। इनके गुट के कुल 24 विधायक थे, जबकि एसएसपी के विधायकों की संख्या 68 थी। कांग्रेस के कमजोर पड़ने के बाद पिछड़ावाद काफी मुखर होने लगा था। इसका असर संविद सरकार पर भी पड़ा। महामाया प्रसाद सिन्हा की सरकार में एसएसपी के तीन लोग ऐसे मंत्री बन गये थे, जिन्हें पार्टी संविधान के अनुसार मंत्री नहीं होना था। इसमें एक थे बी. पी. मंडल, जो लोकसभा के सदस्य रहते हुए राज्य सरकार में मंत्री थे। दूसरे थे रामानंद तिवारी, जो एसएसपी के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए मंत्री थे और तीसरे थे भोला सिंह, जो एमएलसी होने के बावजूद मंत्री थे।

लोहिया ने किया था मंडल के मंत्री बनने का विरोध
इस संबंध में सतीश प्रसाद सिंह कहते हैं कि पार्टी संविधान के अनुसार, सांसद राज्य सरकार में मंत्री नहीं हो सकता था। प्रदेश अध्यक्ष मंत्री नहीं बन सकते हैं और एमएलसी भी मंत्री नहीं बनेंगे। इसी बीच पार्टी के विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिन्हा के खिलाफ आवाज उठने लगी। इसका नेतृत्व परबत्ता से पहली बार निर्वाचित हुए सतीश प्रसाद सिंह कर रहे थे। उन्होंने कहा कि 24 विधायक वाला मुख्यमंत्री बनेगा और 68 विधायक वाला उपमुख्यमंत्री! एसएसपी के कर्पूरी ठाकुर उस समय उपमुख्यमंत्री थे। हालांकि सतीश प्रसाद सिंह के इस प्रस्ताव का रामानंद तिवारी और कर्पूरी ठाकुर ने विरोध भी किया था। इसके बाद सतीश प्रसाद सिंह लोहिया से मिलने दिल्ली पहुंच गये। उस समय लोहिया ने बी.पी. मंडल के मंत्री बनाये जाने के खिलाफ बयान भी दिया था। इसी को उन्होंने मुद्दा बना दिया और लोहिया से कहा कि सरकार में तीन मंत्री रामानंद तिवारी, भोला सिंह और बी.पी. मंडल पार्टी संविधान के विपरीत मंत्री बने हुए हैं और आप सिर्फ बी. पी. मंडल के खिलाफ बयान दे रहे हैं। इस बीच छह माह का कार्यकाल पूरा होने के बाद बी.पी. मंडल को दुबारा मंत्री बनने का मौका नहीं मिला।

के. बी. सहाय की भूमिका
उधर एसएसपी में मतभेद और बगावत को कांग्रेस ने लोक लिया और बगावत को हवा देने की शुरुआत की। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कृष्णबल्लभ सहाय ने सतीश प्रसाद सिंह से बातचीत में कहा कि अगर आप 36 विधायक की व्यवस्था कर लें तो सरकार आपकी बन सकती है। इनके एक प्रयास का भंडाफोड़ तो स्वयं के. बी. सहाय ने ही कर दिया। सतीश प्रसाद सिंह ने 25 विधायकों की बैठक बुलायी और इस खबर को के.बी. सहाय ने अपने अखबार ‘नवराष्ट्र’ में विधायकों के नाम के साथ प्रकाशित करवा दिया। इस बीच कांग्रेस नेतृत्व ने पिछड़ावाद के नाम पर एक फार्मूला तय किया कि पहले कुशवाहा मुख्यमंत्री बनेंगे और वह बी.पी. मंडल को एमएलसी मनोनीत करेंगे। इसके बाद बी. पी. मंडल मुख्यमंत्री बनेंगे और फिर भोला सिंह को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिलेगा। इसमें त्रिवेणी संघ की तीनों जातियों को संतुष्ट करने की बात भी सामने आयी। लेकिन कुशवाहा में कौन मुख्यमंत्री बनेगा, नाम तय नहीं था।

