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इंसेफलाइटिस : चिकित्सकों की कमी बन रही बच्चों की मौत की वजह

बीते 18 जून के पहले बिहार के एसकेएमसीएच के शिशु रोग विभाग में सीनियर रेजीडेंट डाक्टर की तैनाती नहीं थी। स्वास्थ्य महकमे की नींद तब खुली जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वहां का दौरा किया

बिहार में एक्यूट इंसेफइलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के कारण मरने वाले बच्चों की संख्या 164 हो गयी है। हालांकि राज्य सरकार के द्वारा दावे किए जा रहे हैं कि बच्चों के इलाज में कोई कोर-कसर नहीं रखी जा रही है, जबकि सच्चाई यह है कि सरकार के पास पर्याप्त संख्या में डाक्टर उपलब्ध नहीं हैं और जो हैं भी उनमें से अधिकांश संविदा के आधार पर नियुक्त हैं। चिकित्सकों की पर्याप्त संख्या में कमी का असर बच्चों के इलाज पर पड़ रहा है।

इस बात की पुष्टि मुजफ्फरपुर के श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एसकेएमसीएच) के अधीक्षक डा.जी. के. ठाकुर ने फारवर्ड प्रेस को दूरभाष पर बातचीत के दौरान की। उन्होंने जानकारी दी कि वर्तमान में शिशु रोग विभाग में एक प्रोफेसर, 4 एसोसिएट प्रोफेसर, 4 असिस्टेंट प्रोफेसर और 9 सीनियर रेजीडेंट चिकित्सक हैं।

ध्यातव्य है कि 18 जून के पहले अस्पताल में सीनियर रेजीडेंट चिकित्सकों की तैनाती नहीं थी। स्वास्थ्य विभाग की नींद 18 जून 2019 को तब खुली जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एसकेएमसीएच पहुंचे। उसी दिन स्वास्थ्य विभाग के द्वारा एक आदेश पत्र जारी किया गया जिसमें 8 चिकित्सकों को एसकेएमसीएच में योगदान देने का निर्देश दिया गया। इनमें पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) के शिशु रोग विभाग के सीनियर रेजीडेंट डाक्टर नवीन्द्र कुमार, केशव पाठक, नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल, पटना (एनएमसीएच) के शिशु विभाग के सीनियर रेजीडेंट डाक्टर उमेश भारती, संजय कुमार और दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल (डीएमसीएच) के शिशु विभाग के सीनियर रेजीडेंट डाक्टर मृदुल कुमार शुक्ला, बैजू कुमार, रमन पासवान व आशुतोष कुमार शामिल हैं।

18 जून 2019 को एसकेएमसीएच में इलाजरत बच्चों को देखते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

इनमें से एक डाक्टर ने सरकारी आदेश की अवहेलना करते हुए योगदान देने से इंकार कर दिया। हालांकि स्वास्थ्य विभाग ने संविदा के आधार पर पटना के पीएमसीएच में सीनियर रेजीडेंट के पद पर कार्यरत इस चिकित्सक को फिलहाल बर्खास्त कर दिया है। जिस डाक्टर के खिलाफ यह कार्रवाई की गयी है उनका नाम डा. नवीन्द्र कुमार है। उन्हें 18 जून 2019 को देर शाम आठ बजे तक योगदान करने को कहा गया था। बाद में 19 जून 2019 को स्वास्थ्य विभाग ने पीएमसीएच के दो और शिशु रोग विशेषज्ञों डा. दिलीप कुमार और डा. भीमसेन कुमार को एसकेएमसीएच भेजने का आदेश जारी किया। इस प्रकार स्वास्थ्य विभाग ने सीएम के आदेश के बाद आनन-फानन में 9 सीनियर रेजीडेंट चिकित्सकों को तैनात किया है। हालांकि मरीजों की संख्या को देखते हुए यह संख्या भी अपर्याप्त है।

मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच में बच्चे की मौत पर बिलखते परिजन

वहीं दूसरी ओर एसकेएमसीएच में चिकित्सकों की कमी वाली बात को राज्य सरकार सिरे से नकारती है। मुजफ्फरपुर जिला के प्रभारी मंत्री श्याम रजक ने दूरभाष पर फारवर्ड प्रेस को बताया कि जिले में चिकित्सकों की कोई कमी नहीं थी। उनके मुताबिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी आईसीयू की व्यवस्था है।

यह भी पढ़ें : इंसेफलाइटिस से बेमौत मर रहे दलित-बहुजनों के बच्चे, देखें प्रमाण

बहरहाल, राज्य सरकार के आंकड़े ही बताते हैं कि बिहार के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों के स्वीकृत पदों की तुलना में नियुक्त चिकित्सकों की संख्या बहुत कम है। इसका अनुमान  इससे लगाया जा सकता है कि बिहार में चिकित्सकों के स्वीकृत पदों की संख्या 11,371 है और जबकि सिर्फ 2400 नियमित चिकित्सक कार्यरत हैं। इनमें 450 चिकित्सक प्रशिक्षण, प्रशासनिक व शोध आदि कार्यों के लिए तैनात हैं। इस प्रकार 1950 नियमित चिकित्सक वर्तमान में पदस्थापित हैं जिनका काम इलाज करना है। पीएमसीएच में कार्यरत एक सीनियर रेजीडेंट डाक्टर के मुताबिक बिहार के सरकारी अस्पतालों में शिशु रोग विशेषज्ञों की भारी कमी है। उनके मुताबिक पूरे बिहार में करीब 300 शिशु रोग विशेषज्ञ ही हैं।

(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)


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नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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