अय्यंकाली (28 अगस्त 1863 – 18 जून 1941) पर विशेष
मैंने पढ़े हैं कई सभ्यताओं के इतिहास
खोजा है, देश-प्रदेश के प्रत्येक इतिहास में
कहीं, कुछ भी नहीं मिला मेरी जाति पर
पृथ्वी पर नहीं कोई ऐसा कलमकार
जो लिखे मेरी जाति का इतिहास
जिसे डुबा दिया गया है रसातल में
जो खो चुकी है
इतिहास की अतल गहराइयों में
—पोईकायल योहान्न, मलयाली कवि
इतिहास सभ्यता का ऐसा दर्पण है, जो सिर्फ सतह से ऊपर देखता है। इसलिए उसमें राजा-महाराजों के ऐश्वर्य राग, लड़ाइयां, स्वामीभक्ति और बुजदिली के किस्से, रणनीति और राजनीति, षड्यंत्र और विश्वासघात—यही सब दिखाई पड़ते हैं। इतिहास उन स्वेद-बिंदुओं की गिनती याद नहीं रखता जो खेती करने वाले किसान, मजदूर इसलिए बहाते हैं, ताकि राजा-महाराजाओं के अन्न-भंडार भरे रहें। उनके मंत्रियों, सिपहसालारों के चेहरे दिपदिपाते रहें। वह देवताओं और पैगंबरों के किस्सों को सहेजता है। जाति, धर्म और सांप्रदायिकता के नाम पर हुए दमन के उन किस्सों को भूल जाता है, जो जमीन के लोगों के हिस्से आते हैं। इसलिए ऐरिक हॉब्सबाम ने सलाह दी थी कि इतिहास को केवल उन सवालों के माध्यम से याद करना चाहिए जो हम उसे लेकर उठा सकते हैं—‘उस रूप में, जिसपरहम इतिहासकारों का भरोसा हो। इतिहास का ऐसा वस्तुनिष्ट सत्य, जिसे सवालों के जरिये जांचा–परखा जा सके। ठीक उस तरह जैसे हमउसे परखना चाहते हैं।’
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