h n

हार गयी भाजपा 

आखिर, कौन से कारण रहे कि मोदी जनता के चित्त से उतरते चले गए. उनके विरोधी तो अपनी तरह से कुछ कहेंगे ही. लेकिन, जो मुख्य कारण रहा, वह है उनका बड़बोलापन. मोदी ने विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री के बीच जो व्यवहार और चरित्र का भेद रहना चाहिए था, उसे समाप्त कर दिया था

पांच राज्यों की विधानसभाओं के जो चुनाव पिछले दिनों हुए थे, उनके नतीजे आ गए हैं। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम ये पांच राज्य थे, जहां चुनाव हुए थे, प्रथम तीन में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में थी। तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्रीय समिति (टीआरएस) की सरकार थी और मिज़ोरम में कांग्रेस की। चुनावी नतीजों ने सब कुछ उलट पुलट दिया है। तीनों राज्यों से भाजपा की सत्ता ख़त्म हो गयी  है और मिजोरम में कांग्रेस की सरकार धराशायी हो गयी है। तेलंगाना में अलबत्ता यथास्थिति बनी रही है। हालांकि सत्तासीन टीआरएस को पहले के मामूली बहुमत के मुकाबले इस बार प्रचंड बहुमत मिला है। पहले के मुकाबले उसे 25 सीटें अधिक मिली हैं। मिजोरम आबादी के हिसाब से बहुत छोटा राज्य है, लेकिन वहां कांग्रेस धड़ाम हो गयी है। पहले उसकी 34 सीटें थीं ,अब केवल पांच है। वहां की रीजनल पार्टी एमएनएफ केवल 5 से 26 पर आ गयी है।

इस तरह दलीय दृष्टि से देखा जाय तो इन चुनावों में भाजपा को बड़ा नुकसान है। उसे तीन बड़े राज्यों से लोकसभा चुनावों के ठीक पहले सत्ताच्युत होना पड़ा है। कांग्रेस को मिजोरम में सत्ता गंवानी पड़ी है और तेलंगाना में पहले के मुकाबले उसे 2 सीटें कम आई हैं। पहले उसे 21 सीटें थी ,अब 19 हैं। लेकिन राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में उसकी बढ़त ने उसे इस लघु-महाभारत का विजेता घोषित कर दिया है, जो स्वाभाविक ही है। उपरोक्त पांच राज्यों के विधान सभा सदस्यों की कुल संख्या 598 है। आज से पांच साल पहले, यानी 2013 के चुनाव में कांग्रेस को कुल 173 सीटें मिली थी; वहीं भाजपा को कुल 327 सीटें। इन चुनावों के बाद भाजपा 200 और कांग्रेस 305 सीटों पर पहुंच गयी है। भाजपा को 127 सीटों का नुकसान और कांग्रेस को 132 सीटों का फायदा मिला है। हालांकि वोट प्रतिशत में मामूली अंतर ही आए हैं। राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस में बस 1.5 यानि आधे फीसद का अंतर है,तो मध्यप्रदेश में दोनों के वोट बराबर हैं। अलबत्ता छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को भाजपा से तकरीबन दस फीसद वोट अधिक मिले हैं। लेकिन, मदांध भाजपा को इस तरह चुनौती देना कांग्रेस की बड़ी उपलब्धि कही जाएगी। संसाधनों के स्तर पर कांग्रेस इस दफा विरथ थी। यह विरथ और रथी के बीच का युद्ध था, जिसमें रथी पराजित हुआ है।

राहुल गांधी

2019 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले हुए इन चुनावों ने मुल्क के जनगण के राजनीतिक मिजाज का परिचय दे दिया है। पांच साल पूर्व इन्ही राज्यों में हुए चुनावों ने 2014 के लोकसभा चुनावों का आगाज़ दे दिया था। 2014 के चुनावों में जो मोदी लहर थी, उसकी निर्मिति 2013 में संपन्न इन्ही चुनावों की आंच पर हुई थी। यदि पांच साल पूर्व की यह प्रवृति थी, तो 2019 के चुनावों पर इसके प्रभाव से हम इंकार नहीं कर सकते। और फिर इसका मतलब यह हुआ कि मोदी की  विदाई का लेखा तैयार हो गया है।

