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मामला विभागवार बनाम विश्वविद्यालयवार आरक्षण का है, रोस्टर के नाम पर फैलाया जा रहा भ्रम

पूरे देश में एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों को बताया जा रहा है कि यदि 200 प्वाइंट का रोस्टर लागू हो गया, तो विश्वविद्यालयों में उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो जाएगा। परंतु, ऐसा नहीं है। यह भ्रम फैलाया जा रहा है। असल मामला विश्वविद्यालयवार आरक्षण लागू करने का है

(22 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने  विश्वविद्यालयों में आरक्षण के संबंध में भारत सरकार और यूजीसी द्वारा दायर की गई पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया। उसने 2017 में दिए गए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि विश्वविद्यालयों में नियुक्ति हेतु आरक्षण का आधार विभाग होना चाहिए न कि विश्वविद्यालय। इस फैसले का पूरे देश में विरोध शुरू हो गया। सरकार से मांग की जाने लगी कि वह इसे निरस्त करने के लिए अध्यादेश लाए। आदिवासी, दलित और ओबीसी समुदाय का विरोध जोर पकड़ ही रहा था कि विरोध की दिशा बदल दी गई। अचानक विभागवार आरक्षण बनाम विश्वविद्यालयवार आरक्षण के बदले 200 प्वाइंट रोस्टर बनाम 13 प्वाइंट रोस्टर की बात की जाने लगी।  द्विज समुदाय के कुछ लोग और कुछेक संगठन भी 200 प्वाइंट रोस्टर बहाल करने की मांग करने लगे। जबकि, इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कोई बात ही नहीं कही। इसी दौरान 31 जनवरी 2019 को केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने संबंधी अधिसूचना भी जारी कर दी। इसी अधिसूचना में रोस्टर प्रणाली में भी बदलाव कर दिया गया और हर 10वां पद गरीब सवर्ण के लिए आरक्षित कर दिया गया। प्रस्तुत साक्षात्कार में आईआईटी, रुड़की के प्रोफेसर उदय सिंह यह बता रहे हैं कि किस तरह पूरे विमर्श को दिशाहीन और एक तरह से द्विज-पक्षधर बना दिया गया है।- प्रबंध संपादक)

फारवर्ड प्रेस (फा. प्रे.) : यह रोस्टर क्या है? इसे लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति है।

प्रो. उदय सिंह : आप सही कह रहे हैं। भ्रम की स्थिति ही है; क्योंकि कभी 40 प्वाइंट रोस्टर की बात हो रही है, तो कभी 13 प्वाइंट तो कभी 200 प्वाइंट रोस्टर की। असल में रोस्टर एक सूची है, जिसके आधार पर आरक्षण लागू किया जाता है। इसमें तय प्रावधानों, मसलन- एसटी को 7.5 प्रतिशत, एससी को 15 प्रतिशत और ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण के आधार पदों का क्रम बनाया जाता है। इसके आधार पर ही इसका हिसाब भी रखा जाता है; ताकि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा का उल्लंघन न हो और आरक्षण तय सीमा के भीतर मिलता रहे।

इसमें 2 जुलाई 1997 से पहले तक, जो रोस्टर बनाया जाता था, वह कुल रिक्त पदों के आधार पर होता था। यानी एक विभाग में एक ही कैडर के रिक्त पदों के आधार पर। तब यह कोई खयाल नहीं रखता था कि कुल सृजित पदों पर आरक्षण का अनुपालन किया जा रहा है या नहीं। सब असंतुलित-सा था। लेकिन, सभ्भरवाल केस में कोर्ट ने साफ कह दिया कि आरक्षण की गणना कुल सृजित पदों के आधार हो, न कि रिक्त पदों के आधार पर। इसे ऐसे समझें कि किसी विभाग में यदि 100 पद हैं, जिसमें से 50 पदों पर पहले से नियुक्ति हो चुकी है। 2 जुलाई 1997 को केंद्रीय कार्मिक व शिकायत निवारण मंत्रालय (डीओपीटी) के द्वारा रोस्टर संबंधी अधिसूचना जारी करने के पहले प्रावधान यह था कि रिक्त 50 पदों पर ही रोस्टर बनाया जाता था। इस कारण होता यह था कि पहले से हुई नियुक्तियों में अधिकांश पदों पर सामान्य वर्ग का कब्जा था। इसके बाद रिक्त पदों पर रोस्टर बनाने से उनकी (सामान्य वर्ग) की संख्या अधिक हो जाती थी और आरक्षित वर्गों का प्रतिनिधित्व कम हो जाता था। ऐसा न हो, इसके लिए ही यह प्रावधान किया गया था कि रिक्त पदों के बदले कुल सृजित पदों के आधार पर रोस्टर बनाया जाए।

इसका एक और उदाहरण ऐसे भी दे सकते हैं। जैसे 1980 में किसी विभाग के पास 100 पद हैं। अब मान लें कि 2012 में कोई नियुक्ति होनी है और यह पाया गया कि 50 पद तो पहले से ही भरे हुए हैं। इसमें यह पाया गया कि एससी के पास तीन पद हैं। एसटी के मान लीजिए कि दो पद हैं और ओबीसी के 10 पद हैं। बाकी सब सामान्य हैं। इस प्रकार जो ऑक्यूपाइड (भरे हुए पद) हैं, उनमें केवल 15 पद आरक्षित वर्गों के पास हैं और 35 पद सामान्य वर्ग के पास। अब जो शेष 50 खाली पद हैं, जिन पर नियुक्तियां होनी हैं; तो 100 में से 15 पद एससी के पास होने चाहिए; 27 पद ओबीसी के पास होने चाहिए और 7.5 तो कोई नंबर होता नहीं है, तो उसमें कम-से-कम 7 पद एसटी के लिए होने चाहिए। रोस्टर बनाते समय यह भी खयाल रखना पड़ेगा कि इन 50 रिक्त पदों पर जो नियुक्तियां होनी हैं, उनमें से एक-दाे पद रिटायरमेंट के कारण रिक्त हुए होंगे और यह भी संभव है कि कुछ नए पद सृजित किए गए होंगे। कुल मिलाकर अब जो रोस्टर बनेगा, वह यह सुनिश्चित करने के लिए कि आरक्षित वर्गों का आरक्षण प्रावधानों के हिसाब से  मिल सके। उनके साथ हकमारी न हो। यानी 50 में 12 पद एससी के होंगे। क्योंकि, उसके पास पहले से तीन पद हैं। ओबीसी के पास पहले पदों की संख्या 10 है और उसका आरक्षण 27 फीसदी है, इसलिए 50 पदों की नयी नियुक्तियों में कम-से-कम 17 पद और चाहिए। इसी प्रकार एसटी उम्मीदवारों के लिए कम-से-कम 7 पद होने चाहिए। इसलिए, नए रोस्टर में उसके लिए 5 और पद होंगे। तभी आरक्षण लागू हो सकेगा।

आपको एक बार फिर बता दूं कि यह तभी संभव हो पाया, जब सभ्भरवाल केस में कोर्ट ने यह प्रावधान किया कि आरक्षण का निर्धारण कुल सृजित पदों के आधार हो, न कि रिक्त पदों के आधार पर। इस संबंध में 2 जुलाई 1997 को डीओपीटी के द्वारा सर्कुलर जारी किया गया था

आईआईटी, रूड़की के प्रोफेसर उदय सिंह

फा. प्रे.: अच्छा! लेकिन, एससी-एसटी का आरक्षण तो संविधान लागू होने के साथ ही प्रभावी हो गया था। क्या उनके साथ 1997 तक हकमारी होती रही?

प्रो. उ.सिं.: हां जी, हां; बिलकुल होती रही। क्योंकि, इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। रिक्तियों पर ही रोस्टर बनाया जाता था। हालांकि, सीधे-सीधे हकमारी भी नहीं कह सकते; क्योंकि उम्मीदवार भी नहीं मिलते थे। तो ऐसे में पद खाली रह जाते थे। लेकिन, कहीं-कहीं पर हकमारी जरूर हुई है। जो लिपिक श्रेणी के पद थे- ग्रुप-बी और ग्रुप-सी के, उन पदों के लिए तो उम्मीदवार मिल ही जाते थे।

फा. प्रे.: यह जो 200 प्वाइंट रोस्टर और यह 40 प्वाइंट रोस्टर जो है, वो दोनों अलग-अलग कैसे हैं?

प्रो. उ.सिं.: इसे ऐसे समझिए। 2 जुलाई 1997 के पहले जब रिक्त पदों के आधार पर आरक्षण का प्रावधान होता था। जब यह किया जाता था कि पहला और दूसरा पद एससी और एसटी के लिए चिह्नित कर लिया जाता था। फिर सामान्य वर्गों के लिए पद का निर्धारण होता था। इसके लिए 40 पदों का एक सैंपल लिया जाता था। हालांकि, यह कोई फिक्स नहीं था। मान लें कि किसी विभाग के एक कैडर में पदों की संख्या 125 है। अब यदि हम 13 प्वाइंट रोस्टर लगाते हैं, तो हर 13वें पद के बाद एक चक्र पूरा हो जाएगा। यदि 40 प्वाइंट रोस्टर लगाते हैं, तो 40वें पद पर एक चक्र पूरा होगा और उसके आगे फिर नया चक्र शुरू होगा। अब यदि 200 प्वाइंट का रोस्टर लगाते हैं, तो यह 125 तक चलेगा। तकनीकी रूप से बात करें, तो 2 जुलाई 1997 के पहले जो 40 प्वाइंट रोस्टर था, उसे 200 प्वाइंट रोस्टर कर दिया गया। 13 प्वाइंट रोस्टर में कुछ पेंच है।


 फा. प्रे.: मेरा अगला सवाल उसी से जुड़ा है। लेकिन, मैं उससे पहले यह जानना चाहता हूं कि जैसे 200 प्वाइंट रोस्टर वाले में जो चौथा पद होगा; वह रिजर्व होगा। 40 प्वाइंट रोस्टर में क्या था?

प्रो. उ.सिं.: अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण का प्रावधान 1993-94 में किया गया। उससे पहले ओबीसी के लिए आरक्षण नहीं था। केवल एससी-एसटी का आरक्षण था। तब 40 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम चलन में था। तब कोई निश्चित नियमावली नहीं थी। पहले चार पद भी आरक्षित हो सकते थे। यह भी हो सकता था कि पहले चार पदों में पहला और दूसरा पद एससी-एसटी को दे दें और तीसरा-चौथा सामान्य वर्ग को। लेकिन, अभी 200 प्वाइंट में क्या है कि अगर तीन पद हैं, तो वे सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों से ही भरे जाएंगे और अगर चार हों, तो एक पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार (ओबीसी) को मिल जाएगा। पांच हुए, तो एक पद ओबीसी से भरा जाएगा; बाकी सामान्य के लिए। पदों की संख्या छह हुई, तो पांच पद सामान्य से और एक पद ओबीसी से भरा जाएगा। और अगर पदों की संख्या सात हुई, तो एक पद ओबीसी से, एक पद एससी से और शेष पांच पद सामान्य उम्मीदवारों से भरे जाएंगे। ऐसा एक प्रावधान बना दिया कि किस तरह से आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षण काे लागू करना है।

यह इस तरह बनाया गया है कि कभी भी पदों की संख्या चाहे 10 हो, 25 हो, 125 हो  या 145 हो; आरक्षण की सीमा उतनी ही रहेगी, जितना कि प्रावधान में है। रोस्टर असल में एक मेथडोलॉजी है, जिससे रिजर्व कैटेगरी का शेयर मैंटेन रहे; न कम, न ज्यादा।

फा. प्रे.: लेकिन, अब जो 13 प्वाइंट रोस्टर की बात कही जा रही है; उसमें खास क्या है?

