न्याय क्षेत्रे-अन्याय क्षेत्रे
“क्या मैं ही पहला आदमी हूँ जो इस पुकार को सुनकर ऐसा व्याकुल हो उठा हूँ या औरों ने भी इस आवाज़ को सुना है और सुनकर अनसुना कर दिया है? और क्या सचमुच जवान लड़की की आवाज़ को सुनकर अनसुना किया जा सकता है?”
(‘जहाँ लक्ष्मी क़ैद है’ 1957, राजेन्द्र यादव, पृष्ठ 228)
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पीठ ने 5 मार्च, 2019 को वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना (रेस्टीट्यूशन ऑफ कंजुगल राइट्स) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती एक जनहित याचिका (ओजस्व पाठक बनाम भारत सरकार) सुनवाई के लिए तीन न्यायमूर्तियों की खंडपीठ को सौंपी है। इस संदर्भ में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि जानना जरूरी है और दादाजी बनाम रख्माबाई केस (1884-88) की चर्चा के बिना बात अधूरी रहेगी।