सतीश प्रसाद सिंह कहते हैं कि 28 जनवरी,1968 की शाम को टहल रहे थे। उसी समय कांग्रेस विधायक दल के नेता महेश प्रसाद सिंह और रामलखन सिंह यादव आये। उन लोगों ने अपने साथ चलने की बात की। लेकिन कहां जाना है, यह नहीं बताया। वे लोग उन्हें लेकर राजभवन पहुंच गये और समर्थन की चिट्ठी राज्यपाल को सौंप दी और उसी शाम साढ़े 7 बजे शपथग्रहण का समय तय हो गया। सतीश प्रसाद सिंह के साथ सिर्फ दो मंत्रियों शत्रुमर्दन शाही और एनई होरो को शपथ दिलायी गयी। कांग्रेस के तीनों प्रमुख नेता के. बी. सहाय, एम.पी. सिंह और रामलखन सिंह यादव को भरोसा था कि बी. पी. मंडल को एमएलसी मनोनीत करने के बाद सतीश प्रसाद इस्तीफा दे देंगे। इस बीच के.बी. सहाय के विश्वस्त परमानंद सहाय ने विधान परिषद से इस्तीफा दिया और उनकी जगह पर बी.पी. मंडल के मनोनयन की सिफारिश सतीश प्रसाद सिंह की मंत्रिमंडल ने भेजा और उसी आधार बी.पी. मंडल को विधान परिषद की शपथ दिलायी गयी।
जब डोल गया बी.पी. मंडल का विश्वास
सतीश प्रसाद सिंह कहते हैं कि 30 जनवरी,1968 को गांधी घाट से राज्यपाल गांधी जी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद राजभवन लौट रहे थे कि रास्ते में बीएन कॉलेज के पास छात्रों ने उनकी गाड़ी पर पत्थर से प्रहार कर दिया, जिससे आगे का शीशा टूट गया। इस घटना के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री सतीश प्रसाद सिंह और प्रस्तावित मुख्यमंत्री बी. पी. मंडल दोनों राजभवन में बैठे थे। इस घटना से नाराज बी. पी. मंडल ने मुख्य सचिव से कहा कि आरोपित छात्रों को गिरफ्तार करवा लो। इसके तुरंत सीएम सतीश प्रसाद सिंह ने मुख्य सचिव को छात्रों को गिरफ्तार नहीं करने का निर्देश दिया। इस घटना से बी. पी. मंडल सशंकित हो गये। उन्हें लगा कि सतीश प्रसाद सिंह अब इस्तीफा देने वाले नहीं हैं।
बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें
बी. पी. मंडल उसी दिन रामलखन सिंह यादव और महेश प्रसाद सिंह के घर जाकर घटना का जिक्र करते हुए कहा कि लगता है कि सतीश अब इस्तीफा नहीं देंगे। कांग्रेस के दोनों नेता ने बारी-बारी से उनसे मुलाकात की और भरोसे में लिया। बी. पी. मंडल के इस व्यवहार से आहत सतीश प्रसाद इस्तीफा देने जाने लगे कि महेश प्रसाद सिंह ने उन्हें रोका। बात समझौते पर आयी। बी. पी. मंडल भी पहुंचे। सतीश प्रसाद सिंह ने कहा कि छात्रों की गिरफ्तारी के विरोध में उससे भी बड़ा हादसा हो गया तो जिम्मेवार हम न माने जाएंगे। क्या वैसी स्थिति में आप शपथ ग्रहण कर पायेंगे। इस प्रकार मामला सलट गया। अगले दिन बी. पी. मंडल के एमएलसी के रूप में शपथ लेने के बाद सतीश प्रसाद सिंह ने अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया। इसके बाद कांग्रेस के समर्थन से बी. पी. मंडल की सरकार बनी। इस सरकार का विरोध एसएसपी के अंदर भी शुरू हो गया। यह सरकार बमुश्किल एक माह भी ठीक से नहीं चल पायी और असमय कालकलवित हो गयी।
लेकिन इसी एक महीने के मुख्यमंत्रित्व काल ने बी. पी. मंडल को मंडल आयोग के अध्यक्ष बनने की पृष्ठभूमि तैयार की और उसी जमीन पर उन्होंने पिछड़ावाद का ऐसा मंत्र दिया कि भारतीय समाज में एक नये वैचारिक आंदोलन की शुरुआत हुई और भारतीय समाज के नवनिर्माण की दिशा तय हुई।
हमदोनों के बीच था भाई-भाई का रिश्ता
बी. पी. मंडल के बारे में सतीश प्रसाद सिंह कहते हैं कि हम दोनों में भाई-भाई का रिश्ता था। वे बेहद ईमानदार और कंजूस प्रवृत्ति के आदमी थे। वे आम आदमी के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध थे और आजीवन लोगों की सेवा में जुटे रहे। श्री सिंह कहते हैं कि बिहार में पिछड़ी जाति का पहला मुख्यमंत्री वे (सतीश) बनें, इसके बाद एक के बाद एक पिछड़ी जाति के लोग मुख्यमंत्री बनते चले गये। इसमें डॉ. लोहिया की कुशल रणनीति और पिछड़ी जातियों में आ रही राजनीतिक चेतना की बड़ी भूमिका रही है।
(सतीश प्रसाद सिंह से बातचीत पर आधारित लेख)
(संपादन : नवल)
[संशोधित : 27 सितंबर, 2018, अपराह्न 12.40]
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