प्रो. उ.सिं.: 2 जुलाई 1997 काे जो नोटिफिकेशन डीओपीटी ने जारी किया, उसमें इसका प्रावधान किया गया। यह इसलिए कि यदि किसी विभाग में पदों की संख्या 13 हो और 200 प्वाइंट रोस्टर के हिसाब से आरक्षण लागू किया गया; तब एसटी को कोई पद नहीं मिलेगा। यदि पदों की संख्या 14 हुई, तब एक पद एसटी को, एक पद एससी को और तीन पद ओबीसी को मिलेंगे। हालांकि, इसमें रोटेशन का प्रावधान है। जैसे 13वां पद जब पहली बार भरा जाएगा, तब वह सामान्य वर्ग के लिए होगा और जब दूसरी बार 13वें पद के लिए नियुक्ति होगी; तब इसे एसटी के लिए आरक्षित कर दिया जाएगा। इसे एक बार और समझें- 13 प्वाइंट रोस्टर के हिसाब से, जो सभी 13 पद पहली बार भरे जाएंगे; तो पहले तीन पद सामान्य वर्ग से, चौथा ओबीसी से और बाकी में पांचवां, छठा पद फिर सामान्य से, सातवां पद एससी से, फिर आठवां ओबीसी से, नौवां, 10वां, 11वां, 12वां, 13वां (ये अंतिम पांच पद) फिर सामान्य वर्ग से भरे जाएंगे। लेकिन, जब पद अगली बार खाली होंगे और नियुक्तियां होंगी, तो उनमें से कुछ पद रिजर्व कैटेगरी के पास चले जाएंगे। 200 प्वाइंट रोस्टर में रोटेशन नहीं होता है।

फा. प्रे.: अच्छा, इससे पहले कि हम लोग आगे बात करें, एक सवाल यह है कि 13 प्वाइंट रोस्टर को किसने बनाया है? क्या इसे डीओपीटी ने बनाया है?

प्रो. उ.सिं.: हां, इसे डीओपीटी ने बनाया है।

फा. प्रे.: इससे संबंधित कोई सर्कुलर भी जारी किया गया है? प्रो. उ.सिं.: हां, हां; 2 जुलाई 1997 को डीओपीटी द्वारा जारी सर्कुलर में इसका विस्तृत उल्लेख है।

फा. प्रे.:  मेरा प्रश्न 13 प्वाइंट रोस्टर से जुड़ा है?

प्रो. उ.सिं.: हां, बिलकुल। 13 प्वाइंट रोस्टर और 200 प्वाइंट रोस्टर सब एक ही सर्कुलर में दिया गया है।  

फा. प्रे.:  एक सवाल यह उठता है कि 13 प्वाइंट रोस्टर यदि लागू होता है, तो इससे आरक्षित वर्ग के लोगों को क्या नुकसान होगा?

प्रो. उ.सिं.: देखिए, नुकसान तो आरक्षित वर्ग को होगा ही। 200 प्वाइंट रोस्टर हो या 13 प्वाइंट रोस्टर; हर हाल में नुकसान आरक्षित वर्ग को ही होना है। इसे एक उदाहरण से समझें। किसी विभाग में हाई लेवल के 9 पद हैं, जिसके लिए नियुक्तियां होनी हैं। इसमें आरक्षितों को 49.5 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना है। आरक्षण 50 फीसदी से अधिक हो नहीं सकता है। कुल मिलाकर आधे पदों पर आरक्षण लागू होगा। लेकिन, साढ़े चार पद तो होंगे नहीं और पांच पदों पर आरक्षण 50 फीसदी की सीमा को पार कर जाएगा, जो कि संभव नहीं है। इसलिए, इस केस में चार पदों पर आरक्षण होगा। अब इसके लिए चाहे 200 प्वाइंट रोस्टर हो या फिर 13 प्वाइंट रोस्टर, केवल तीन पद ही आरक्षित वर्ग को मिलेंगे। दो ओबीसी को और एक एससी को। यानी चार से एक पद कम। ऐसे में एक पद का नुकसान, तो आरक्षित वर्ग को ही होगा। अब अगर कुल पदों की संख्या 10 हो, तो एक पोस्ट का और घाटा हो जाएगा। क्योंकि, 10 में से भी 3 पद ही आरक्षित वर्ग के लिए होंगे। यही स्थिति 200 प्वाइंट रोस्टर में भी रहेगी।

