गरीब सवर्णों को सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण देने को लेकर बीती 8 जनवरी 2019 को लोकसभा में 124वां संशोधन विधेयक पारित कर दिया गया। विधेयक के समर्थन में कुल 323 वोट और विरोध में केवल 3 वोट पड़े। करीब पांच घंटे तक हुई बहस के बाद पारित लोकसभा को 9 जनवरी को राज्यसभा में पेश किया जाएगा।
हालांकि, लोकसभा में बहस के दौरान कई सांसदों ने इस विधेयक को लेकर सरकार की नीयत पर सवाल भी खड़े किए। मसलन कांग्रेस ने कहा कि वह आर्थिक रूप से पिछड़े तबकों को शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए लाए गए विधेयक के समर्थन में है, लेकिन उसे सरकार की मंशा पर शक है। कांग्रेसी सांसदों का कहना था कि सरकार का यह कदम महज एक ‘चुनावी जुमला’ है और इसका मकसद आगामी चुनावों में फायदा हासिल करना है। वहीं, बसपा, सपा, तेदेपा और द्रमुक सहित विभिन्न पार्टियों ने इसे भाजपा का चुनावी स्टंट करार दिया।
![](https://www.forwardpress.in/wp-content/uploads/2019/01/dharmendra-yadav-1.jpg)
इसी सरकार में सर्वाधिक शोषण : धर्मेंद्र यादव
समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव ने कहा कि हम आरक्षण बिल का समर्थन करते हैं। लेकिन, जिस तरीके से बिल लाया गया है, वह गलत है। हम पहले ही जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करने की मांग कर चुके हैं और जैसे आंकड़े आएं, उसी के अनुपात में 100 फीसदी आरक्षण दे दिया जाए। जिनके लिए नया 10 फीसदी आरक्षण लाया गया है, वे भी सरकार की नीयत को जानते हैं। क्योंकि, सत्र के आखिरी दिन बिल लाया गया है। उन्होंने कहा कि कैबिनेट से लेकर सचिवालय, स्कूल, कॉलेज, कोर्ट सभी जगह गंभीर जातिगत असमानताएं हैं। 2 करोड़ रोजगार देने के वादे का कुछ नहीं हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि ओबीसी कमीशन का इतने शोर-शराबे के बाद भी गठन नहीं किया गया। सच्चाई से देखें तो इसी सरकार के रहते दलित, शोषितों के साथ सबसे ज्यादा अन्याय हुआ।
![](https://www.forwardpress.in/wp-content/uploads/2019/01/supriya-sule.jpg)
कहीं ये जुमला तो नहीं : सुप्रिया
वहीं, एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि यह सत्र 17 दिन से चल रहा है, लेकिन आखिरी दिन में इस बिल को लाने की क्या जल्दी थी? ऐसा नहीं कि यह बिल गरीबों का समर्थन करता है और ऐसा भी नहीं है कि यह पहली सरकार है, जो गरीबों के लिए कोई बिल लेकर आई है। इससे पहले भी हमारी सरकार ने भी खाद्य सुरक्षा जैसे कई बिल पारित किए थे। उन्होंने उम्मीद व्यक्त की कि बिल जुमला साबित नहीं होगा और इसमें किए गए वादों को पूरा किया जाएगा।
![](https://www.forwardpress.in/wp-content/uploads/2019/01/Bhartruhari_Mahtab.jpg)
भटक चुके हैं राजनीतिक दल : भर्तृहरि
बीजू जनता दल के सांसद भर्तृहरि महताब ने कहा कि समाज में सभी तरफ काफी लोग गरीब हैं और उनको नौकरी और शिक्षा क्षेत्र में आरक्षण की जरूरत है। कांग्रेस ने 1980 के अपने घोषणापत्र में ऐसा आरक्षण देने का वादा किया था, लेकिन वह रास्ते से भटक गई। महताब ने कहा कि 40 साल से आर्थिक तौर पर पिछड़ों को आरक्षण देने की कोशिश की गई है, लेकिन इस बार यह सरकार संविधान संशोधन बिल के जरिए इसे पूरा करने जा रही है।
