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कैसे बनायें जीवन को खुबसूरत : बहुजन युवाओं के नाम पत्र

प्रभु गुप्तारा द्वारा लिखित यह किताब रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और रहन-सहन को लेकर युवाओं के मन में उठने वाले सवालों का जवाब देती है। विभिन्न पुस्तक विक्रेताओं और ई-कामर्स वेबसाइटों पर उपलब्ध। विशेष छूट! शीघ्र आर्डर करें

‘यह सीधे और सरल तरीक़े से लिखे गये, बुद्धिमत्ता-पूर्ण पत्रों का शानदार संकलन है। ये पत्र उन सभी मुद्दों पर बात करते हैं, जो दिखते तो साधारण हैं, परंतु हैं बहुत गंभीर और जटिल और जो आज के युवाओं के लिए अत्यंत महत्व के हैं। प्रेम करने से लेकर अच्छे लेख लिखने की कला तक, और इंटरनेट से नक़ल करने की हानियों से लेकर कार्य-स्थल पर जातिवाद से मुक़ाबला करने के तरीक़े तक– ये पत्र बहुत कुछ बताते हैं। इन पत्रों का यह संकलन काफ़ी उपयोगी है। यह एक तरह से ज़िंदगी का नियम-संग्रह (मैन्युअल) है।’
– सिद्धार्थ वरदराजन, संस्थापक संपादक, द वायर
‘इस पुस्तक से युवाओं को बहुत फ़ायदा होगा, क्योंकि यह रोज़मर्रा के मसलों से लेकर ज़िंदगी के अहम मुद्दों तक सभी के बारे में सलाह देती है।’
– प्रो. कांचा इलैया शेफर्ड, निदेशक, सेंटर फॉर सोशल एक्सक्लूशन एंड इंक्लूसिव पॉलिसी, मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद, तेलंगाना
‘हम सब अनुभव से सीखते हैं, चाहे वह अपना हो या दूसरों का। यह पुस्तक अनुभवों और विचारों को सहज भाषा में इस प्रकार प्रस्तुत करती है कि पाठक सामान्य मुद्दों पर एक वृहत कैनवास में विचार करने पर मजबूर हो जाता है।’
– डॉ. अरुण कुमार, मल्कोल्म एस. अदिसेशियाह, चेयर प्रोफेसर, इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज, नई दिल्ली

‘बहुजन’ का शाब्दिक अर्थ होता है, वे लोग जो बहुसंख्यक हैं। अतः ये पत्र हमारे उन बहुसंख्यक युवाओं को संबोधित हैं, जो राजनीतिक चालबाजियों, नौकरशाही के रोड़ों और सांस्कृतिक प्रतिबंधों से मुकाबला करते हुए अपने सपनों को पूरा करने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं।

‘बहुजन’ शब्द का इस्तेमाल अक्सर उन लोगों के लिए किया जाता है जो अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों सहित विभिन्न धार्मिक समूहों से मिलकर बने हैं और जो भारत की आबादी का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा हैं।

परन्तु, क्या यही लोग पीछे छूट गए हैं? क्या सिर्फ इन्हीं श्रेणियों के लोगों को अपनी प्रतिभा को अभिव्यक्त करने से, अपने व्यक्तित्व का विकास करने से और देश तथा दुनिया को अपना योगदान देने से रोका जा रहा है? क्या शिक्षा, पथ-प्रदर्शन और आधारभूत संरचना की कमी, एक बहुत छोटे-से श्रेष्ठी वर्ग को छोड़कर, हमारे पूरे समाज को प्रभावित नहीं कर रही है? यह पुस्तक इन मुद्दों पर भी बात करती है। अगर आप अपनी जिंदगी को संवारने के लिए संकल्पबद्ध हैं, तो यह पुस्तक आपकी मदद के लिए ही बनी है।

 

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मीडिया में ‘कैसे बनाएं जीवन को खुबसूरत’

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