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दमितों के लिए बिना झुके लड़ते रहे राजा ढाले

गत 16 जुलाई 2019 को राजा ढाले हमेशा के लिए हमसे दूर चले गए। श्रद्धांजलि के रूप में हम उनके साथी जे.वी. पवार की पुस्तक ‘दलित पैंथर्स: एन एथोरीटेटिव हिस्ट्री’ के चुनिन्दा अंशों की मदद से हम दलित पैंथर में जान फूंकने वाले इस जुझारू नेता के व्यक्तित्व का खाका खींचने का प्रयास कर रहे हैं

राजा ढाले (30 सितम्बर 1940 – 16 जुलाई 2019)

दलित पैंथर का जन्म देश भर में दलितों के विरुद्ध बढ़ते अत्याचारों के प्रतिक्रिया में हुआ था। तत्कालीन सरकारें और दलितों की तथाकथित प्रतिनिधि – रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया (आरपीई) – के नेतागण इन अत्याचारों की अनदेखी कर रहे थे। आरपीआई के नेता आपसी झगड़ों और सत्ताधारी कांग्रेस की लल्लो-चप्पो करने में व्यस्त थे। जे.वी. पवार, अपनी पुस्तक, ‘दलित पैंथर्स: एन एथोरीटेटिव हिस्ट्री’, में लिखते हैं कि 1970 के दशक की शुरुआत में नामदेव ढसाल और उनके द्वारा दलित पैंथर की स्थापना के बाद, इस संगठन को राजा ढाले ने पोषित किया और आगे बढ़ाया। ढाले उस वक्त 30-35 वर्ष के थे। उनके व्यक्तित्व का चित्र खींचते हुए, पवार लिखते हैं कि वे आग उगलने वाले लेखक और वक्ता थे। परन्तु वे उतने ही संवेदनशील और उदार भी थे। कई लोग केवल उनका भाषण सुनने के लिए दलित पैंथर की सभाओं में आया करते थे। सत्ता कभी उनका ध्येय नहीं रही। वे तो सबके साथ न्याय चाहते थे। पवार ने उनके बारे में जो लिखा है, उसे पढ़कर उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता।

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लेखक के बारे में

अनिल वर्गीज

अनिल वर्गीज फारवर्ड प्रेस के प्रधान संपादक हैं

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