![](https://www.forwardpress.in/wp-content/uploads/2019/01/ram-vilas-paswan-4.jpg)
सवर्ण भी हुए हैं गरीब : रामविलास
केंद्रीय मंत्री व लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान ने कहा कि मंडल कमीशन के दौरान भी मेरा विरोध हो रहा था; तब मैंने कहा था कि यह डबल लॉक है। अगर तुम नहीं करोगे तो एक दिन सब तुम्हारा ही आरक्षण खत्म कर देंगे। अगर 50 फीसदी पहले से ही है और कल तक आरक्षण का विरोध करने वालों को भी 10 फीसदी आरक्षण मिल रहा है, तो इसमें क्या गलत है? उन्हाेंने सफाई देते हुए कहा कि इससे किसी का हक भी नहीं मारा जा रहा है। बिल में कोई भेदभाव नहीं किया गया है और इसमें सभी धर्मों के लोग शामिल हैं। पासवान ने कहा कि इस कुल 60 फीसदी आरक्षण को 9वीं अनुसूची में शामिल किया जाए, ताकि कोई कोर्ट में इसे चुनौती न दे सके। इसके अलावा पासवान ने राजनाथ सिंह से मांग करते हुए कहा कि निजी क्षेत्र में भी इस 60 फीसदी आरक्षण को लागू कराना चाहिए। भारतीय न्यायिक सेवा में हर जाति और धर्म के लोगों को स्थान मिलना चाहिए।
पासवान ने यह भी कहा कि मोदी सरकार को दलित विरोधी कहा जाता था, लेकिन हमने एससी-एसटी एक्ट को तीन दिन के भीतर संसद से पारित कराकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटा था। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का काम किया। राम मंदिर के नाम पर हल्ला हो रहा था, तब हमारे प्रधानमंत्री ने कहा कि संविधान और कोर्ट के मुताबिक ही राम मंदिर पर फैसला लिया जाएगा। पासवान ने कहा कि उच्च जाति के गरीब लोगों को अब आरक्षण दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मंडल कमीशन के दौरान हम उच्च जाति के गरीबों का आरक्षण देना चाहते थे, लेकिन तब कानूनी आधार पर ऐसा नहीं हो सका। उन्होंने कहा कि पिछड़ी जाति के लोग सभी तरह की मेहनत कर सकते हैं, लेकिन ब्राह्मण सिर्फ मंदिर में पूजा-पाठ कर पाने में सक्षम हैं। उच्च जाति के लोग भी अब काफी गरीब हो गए हैं और उन्हें भी समान अवसर मिलने चाहिए। उन्होंने कहा कि प्राइवेट सेक्टर में 60 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए।
![](https://www.forwardpress.in/wp-content/uploads/2019/01/jitdendra-reddy.jpeg)
सरकार की नीतियों की विफलता : जितेंद्र रेड्डी
टीआरएस सांसद ए.पी. जितेंद्र रेड्डी ने अपनी पार्टी की ओर से बिल का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि सरकारों ने सत्ता में आने के बाद जो भी वादे किए हों, लेकिन देश की आम जनता का ख्याल नहीं रखा गया। टीडीपी सांसद ने कहा कि सरकार की गलत नीतियों की वजह से ही आर्थिक आधार पर पिछड़े लोगों का उदय हुआ।
![](https://www.forwardpress.in/wp-content/uploads/2019/01/anand-rao-adsul-e1547023545624.jpg)
देर से आए क्या दुरुस्त होंगे : अडसुल
शिवसेना सांसद ने आनंदराव अडसुल कहा कि आर्थिक रूप से दुर्बल लोगों को आरक्षण से काफी मदद मिलती है। लेकिन, समाज में एससी-एसटी और ओबीसी के अलावा भी अन्य वर्गों के लोग भी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि आर्थिक तौर पर कमजोरों को आरक्षण देने का समर्थन बाला साहब और हमारी पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे भी इसका समर्थन कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि इसमें साढ़े चार साल क्यों लगे यह सवाल मेरे मन भी आता है। लेकिन, कभी-कभी देरी से आए फैसले भी दुरुस्त साबित होते हैं।