आखिर, कौन से कारण रहे कि मोदी जनता के चित्त से उतरते चले गए। उनके विरोधी तो अपनी तरह से कुछ कहेंगे ही। लेकिन, जो मुख्य कारण रहा, वह है उनका बड़बोलापन। मोदी ने विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री के बीच जो व्यवहार और चरित्र का भेद रहना चाहिए था, उसे समाप्त कर दिया था। पीएम होने के बाद भी वह लगातार कांग्रेस-मुक्त भारत का राग अलापते रहे। जो सत्ताधारी पार्टी मात्र 44 सीटों पर सिमट गयी हो, उसके ख़त्म करने की मनसा को लोगों ने पसंद नहीं किया। इसके अलावा संघ और भाजपा के अनुसंगी संघटनों और लोगों ने लगातार नेहरू परिवार पर अनाप-शनाप टिप्पणियां की। कभी उनके परिवार , कभी उनकी जाति और उस से भी नहीं हुआ तो उनके गोत्र पर सवाल उठाये गए। भाजपा के लोग यह समझने से चूक गए कि भारतीय जनता का अपना एक चरित्र रहा है। भारतीय समाज में जाति-वर्ण के झमेले और मसले चाहे जितने गहरे हों, भारत की जनता अपनी सोच में निर्जात-चरित्र की रही है। यदि कोई सही बात कह रहा है, तो उसे देश की जनता ने सुना है, चाहे वह किसी कुल-गोत्र का रहा हो। मोदी को ही कांग्रेसियों के एक जमात ने जब नीच कहा, तब मुल्क की जनता ने कांग्रेस को सबक सिखाया। लेकिन सत्ता में आने के बाद मोदी और उनके लोग दूसरों को नीच सिद्ध करने में लगे रहे। इसकी विपरीत प्रतिक्रिया हुई। दिनरात हिंदुत्व अलापने वाले कांग्रेसियों को महाभारत की कथा से कुछ सीखना-समझना चाहिए था। उस कथा में कुंती पुत्र पांडवों को कौरवों ने इस आधार पर राजपाट में हिस्सा देने से इंकार कर दिया कि वे पाण्डु पुत्र नहीं, कुंती पुत्र हैं। उनके पिता कौन हैं इसका ठिकाना नहीं है। कृष्ण ने इसे अधर्म कहा। कृष्ण ने पांडवों का साथ दिया। महाभारत हुआ और पांडव जीते। कुल-गोत्र की पवित्रता लिए कौरव कुल के लोग विनष्ट हो गए।

आर्थिक मामलों में भी मोदी सरकार की भद्द पिटती चली गयी। राफेल घोटाले को मुल्क की जनता ने बोफोर्स मामले से भी गंभीर माना। रिज़र्व बैंक, नोटबंदी, जीएसटी जैसे मामलों ने सरकार की धज ध्वस्त कर दी। ऐसा लगा वित्त मंत्री जेटली हर हाल में मोदी को मुसीबत में डालना चाहते है। माल्या-मोदी के बैंक लूट मामलों ने भी सरकार की छवि ख़राब की। अर्बन-नक्सली मामले ने बुद्धिजीवियों के बीच मोदी की छवि को ख़राब किया। छत्तीसगढ़ में रमन सिंह की पराजय शहरी नक्सलियों की जीत मानी जानी चाहिए।

चाहे जो हो, 2019 के लोकसभा चुनावों पर इन पांच राज्यों के चुनाव का असर होगा ही। अब यदि 44 लोकसभा सदस्यों वाली कांग्रेस को राहुल गांधी ने आगे बढ़ाया, और सत्ता के करीब लाया तो उनके राजनीतिक कौशल का लोहा मानने के लिए लोग मजबूर हो जायेंगे। आज उन्होंने यह कह कर परिपक्वता दिखलाई कि वह भाजपा मुक्त भारत की बात कभी नहीं करेंगे। यह संसदीय आचरण नहीं है। मोदी के आचरण पर यह गहरा कटाक्ष भी है और उनके चरित्र की आलोचना भी। हालांकि भाजपा के लोग इसे शायद ही समझ पाएं।

इन चुनाव नतीजों का एक परिणाम यह भी होगा कि हिंदी पट्टी में कांग्रेस का दबदबा बढ़ेगा।। प्रादेशिक-इलाकाई राजनीतिक दलों की धौंस-पट्टी अब वह नहीं भी सुन सकती है। बिहार, यूपी में वह अधिक सीटें चाहेगी। यदि 1980 की तरह उसने स्वतंत्र स्तर पर लड़ने का फैसला कर लिया, तब यूपी में समाजवादी पार्टी और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। आज की राजनीतिक स्थिति में दलित और मुसलमान कांग्रेस की तरफ खिंच सकते हैं। यदि यह हुआ तो सवर्ण मतदाता भी भाजपा छोड़ कांग्रेस की तरफ आ सकते हैं। ऐसी स्थिति में फिर पुरानी स्थितियां आ सकती हैं। और तब भाजपा और क्षेत्रीय पार्टियां किनारे लग जाएंगी। इसलिए आज का चुनाव परिणाम भाजपा के लिए खतरे की घंटी तो है, दूसरे क्षेत्रीय दलों के लिए भी कम चुनौती नहीं हैं।


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

 

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

प्रेमकुमार मणि

प्रेमकुमार मणि हिंदी के प्रतिनिधि लेखक, चिंतक व सामाजिक न्याय के पक्षधर राजनीतिकर्मी हैं

संबंधित आलेख

Naming military action ‘Operation Sindoor’ unconstitutional, says retired CRPF commandant 
If you have still not realized who named the operation 'Sindoor' and why, look at what followed. Even more absurdly, BJP purportedly announced that...
Dhadak 2 and CBFC’s cuts: Are we ready for Pariyerum Perumal’s truth in Hindi?
'Pariyerum Perumal' was a battle cry against caste. If 'Dhadak 2' mutes that cry before its release, are we not losing a chance to...
Dominant husbands, hegemonic castes still part of Bihar’s rural landscape
In a study of Aurangabad and Rohtas districts, calls made to women mukhiyas were mostly received by their husbands or other family members. The...
Manoj Jha: A war-like situation faced the country, so we have been calm but alert on caste census
The Cabinet decision to hold a caste census revealed that there has been change in the government’s stand on the concerns of the Bahujan...
Does the National Education Policy 2020 aim to Aryanize education?
The new National Education Policy has become a tool in this ideological conflict, aimed at dismantling the hard-won socio-educational achievements of the Dravidian movement...