ई.वी. रामासामी नायकर ‘पेरियार’ आधुनिक युग के महान वैश्विक चिंतकों और विचारकों में से एक हैं। वे हर तरह की कूपमंडूकता, जड़ता, अतार्किकता और विवेकहीनता को चुनौती देते हैं। अन्याय, असमानता,पराधीनता और दासता का कोई रूप उन्हें स्वीकार नहीं है। तर्कपद्धति , तेवर और अभिव्यक्ति शैली के चलते उन्हें सुकरात और वाल्तेयर की श्रेणी का दार्शनिक, चिंतक, लेखक और वक्ता माना जाता है, जिनकी सशक्त आवेगात्मक अभिव्यक्ति पाठक के मन-मस्तिष्क को हिला देती है। पाठक को उनका लेखन बिजली के झटके की तरह लगता है, जो उसे बैचैन और उद्विग्न कर देता है। वर्चस्व, अधीनता और अन्याय के सभी रूपों का खात्मा करने के लिए प्रेरित करता है। सबके लिए समृद्धि, न्याय और समता आधारित दुनिया रचने के लिए उद्धत करता है।
पेरियार भारत की श्रमण-बहुजन परंपरा के ऐसे लेखक हैं, जो भारत में वर्चस्व के सभी रूपों के खिलाफ आजीवन लिखते और संघर्ष करते रहे है। उन्होंने उत्तर भारतीय द्विजों की आर्य श्रेष्ठता के दंभ, ब्राह्मणवाद, वर्ण-जाति व्यवस्था, ब्राह्मणवादी पितृसत्ता और शोषण-अन्याय के सभी रूपों को चुनौती दी।
इन दिनों उत्तर भारत में दो विपरीत परिघटनाएं एक साथ घट रही हैं। एक तरफ आरएसएस के नेतृत्व में द्विज जातियों के वर्चस्व को कायम रखने और उसे और मजबूत बनाने के लिए ब्राह्मणवादी-मनुवादी हिंदू संस्कृति एवं वैचारिकी को स्थापित करने के लिए चौतरफा प्रयास हो रहा है, जिसे राजसत्ता का भी खुला समर्थन मिल रहा है। दूसरी तरफ बहुजन समाज के भीतर एक गहरी वैचारिक उथल-पुथल चल रही है और बहुजन नायकों और उनके विचारों के प्रति एक तीव्र आकर्षण पढ़े-लिखे तबके में दिखाई दे रहा है। इस आकर्षण के केंद्र में फुले, पेरियार और आंबेडकर हैं। फुले और आंबेडकर को जानने-समझने के लिए कुछ बुनियादी साहित्य हिंदी में मौजूद है, लेकिन पेरियार के जीवन और उनके विचारों के बारे में प्रमाणिक साहित्य का अभाव अभी भी बना हुआ है।
पेरियार जीवन और विचारों को केंद्र में रखने वाली इस किताब की मांग निरंतर पाठकों द्वारा की जा रही है। अब फारवर्ड प्रेस ने इसे नए परिवर्द्धित रूप में प्रकाशित करने का निर्णय लिया है।
फारवर्ड प्रेस से शीघ्र प्रकाशित होने जा रही यह किताब पिछले संस्करण का महज पुनर्मुद्रण नहीं होगी। बल्कि इसमें पेरियार के कई नए लेखों को शामिल किया गया है। इसके साथ ‘पेरियार के सुनहरे बोल’ शीर्षक से पेरियार के महत्वपूर्ण उद्धरणों को भी इसमें समाहित किया गया है। इसकी जरूरत के संदर्भ में प्रमोद रंजन कहते हैं कि “पेरियार के प्रतिनिधि लेखों, भाषणों व उद्धरणों का यह चयनित संकलन हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि लोग यह जान सकें कि पेरियार धर्म, राजनीति आदि के बारे में क्या सोचते थे, वह किस तरह का समाज बनाना चाहते थे, श्रमिकों के लिए उनके क्या विचार थे, सामाजिक व्यवस्था में सुधार कैसे हो और यह भी कि उनका बुद्धिवाद क्या था?”
वे बताते हैं कि “पेरियार के इस प्रतिनिधि विचार संकलन के नए संस्करण की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह होगी कि इसमें तमिल में लिखी सच्ची रामायण के अंग्रेजी अनुवाद ‘द रामायण : अ ट्रू रीडिंग’ अविकल नया अनुवाद भी समाहित रहेगा। सच्ची रामायण का एक हिंदी अनुवाद 1968 ललई सिंह ने प्रकाशित किया था, लेकिन ऐतिहासिक महत्व वाले उस हिंदी अनुवाद में अनेक भाषाई त्रुटियां थीं। नए हिंदी अनुवाद का उद्देश्य यह है कि पाठक ईवी रामासामी नायकर ‘पेरियार’ की सच्ची रामाणय से पंक्ति-दर-पंक्ति का सटीक तौर पर परिचित हो सकें।”
बहरहाल, फारवर्ड प्रेस की टीम इस किताब पर काम कर रही है तथा शीघ्र ही यह आपके हाथों में होगी। किताब के बारे में अपडेट पाने के लिए हमारे फेसबुक पेज से जुडे रहें!
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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