![](https://www.forwardpress.in/wp-content/uploads/2019/01/sudip-bandhopadhyay.jpeg)
आरक्षण दिया पर काम भी मिले : सुदीप
जबकि, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद सुदीप बंधोपाध्याय ने कहा बिल को पेश करने के समय से हमारे मन में शक हुआ कि सरकार की मंशा आखिर है क्या? सरकार क्या वाकई में युवाओं को रोजगार देना चाहती है? या फिर 2019 के चुनाव में फायदा उठाने के लिए यह कदम उठाया गया है। उन्होंने कहा कि महिलाओं के आरक्षण बिल को क्यों नहीं लाया गया, क्या वह जरूरी नहीं था? टीएमसी सांसद ने कहा कि बिल का समर्थन कर भी दिया गया, तो नौकरियों का देश में क्या हाल है? सरकार कैसे घोषित नीतियों को पूरा करने जा रही है? यह बिल युवाओं के बीच झूठी उम्मीदें जगाएगा, जो कभी सच्चाई नहीं बन सकतीं। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी इस बिल का समर्थन करते हुए उम्मीद करती है कि युवाओं को रोजगार देने का काम होगा।
![](https://www.forwardpress.in/wp-content/uploads/2019/01/s.png)
जाति सच्चाई है, गरीबी नहीं : थंबीदुरई
एआईएडीएमके सांसद थंबीदुरई ने कहा कि सामाजिक तौर पर कमजोर लोगों के लिए आरक्षण बहुत जरूरी था। क्योंकि, उसके बाद भी आजतक सामाजिक बराबरी नहीं आ पाई है। उन्होंने कहा कि सरकार को पहले सामाजिक तौर पर पिछड़ों को सशक्त करना चाहिए। जाट, पटेल से लेकर ओबीसी के कई वर्ग आरक्षण की मांग कर रहे हैं और अगर सभी को शामिल करेंगे, तो सीमा 70 फीसदी तक चली जाएगी। पहले सरकार तमिलनाडु के 69 फीसदी आरक्षण दे उसके बाद इस बिल पर विचार किया जाएगा। अगर आप किसी को आज आर्थिक आधार पर आरक्षण देते हैं और कल वो नौकरी पाकर अमीर हो जाता है फिर क्या आरक्षण को खत्म कर दिया जाएगा। जाति इस समाज में सच है जो हमेशा बनी रहती है।
थंबीदुरई ने कहा कि आरक्षण सामाजिक न्याय के लिए दिया जाता है, मुझे समझ नहीं आ रहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण की जरूरत क्या है? उन्होंने कहा कि पिछड़ों के उत्थान के लिए आरक्षण नीति लाई गई थी, लेकिन यह सरकार आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को आरक्षण देने जा रही, जबकि आपकी सरकार ने गरीबों के लिए कई योजनाएं लागू की हैं। अगर आप गरीबों का आरक्षण देने जा रहे हैं, तो सरकार की इन योजनाओं से क्या फायदा हुआ, इससे साफ है कि आपकी सारी योजनाएं फेल हो गई हैं।
![](https://www.forwardpress.in/wp-content/uploads/2019/01/upendra-kushwaha-2.jpg)
नौकरी नहीं दी तो खिलाफ होंगे सवर्ण भी : उपेंद्र कुशवाहा
