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गडकरी को हराकर संघ को नागपुर से उखाड़ फेंकना लक्ष्य : मनीषा बांगर

डॉ. आंबेडकर की दीक्षा भूमि नागपुर में पेशे से चिकित्सक मनीषा बांगर भाजपा के दिग्गज नितिन गडकरी को चुनौती दे रही हैं। उनके मुताबिक, वे गडकरी को हराकर आरएसएस को पराजित करना चाहती हैं

पेशे से चिकित्सक डा. मनीषा बांगर महाराष्ट्र के नागपुर लोकसभा क्षेत्र से पीपुल्स पार्टी ऑफ इंडिया (डेमोक्रेटिक) की तरफ से प्रत्याशी हैं। वर्तमान में यहां से बीजेपी के दिग्गज नेता और केंद्रीय भूतल व परिवहन मंत्री नितिन जयराम गडकरी सांसद हैं। उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में चार बार के सांसद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विलास मुत्तेमवार को हराया था।

बताते चलें कि नागपुर बहुजन-श्रमण परंपरा और ब्राह्मणवादी-मनुवादी परंपरा के संघर्ष का केंद्र रहा है। यह डॉ. आंबेडकर की दीक्षाभूमि है। अशोक विजय दशमी के दिन 14 अक्टूबर 1956 को यहां डॉ. आंबेडकर ने अपने 6 लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध धम्म ग्रहण किया था। महाराष्ट्र की उपराजधानी और विदर्भ का सबसे प्रमुख शहर नागपुर राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ का गढ़ भी है।

नागपुर से गडकरी के खिलाफ चुनाव लड़ने की वजह और मौजूदा दौर में बहुजनों की राजनीति को लेकर फारवर्ड प्रेस संवाददाता ने उनसे बातचीत की।

फारवर्ड प्रेस (फा.प्रे.) : आप लोकसभा का चुनाव क्यों लड़ रही हैं?

मनीषा बांगर (म.बां.) : यह सच है कि मैं संसद में बहुजनों के सवालों को मुखर तरीके से रखना चाहती हूं, उनकी आवाज बनना चाहती हूं। लेकिन मेरे चुनाव लड़ने की वजह केवल इतना भर नहीं है। बहुजनों के प्रतिनिधि कैसे हों, इसकी जैसी कल्पना डॉ. आंबेडकर ने की थी। मैं वैसी ही प्रतिनिधि बनना चाहती हूं। आजकल बहुजनों के प्रतिनिधि के नाम पर कांशीराम के शब्दों में कहें तो चमचों का बोलबाला हो गया है। ऐसे चमचे बहुजनों का प्रतिनिधित्व करने की जगह पर ब्राह्मणवादियों-मनुवादियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

मेरे लिए राजनीतिक चुनौती देने के साथ ही यह अवसर ब्राह्मणवादियों-मनुवादियों को वैचारिक और सांस्कृतिक चुनौती देने का भी है। संघ-भाजपा और कांग्रेस भारत में उच्च जातियों के वर्चस्व के उपकरण मात्र रहे हैं और आज भी हैं। मेरा और मेरी पार्टी का उद्देश्य उच्च जातियों के राजनीतिक वर्चस्व के साथ उनके सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक वर्चस्व को भी तोड़ना है। मेरे लिए यह संघर्ष हजारों वर्षों से आर्य-ब्राह्मणवादियों और अनार्य बहुजनों के बीच चले आ रहे संघर्ष की ही एक कड़ी है। मेरे लिए यह 2019 के इस लोकसभा के चुनाव में उतरना सिर्फ संसद पहुंचने या सांसद बनने तक सीमित नहीं है। मैं एक व्यक्ति या पार्टी की जीत लिए नहीं लड़ रही हूं, मैं बहुजनों की प्रतिनिधि के रूप में लड़ रही हूं।

फा.प्रे. : आपने कहा कि आप बहुजनों की प्रतिनिधि के रूप में लड़ रही है। आपके बहुजन में कौन-कौन शामिल हैं?

म.बां. :  मेरी और मेरी पार्टी की बहुजन की अवधारणा बहुत साफ है। हमारे लिए बहुजन का मतलब अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जन जातियां, ओबीसी और पसमांदा समुदाय के लोग हैं। जो किसी न किसी रूप में ब्राह्मणवाद-मनुवाद से उत्पीडित हैं और उससे मुक्ति चाहते हैं। मैं संसद के भीतर और बाहर इन सभी की आवाज बनना चाहती हूं। उनके लिए सड़कों के साथ संसद के भीतर भी संघर्ष करना चाहती हूं। साथ ही बहुजनों को उनके कठपुतली प्रतिनिधियों से मुक्त करना चाहती हूं।

नागपुर लोकसभा क्षेत्र से पीपीआई (डी) की उम्मीदवार डा. मनीषा बांगर]

फा.प्रे. : आपने नागपुर को ही क्यों चुना?

म.बां. : नागपुर प्राचीन काल से बहुजनों की भूमि रही है। डॉ. आंबेडकर ने ऐतिहासिक तथ्यों के साथ बताया है कि यह अनार्य नाग राजाओं को केंद्र रहा है। यहां नाग वंशीय राजाओं के नेतृत्व में बहुजन संस्कृति फली-फूली। जिसे बाद में आर्य-ब्राह्मणवादियों ने कुचक्र रचकर नष्ट किया। अनार्य नागों के इस क्षेत्र को डॉ. आंबेडकर ने अपनी दीक्षाभूमि के रूप में चुना। आज नागपुर आर्य-ब्राह्मणवादियों और बहुजनों के संघर्ष का केंद्र बन गया है। संघ-भाजपा का गढ़ बन गया है। मैं संघ को उसके गढ़ से उखाड़ फेंकना चाहती हूं। उन्हें और उनके विचारों को सीधी चुनौती देने लिए मैं चुनाव मैदान में हूं। मैं नितिन गड़करी को पराजित कर संघ को पराजित करना चाहती हूं। मेरे लिए नितिन गड़करी सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि बहुजनों के दुश्मन संघ की विचारधारा के प्रतिनिधि हैं।

फा.प्रे. : आज बहुत सारे नेता हैं जो खुद को बहुजनों का प्रतिनिधि बताते हैं। आप अलग कैसे हैं?

म.बां. : बहुजनों के नाम पर राजनीति कर रही अधिकांश बहुजन पार्टियां अपने मूल उद्देश्य से भटक गई हैं। कहीं न कहीं ब्राह्मणवाद की चंगुल में फंस गई हैं। देश को एक नए तरह की बहुजन राजनीति की जरूरत है। इसी जरूरत को पूरा करने के लिए मैं चुनाव मैदान में हूं।

(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ/नवल)


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