 13 प्वाइंट रोस्टर को भी देखें, तो आप पाएंगे कि 13 में से 7 पद सामान्य और 6 आरक्षित वर्ग के लिए होने चाहिए। लेकिन, आरक्षित वर्ग को मिलते हैं- केवल 4 पद। इनमें से तीन ओबीसी और एक पद एससी के लिए होता है। नुकसान किसका हुआ? नुकसान तो आरक्षित वर्ग को ही हुआ न!  

200 प्वाइंट रोस्टर एक आदर्श स्थिति है। यह ऐसे है कि 200 पदों में 27 फीसदी आरक्षण के हिसाब से 54 पद ओबीसी को, 15 फीसदी के हिसाब से एससी के लिए 30 और 7.5 फीसदी के हिसाब से एसटी के लिए 15 पद मिलेंगे।

फा. प्रे. : 13 प्वाइंट रोस्टर लागू होता है, तो क्या इससे सामान्य वर्ग को भी नुकसान होगा?

प्रो. उ. सिं. : नहीं, सामान्य वर्ग को कोई नुकसान नहीं है। उन्हें (सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को) किसी भी रोस्टर में नुकसान नहीं है। अब तो यह फंडामेंटल रूलिंग है- सुप्रीम कोर्ट की; कि कोई भी रोस्टर हो, 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। इसके लिए प्रावधान किए गए हैं, ताकि किसी भी हाल में इसका उल्लंघन न हो। यहां तक कि रोटेशन के बाद भी यदि आरक्षित वर्ग की हिस्सेदारी 50 फीसदी से अधिक हो, तो आरक्षण (के 50 से अधिक होने वाले पद) को स्किप (छोड़ दिया) किया जाएगा। यह गाइड लाइन (दिशा-निर्देश) में लिखा हुआ है। तो सामान्य वर्ग को किसी भी तरीके से कहीं भी नुकसान नहीं है।

फा. प्रे. : आपने बताया कि 13 प्वाइंट रोस्टर में रोटेशन की व्यवस्था है। तो मान लीजिए कि पहले पद पर कोई सामान्य वर्ग का व्यक्ति था, और वह जब सेवानिवृत्त होता है, उसके बाद तो वह पद चला जाएगा एसटी को?

प्रो. उ. सिं. : नहीं, नहीं। पहले नंबर का पद एसटी को नहीं जाएगा; 13वां पद जाएगा। पहला पद तो दूसरी बार और तीसरी बार भी सामान्य वर्ग को ही जाएगा। चौथी बार खाली होने पर ही वह ओबीसी के पास जाएगा। इसमें अलग-अलग तरह का रोटेशन है। इसे एक उदाहरण से समझें। मान लीजिए कि कुल पद 13 या 13 से कम हैं। 13 की 13 सीटें भर गईं, आज की तारीख में। 13 में से जो है चौथा, आठवां और बारहवां पद ओबीसी के पास है और सातवां पद एससी के पास है। तो जो सबसे पहले पद भरा गया था, वह अन-रिजर्व (अनारक्षित) कैटेगरी (वर्ग) का था। अगर उस पर रोटेशन (पुनर्नियुक्ति) जब भी होगा उस पद पर, तो पहली बार, दूसरी बार तो वह पद जाएगा वह अनारक्षित वर्ग को, तीसरी बार जाएगा ओबीसी को, चौथी बार फिर अनारक्षित वर्ग को जाएगा, पांचवीं बार भी अनारक्षित वर्ग को जाएगा, छठी बार जाएगा एससी के खाते में। ऐसे ही आगे चलते हुए सातवीं बार ओबीसी को जाएगी, आठवीं बार अनारक्षित वर्ग को, नौवीं बार भी अनारक्षित वर्ग को, 10वीं बार फिर अनारक्षित वर्ग को, 11वीं बार ओबीसी को। वह पहला पद एसटी को तब जाएगा, जब 13वीं बार नियुक्ति होगी। ऐसे ही यह जो है आपका दूसरा पद अगर है, तो वह पहली नियुक्ति तो सामान्य वर्ग के उम्मीदवार की हो रखी है। तो सेवानिवृत्ति के बाद जब पहली नियुक्ति होगी, तो अनारक्षित वर्ग को वह पद जाएगा, दूसरा पद ओबीसी को जाएगा और पांचवीं बार पद एसटी को जाएगा। रोटेशन जो है, वह अलग-अलग पद पर अलग-अलग तरह का है।