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के सांसद उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि आरक्षण से नौकरी नहीं मिलती है। जैसे ही यह बात समझ आएगी, तो आरक्षण पाने वाले सवर्ण भी सरकार के खिलाफ हो जाएंगे। कुशवाहा ने कहा कि आरक्षण आर्थिक समृद्धि का उपाय नहीं है, सरकार को सरकारी विद्यालयों में पढ़े बच्चों को आरक्षण में प्राथमिकता देने चाहिए, इससे शिक्षा व्यवस्था की बेहाल हालत सुधर सकती है। साथ ही उन्होंने कहा कि प्राइवेट सेक्टर में भी आरक्षण का लाभ मिले, क्योंकि सरकारी क्षेत्र में तो नौकरियां नहीं मिल रही हैं। कुशवाहा ने कहा कि सरकार सत्र को बढ़ाकर न्यायिक नियुक्तियों के लिए भी बिल लेकर आए। मंत्री पद छोड़ने के बाद कुशवाहा पहली बार लोकसभा को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान कई भाजपा सांसद उनकी हंसी उड़ाते नजर आए।
![](https://www.forwardpress.in/wp-content/uploads/2019/01/arun-jetaly.jpg)
जेटली की दलील
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि राज्यों ने भी आरक्षण देने की कोशिश की, लेकिन वह सुप्रीम कोर्ट में जाकर रद्द हो गया। इसके लिए सही रास्ता नहीं अपनाया गया। उन्होंने कहा कि शिकायत करके बिल के समर्थन की जरूरत नहीं है अगर समर्थन करना ही हो तो खुले दिल से इस बिल का समर्थन करें। जेटली ने कहा कि आज कांग्रेस और उसके साथियों की परीक्षा है। चर्चा के दौरान अरुण जेटली ने कहा कि संविधान में 50 फीसदी आरक्षण का दायरा सामाजिक तौर पर पिछड़े वर्गों के लिए लागू है, आर्थिक तौर पर पिछड़ों के लिए यह लागू नहीं है। उन्होंने कहा कि सामाजिक और आर्थिक तौर पर भेदभाव खत्म करने की कोशिश इस बिल के जरिए की जा रही है। उन्होंने कहा कि आज हर नागरिक को समान अवसर देने की जरूरत है। आर्थिक आधार पर आरक्षण 50 फीसदी से भी ज्यादा हो सकता है, क्योंकि वह जातिगत आरक्षण से अलग है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि आज तक कई सरकारें आईं, जिन्होंने अनारक्षित वर्ग को आरक्षण देने की बात कही थी; लेकिन सही रास्ता नहीं अपनाया। उन्होंने कहा कि अनारक्षित वर्ग को आरक्षण देने का जुमला तो विपक्षी दलों ने दिया था।
![](https://www.forwardpress.in/wp-content/uploads/2019/01/thavarchand-gahlot-12.jpg)
अबकी गलती नहीं होगी : थावर चंद गहलोत
विधेयक पर हुई बहस का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा कि भारत सरकार और राज्य सरकार दोनों को अपने अधीन सेवाओं में गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने का अधिकार होगा। इसके अलावा निजी क्षेत्र की नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा। गहलोत ने कहा कि पहले भी इस तरह का आरक्षण देने की कोशिश की गई थी, लेकिन संविधान में संशोधन के बगैर ऐसा नहीं किया जा सकता। मंत्री ने कहा कि संविधान में बदलाव के जरिए ही आरक्षण देना मुश्किल है, ताकि बाद में कोई भी सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती नहीं दे सके।
मंत्री ने कहा कि लंबे समय से आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण की मांग की जा रही है। गहलोत ने कहा कि हम सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को आर्थिक मदद देते हैं, लेकिन वह पर्याप्त नहीं है। इसलिए, हमारी सरकार सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए ये संविधान संशोधन बिल लेकर आई।
(कॉपी संपादन : प्रेम बरेलवी/कमल चंद्रवंशी)
(आलेख परिवर्द्धित : 10 जनवरी 2019, 1:33 PM)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें
मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया