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राष्ट्रीय महिला सम्मेलन : महिलाओं पर अत्याचार और नरेंद्र मोदी के खिलाफ भरी हुंकार

जब तक हमारा संविधान है, तभी तक हम अपनी बात रख पा रहे हैं। जिस दिन संविधान को डस्टबिन में डाल दिया जाएगा, उस रोज हम आपस में बात भी नहीं कर पाएंगे। हमें घरों में कैद कर दिया जाएगा। यह बात ‘हम ही से संविधान’ शीर्षक से आयोजित महिला सम्मेलन में मानवाधिकार प्रचारक शबनम हाशमी ने कही

कांस्टीट्युशन ऑफ इंडिया के सभागार में 12 फरवरी को  ‘हम ही से संविधान’ शीर्षक से एकदिवसीय महिला सम्मेलन संपन्न हुआ। सम्मेलन की मुख्य आयोजक शबनम हाशमी थीं। यह सम्मेलन महिलाओं के संवैधानिक अधिकार पर हमले के खिलाफ, भारत का संविधान और इसमें निहित मूल्यों को बचाने के लिए किया गया। पूरा कार्यक्रम चार सत्रों में- ‘क्राइसेस फेसिंग द नेशन’, ‘वॉयसेस फ्रॉम एक्रॉस इंडिया’, ‘वूमेन रजिस्ट’ और ‘वॉयसेस ऑफ पोलिटिकल लीडर्स’ विभाजित था। सम्मेलन में सभी वक्ता महिलाएं थीं। तकरीबन सभी वक्ताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की और महिलाओं पर बढ़ते अत्यचार पर चिंता व्यक्त की।

महिला सम्मेलन में उपस्थित समाजसेवी महिलाएं

2018 में गई 88 लाख महिलाओं की नौकरी

पहले सत्र में सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार प्रचारक शबनम हाशमी ने अपनी बात रखी। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी का नाम लिए बगैर कहा- “गैंगरेप की घटनाएं पहले गुजरात में होती थीं। गुजरात को कम्युनल लेबोरेटरी बनाने के बाद जब वे केंद्र में आए, तो यह पूरे देश में फैल गया। 2018 में 110 लाख लोगों की नौकरियां गई हैं, इनमें से 88 लाख महिलाएं हैं। इसमें से 66 लाख तो गांव की दलित-पिछड़े वर्ग की महिलाएं हैं, जो खेती-मजदूरी का काम करती थीं। 1957 में स्पेशल मैरिज एक्ट लाया गया, जबकि उस वक्त 22-24 प्रतिशत महिलाएं ही साक्षर थीं। यह भविष्य की ओर देखने वाली बात थी कि यूनिवर्सिटीज-कॉलेजों में लड़के-लड़कियां एक साथ पढ़ेंगे, एक-दूसरे को जानेंगे। साढ़े चार हजार कम्युनिटी के लोग आपस में मोहब्बत से रहेंगे। कभी वे आपस में शादी करना चाहें, तो उनका धर्म, उनकी जाति आड़े न आए। इसी सोच के साथ स्पेशल मैरिज एक्ट बनाया गया था। हमारे समय की जो पीढ़ी थी, उसका समाज बहुत कंजर्वेटिव था; उनका खानदान बहुत कंजर्वेटिव था। लेकिन, फिर भी सड़क पर कोई एंटीरोमियो स्क्वॉड हमको मारने के लिए नहीं आया। लेकिन, आज हालात ये हैं कि कोई लड़का-लड़की किसी रेस्त्रां में साथ चाय पीना चाहें, या किसी पार्क में बैठना चाहें, या सिनेमा देखने जाना चाहें तो उनके दिमाग में एंटी रोमियो स्क्वॉड का डर रहता है। जब तक हमारा संविधान है, तभी तक हम इस हॉल में खड़े हैं। जिस दिन संविधान को डस्टबिन में डाल दिया जाएगा उस रोज हम आपस में बात भी नहीं कर पाएंगे। हमें वापिस घरों में कैद कर दिया जाएगा। आज वर्कफोर्स से महिलाएं हटाई जा रही हैं।”

सम्मेलन में अपनी बात रखतीं प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी

तीन तरफ से किया जा रहा हमला

निवेदिता मेनन ने कहा- “तीन तरीके से हमला किया जा रहा है। पहला, शिक्षा का निजीकरण करके; दूसरा, रिजर्वेशन को खत्म करने की नीति अपनाकर और तीसरा, शिक्षा के कंटेंट का भगवाकरण करके। जबकि शिक्षा सर्व समाज के लिए मुफ्त और सार्वजनिक होनी चाहिए।”

वहीं, जगमति सांगवान ने कहा- “भाजपा ने हरियाणा में जाति को हथियार बनाकर इस्तेमाल किया। हिंसक जाट आरक्षण आंदोलन इसी के देन थी। हरियाणा में पहली चुनावी सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने पहला वाक्य  कहा, ‘मैं खापों की भूमि हरियाणा को नमन करता हूं।’ वो खाप पंचायतें जो ऑनरकिलिंग जैसे कृकृत्य करती हैं। जिसके समर्थक संविधान और कानून की धज्जियां उड़ाते हैं, चुनाव अभियान के दौरान सरकार उनकी पीठ पर हाथ धरती है। 35 बिरादरी एक तरफ, एक बिरादरी एक तरफ के जुमले उछालकर सरकार जातीय डिवीजन खड़ा किया गया, लोगों के दिलों में लकीरें खींची गई।”


लारा जेसानी ने संविधान और संवैधानिक संस्थाओं पर हो रहे हमलों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सरकार से कोई भी प्रश्न न करे इसके लिए विरोध करने वालों को क्रिमिनलाइज किया जा रहा है।

रुथ मनोरमा ने जाति, वर्ग और लिंग के विभेद के आधार पर हो रहे उत्पीड़न पर क्षोभ प्रकट किया। उन्होंने कहा कि सभी के संघर्ष को सामूहिक करना होगा। इस बंटवारे की कोशिश के खिलाफ हमें लड़ना होगा।

रचना ने उठाई ट्रांसजेंडरों की आवाज

रचना ने ट्रांसजेंडरों की समस्याएं उठाईं। उन्होंने कहा- “ट्रांसडेंडर अपने संवैधानिक अधिकारों को हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हमें रेप से बचाने के लिए कोई कानून नहीं है। हमारे शरीर को अपमानित करने और कुचलने का जरिया बना दिया गया है। मानवाधिकार सबके लिए समान होने चाहिए।”

राह चलते उठाई जा रहीं दलित-पिछड़े वर्ग की लड़कियां

उमा चक्रवर्ती ने कहा- “आज औरतें ह्यूमन ट्रैफिकिंग की सबसे ज्यादा शिकार हैं। सदियों से चली आ रही जातीय हिंसा जारी है। दलित पिछड़े वर्ग की लड़कियां राह चलते उठा ली जा रही हैं। जो औरतें जमीन पर संघर्ष कर रही हैं, उन्हीं पर हमले किए जा रहे हैं। ऐसी हजारों औरतें जेल में डाल दी गई हैं। फॉरेस्ट एक्ट-2006 को लागू करने की मांग कर रही आदिवासी औरतों का हिरासत में लेकर यौन उत्पीड़न किया जा रहा है। इन सब पर जितना गुस्सा समाज में होना चाहिए था, उतना गुस्सा समाज में नहीं है।”

सम्मेलन में श्रोता के रूप में उपस्थित महिलाएं

आदिवासी महिलाओं को जवान तक कर रहे गैंगरेप

दूसरे सत्र में ऋचा सिंह ने आदिवासियों के साथ सैनिकों और पुलिस द्वारा किए जा रहे रेप मामलों का कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा- “बस्तर में छत्तीसगढ़ में संविधान और लोकतंत्र को कुचला जा रहा है। वहां कोई भी सुरक्षित नहीं है। न जल, न जंगल, न जमीन न औरतें न बच्चे। पिछले हफ्ते लकड़ी काटने गई तीन औरतों को गोली मार दी गई। जबकि वो चिल्लाती रही कि वो गांव की आदिवासि महिलाएं हैं। एक औरत जो मर गई थी उसे सीआरपीएफ के जवान माओवादी के कपड़े पहना रहे थे। ताकि उसे माओवादी साबित कर सकें। जवानों द्वारा आदिवासी औरतों के साथ गैंगरेप किया जा रहा है।”

उन्होंने कहा- “आज हम (महिलाएं) यूपी में गाय, गोबर, कुम्भ और एनकाउंटर झेल रही हैं। कुतुबनगर गांव का नाम बदलकर परशुराम नगर कर दिया गया। वहां के दलित बाहुल्य बस्ती में बारिश के दिनों में पानी को लेकर हमेशा ही थोड़ा-बहुत विवाद होता है। लेकिन इस बार एक पक्ष पुलिस थाने में पहुंच गया। पुलिस दो लोगों को गांव से उठाकर ले गई। जब उनके पक्ष में 50-60 दिसत लोग ट्रैक्टर-ट्रॉली द्वारा थाने पहुंचे, तो उन पर जितेंद्र सिंह ने दो अन्य सिपाहियों के साथ मिलकर उन लोगों पर लाठियां भांजीं। 9 लोगों को पकड़कर जेल में बंद कर दिया। ये सब स्थानीय संगठन के इशारे पर किया गया था।”

दमयंती बरला ने आज कानूनों को कार्पोरेट के हित में बदले जाने की सरकार की नीति की कड़ी निंदा की।

नूरजहां दीवान ने गुजरात दंगों का जिक्र किया। साथ ही उन्होंने देश में फैलाई जा रही नफरत और हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने को कहा। राजस्थान की नौरति बाई ने कहा कि संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार मिले हैं। लेकिन, इसके और हकीकत के बीच खतरनाक विसंगति है। उन्होंने कहा कि विशेष रूप से आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर लोगो के लिए कुछ क्षेत्रों में आवाज़ उठाने वाली महिलाओं को डायन और चुड़ैल कहकर खुलेआम मार दिया जाता है।

काश्मीर की नादिया शफ़ी ने कहा- “ काश्मीरियों की चुनौतियां और प्रयास कई बार अनसुने रह जाते हैं। लड़कियों को अपने अधिकारों के लिए जागरुक होने और उनका समर्थन करने की ज़रूरत है।”

एंजेला रंगद ने कहा- “पूर्वोत्तर ने संविधान के परिवर्तनकामी सिद्धांतों को हासिल नहीं किया है। लेकिन, मानवाधिकारों को प्रतिबंधित करने वाले एक भारी सैन्यशासन का सामना किया है। हमें विविधता की एकता के लिए सभी छोटे संघर्षों का आत्मसात् करना होगा।”

ऑल इंडिया सेक्स वर्कर नेटवर्क की कुसुम ने कहा- “इस देश में यौनकर्मियों के जीवन का कोई मूल्य नहीं है। हम हर रोज हतोत्साहित होते हैं। हमारे पास कोई प्रतिनिधित्व नहीं है और हमें सुने जाने ने के लिए हमें मंच चाहिए।”

सईदा हमीद (महिला अधिकार कार्यकर्ता, शिक्षाविद, लेखिका) (फाइल फोटो)

दबाई जा रही लोगों की आवाज

तीसरे सत्र की अध्यक्षता महिला अधिकार कार्यकर्ता, शिक्षाविद, लेखक और भारत के योजना आयोग के पूर्व सदस्य सईदा हमीद ने की। इस सत्र में जयती घोष ने कहा- “काम करने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और स्वास्थ्य का अधिकार ये नागरिकों के मौलिक अधिकार हैं। हमें एकजुट होकर यूनिर्सल राइट टू वर्क एंड पेंशन, ढंग की सस्ती स्वास्थ्य सुविधाएं, अच्छी और सस्ती शिक्षा -इन तीन मांगों को उठाना होगा और इनके लिए लड़ना होगा।”

अंजली भारद्वाज ने कहा- “सत्ता का विकेंद्रीरण करके हमें उसमें भागीदारी मिलनी चाहिए। हर कोई अपनी सत्ता को बंटवारा नहीं चाहता। इसके लिए हमें संघर्ष करना पड़ेगा। आज अफस्फा, यूएपीए व राष्ट्रद्रोह की धाराओं का इस्तेमाल करके अपने खिलाफ उठने वाली आवाज दबाई जा रही है। न्यायालय समेत सभी संवैधानिक संस्थाओं पर हमला किया जा रहा है। सत्ता प्रायोजित लिंचिंग की जा रही है। पुलिस पीड़ित के खिलाफ ही केस दर्ज कर रही है। विसल ब्लोवर कानून और लोकपाल नहीं आने दिया गया।”

कल्याणी मेनन सेन ने कहा- “हमारी लड़ाई केवल पितृसत्ता से नहीं फासीवाद से भी है। हमारा संघर्ष अकेले नहीं जी सर्वाइव कर सकता हमें एक साझा संघर्ष चाहिए।”

कविता श्रीवास्तव ने कहा- “स्त्रियों के पास हमेशा एकजुटता बल रहा है। विभिन्न संघर्ष एकजुट हो रहे हैं। हमें अपने मेसेज को फैलाने के लिए गानें और थिएटर का उपयोग करना चाहिए।”

गीता सेशु ने कहा- “मीडिया औरतों की आवाज, प्रतिनिधित्व और उनके नेतृत्वकारी भूमिका में मौजूदगी को बहिष्कृत कर देता है।”

औरतों से सिर्फ एलपीजी पर बात करते हैं प्रधानमंत्री

चौथे सत्र की अध्यक्षता बुलबुलधर ने की। वृंदा करात ने कहा- “जन आंदोलन राजनीति की वास्तविक शक्ति है। आगामी चुनाव में एक नागरिक के तौर पर हम कैसे हिस्सा लेंगे ये सवाल पूछा जान चाहिए।”

अमरजीत कौर ने कहा- “हम औरतों के मुद्दे को आगे ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। चुनाव पूर्व राष्ट्रीय महिला सम्मेलन आयोजित करना एक महत्वपूर्ण विचार है।”

सुष्मिता देव ने कहा- “प्रधानमंत्री औरतों की बात सिर्फ एलपीजीया बेटियों के संदर्भ में करते हैं, औरतों को एक स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूप में नहीं। हम कैसे सोचें कैसा बर्ताव करें इसके लिए हमें कोई डिक्टेट नहीं कर सकता।”

सम्मेलन में पहले सत्र के बाद ‘राग’ की टीम ने गीत प्रस्तुत किए। इस सम्मेलन के प्रायजक पीयूसीएल, एसएनएस, ओबीआर इंडिया, एमकेएसएस और अनहद शामिल थे।

(कॉपी संपादन : प्रेम बरेलवी)


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लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

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