फा. प्रे. : क्या आपको नहीं लगता है कि जो यह पूरा विमर्श चल रहा है, जिसको लेकर आंदोलन किए जा रहे हैं, लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, उसके केंद्र में विभागवार आरक्षण बनाम विश्वविद्यालयवार आरक्षण होना चाहिए था? यह 200 प्वाइंट रोस्टर या फिर 13 प्वाइंट रोस्टर की बात कहां से आ गई? 

प्रो. उ. सिं. : हां बिल्कुल, यह तो आप सही कह रहे हैं। यह तो कहा ही नहीं जाना चाहिए कि 13 प्वाइंट रोस्टर या 200 प्वाइंट रोस्टर का मामला है। बल्कि, कहना यह चाहिए कि आरक्षण विश्वविद्यालय के आधार पर हो, न कि विभाग के आधार पर। हालांकि, लोगों का मतलब वही है। वे यह कहना चाह रहे हैं कि शायद ग्रुपिंग करने से ज्यादा पद हो जाएंगे; तो 200 प्वाइंट रोस्टर लग जाएगा और डिपार्टमैंट वाइज करने से पदों की संख्या कम रहेगी, तो 13 प्वाइंट रोस्टर हो जाएगा। उनका मतलब यही है कि यूनिवर्सिटी वाइज रोस्टर होना चाहिए। लेकिन, वह 200 या 13 प्वाइंट कहां से चल पड़ा? यह विवाद के मूल में नहीं है। न तो यूजीसी ने कुछ कहा है और न ही कोर्ट ने कहा है कि 13 प्वाइंट रोस्टर लगाओ। देखा जाए, तो बोलने की जरूरत ही नहीं है। वे तो यह कह रहे हैं कि अगर 13 पोस्ट है, तो 13 प्वाइंट रोस्टर लगाओ; 13 से ज्यादा है, तो 200 प्वाइंट रोस्टर लगाओ। यह तो डीओपीटी के सर्कुलर में लिखा ही हुआ है।

फा. प्रे. : तो कहीं न कहीं भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है?

प्रो. उ. सिं. : बिलकुल, बिलकुल; यह बोलना चाहिए कि विश्वविद्यालयवार आरक्षण लागू हो। यही सही शब्दावली है।


फा. प्रे. : क्या आपको नहीं लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद रोस्टर के बदले जाने की संभावना बढ़ गई है? क्या यही वजह है कि ऊंची जातियों के लोग भी 200 प्वाइंट रोस्टर लागू करने की मांग कर रहे हैं? इसके पीछे उनकी मंशा क्या है?

प्रो. उ. सिं. : इसका कारण आर्थिक आधार पर उन्हें दिया गया 10 फीसदी आरक्षण है। वे यह समझ रहे हैं कि 13 प्वाइंट रोस्टर लागू हो गया, तो जाहिर तौर पर एसटी, एससी और ओबीसी को नुकसान होगा। ऐसे में 10 फीसदी का जो आरक्षण उन्हें दिया गया है, वह ऊंची जातियों के अभ्यर्थियों को भी नहीं मिलेगा।

फा. प्रे. : आर्थिक आधार पर जो 10 फीसदी आरक्षण का सरकार देने जा रही है, उसके लिए सरकार रोस्टर में कुछ न कुछ तो बदलाव करेगी ही?
प्रो. उ. सिं. : देखिए, यह तो सरकार ने कर दिया है। इसके लिए 31 जनवरी को ही डीओपीटी द्वारा अधिसूचना जारी कर दी गई है। इसी में दोनों मॉडल दिए गए हैं। 200 प्वाइंट रोस्टर का भी और 13 प्वाइंट रोस्टर का भी।

फा. प्रे. : क्या बदलाव किया गया है?

प्रो. उ. सिं. : कुछ नहीं, जहां पर 10वां प्वाइंट था न रोस्टर में, उसकी जगह पर पहले यूआर (अनारक्षित) लिखा होता था; तो अब वहां ईडब्ल्यूएस कर दिया है। ऐसे ही 10-10 के हिसाब से किया गया है, लेकिन 20वां प्वाइंट पहले ही शेड्यूल कास्ट (एससी) के पास था, तो फिर उन्होंने वहां 20वां न करके 21वां किया गया है।

फा. प्रे. : एक सवाल विभागवार आरक्षण के संबंध में। आपके हिसाब से सरकार से चूक कहां हो गई कि सुप्रीम कोर्ट ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया?

प्रो. उ. सिं. : यह बहुत महत्वपूर्ण सवाल है। दरअसल, कोर्ट को यह बताया गया कि यदि विश्वविद्यालय के आधार पर आरक्षण लागू किया गया, तो एक संभावना यह बनेगी कि किसी एक विभाग के सारे पद या तो आरक्षित वर्ग के पास होंगे या फिर अनारक्षित वर्ग के पास। कोर्ट को यह भी बताया गया कि अलग-अलग विषयों के प्रोफेसर अलग-अलग हैं; एक नहीं। मतलब हिंदी और गणित के प्रोफेसर अलग-अलग हैं। उन्हें अलग-अलग आरक्षण देना चाहिए। इस संबंध में सरकार को जो जवाब देना चाहिए था, वह नहीं दे पाई। जैसे मैं आपको बताऊं कि सरकार की पहले से पॉलिसी रही है। 2 जुलाई 1997 को डीओपीटी के सर्कुलर में भी इसका उल्लेख है कि यदि दो अलग-अलग कैडर में पदों की संख्या कम है, तो उसे एक साथ मिला लिया जाए। लेकिन, यह भी ध्यान रखा जाए कि अलग-अलग कैडर में भी आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से अधिक न हो। यह पहले से ही नीति रही है। आपको उदाहरण से समझाता हूं। मान लें कि किसी विश्वविद्यालय/कॉलेज में हिंदी में प्रोफेसर के पांच पद हैं और इंग्लिश में छह पद हैं। कुल 10 पद हो गए। अब होगा यह कि इस 11 में से दो पद ओबीसी और एक पद एससी को मिलेगा; जैसा कि 13 प्वाइंट रोस्टर का प्रावधान है। लेकिन, यह व्यवस्था की जा सकती है कि हिंदी के पांच पदों में से दो पद आरक्षित वर्ग को और अंग्रेजी के छह पदों में से तीन पद आरक्षित वर्ग दिए जा सकते हैं। यह नियम के विरुद्ध नहीं है। सरकार ने यह पक्ष नहीं रखा। जबकि यह बात पहले से है।

फा. प्रे. : अच्छा अंतिम सवाल। आपके हिसाब से क्या हो, ताकि जो आरक्षित वर्ग का रिप्रेजेंटेशन सुनिश्चित हो?

प्रो. उ. सिं. : बस कुछ नहीं, जो डीओपीटी का 2 जुलाई 1997 का नोटिफिकेशन है, या यूजीसी की गाइडलाइन है- 2006 की; जिसे कोर्ट ने क्वैश (खत्म) किया है, उसे ही बहाल करना पड़ेगा। या तो सुप्रीम कोर्ट अपने आप ही बहाल कर दे; हालांकि इसकी उम्मीद नहीं है। या फिर सरकार को ही कानून बनाना पड़ेगा। फिलहाल तो यही एकमात्र विकल्प है, जिससे आरक्षित वर्गों की हकमारी न हो।

(कॉपी संपादन व लिप्यांतरण : प्रेम बरेलवी/सिद्धार्थ)


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