बिहार के मुजफ्फरपुर में हालात सुधरने लगे हैं। जिले के मुख्य चिकित्सका पदाधिकारी डा. शैलेश प्रसाद सिंह के मुताबिक एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण बीते दो दिनों में केवल एक बच्चे की मौत हुई है। हालांकि अबतक मरने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर 174 हो गई है। बच्चों की मौत पर यह रोक इस वजह से भी लगी है कि 18 जून 2019 को बिहार सरकार ने चिकित्सकों की कमी को देखते हुए श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एसकेएमसीएच) के शिशु रोग विभाग में नौ सीनियर रेजीडेंट चिकित्कसों की प्रतिनियुक्ति की थी।
डा. शैलेश प्रसाद सिंह ने फारवर्ड प्रेस को दूरभाष पर बताया कि अब मरीजों की संख्या में भी काफी कमी आयी है। उनके मुताबिक 24 जून 2019 को दिन में पांच मरीज भर्ती किए गये। पहले यह संख्या रोजाना 15-20 हुआ करती थी।
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ध्यातव्य है कि इंसेफलाइटिस से बच्चों की मौत को लेकर राज्य सरकार और तंत्र की कार्यशैली पर सवाल उठाए गए थे। साथ ही यह सवाल भी उठा कि अधिकांश मृतक बच्चों का संबंध दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्गों से क्यों है। इसके मद्देनजर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रभावित इलाकों में सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण करवाने का आदेश दिया था। इस संबंध में 24 जून 2019 को अंग्रेजी दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित खबर के अनुसार पीड़ित परिवारों में 77 फीसदी गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करते हैं और उनकी रोजाना की आय सौ रुपए । साथ ही इसके अलावा यह आंकड़ा भी सामने आया है कि 66 फीसदी मृतक बच्चों के घरों के आसपास लीची के बगान थे।

बहरहाल, अभी तक यह साफ नहीं हो सका है कि बच्चों की मौत कैसे हुई और इसके कारण क्या हैं। हालांकि कई विशेषज्ञ इसके लिए गर्मी, लीची और कुपोषण तीनों को जिम्मेदार मान रहे हैं। अब जबकि चिकित्सकों की तैनाती और इलाज के बेहतर प्रबंध के कारण बच्चों की मौत पर अंकुश लगा है तब सवाल तो उठता ही है कि सरकार की नींद सौ से अधिक बच्चों की मौत के बाद क्यों खुली?
(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)
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