राष्ट्रपति शासन झेल रहे जम्मू-कश्मीर में राज्य के अधीन विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति में भाषा के स्तर पर भेदभाव करने का मामला सामने आया है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की छात्रसंघ की पूर्व उपाध्यक्ष व जम्मू एंड कश्मीर पीपल्स मूवमेंट पार्टी की महासचिव शेहला रशीद ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार काश्मीरी भाषा और काश्मीरी लोगों के साथ भेदभाव कर रही है।
फारवर्ड प्रेस से दूरभाष पर बातचीत में शेहला रशीद ने कहा कि जम्मू-कश्मीर लोक सेवा आयोग द्वारा ली गयी परीक्षा में काश्मीरी भाषा के उम्मीदवारों को वाइवा में जानबुझकर कम अंक दिए गये। जबकि डोगरी और पंजाबी के उम्मीदवारों को वाइवा में अच्छे अंक दिए गये। इस कारण इन दोनों भाषाओं से जुड़े शिक्षकों के पदों पर बहाली हो गयी। लेकिन काश्मीरी विषय के शिक्षकों के 23 पद अभी भी रिक्त हैं। उन्होंने कहा कि जब पंजाबी और डोगरी के सीट भरने के लिए कट ऑफ मार्क्स कम किया जा सकता है तो काश्मीरी भाषा के पदों को भरने के लिए क्यों नहीं किया गया। उन्होंने मांग करते हुए कहा कि कट ऑफ मार्क्स कम करके काश्मीरी भाषा के रिक्त 23 पदों को भरा जाय।

दरअसल, 2017 में जम्मू कश्मीर राज्य कमीशन आयोग ने विश्वविद्यालयों में काश्मीरी भाषा के शिक्षकों के 49 पद, डोगरी भाषा के शिक्षकों के 49 और पंजाबी भाषा के 25 शिक्षकों के पदों पर नियोजन हेतु विज्ञापन जारी किया था। करीब दो वर्ष बाद इसका परिणाम 20 जून 2019 को घोषित किया गया। एक उम्मीदवार रियाज़ अहमद नायक ने बताया कि मौखिक परीक्षा के लिए कुल 27 अंक निर्धारित थे। इसमें 20 इंटरव्यू और 7 अंक डेमो क्लास के लिए थे। पंजाबी भाषा के सभी 15 अभ्यर्थियों के 27 मार्क्स दे दिए गए। डोगरी का भी यही हाल था। डोगरी भाषा के सभी आवेदकों को इंटरव्यू में 26-27 मार्क्स दिए गए। लेकिन काश्मीरी भाषा के उम्मीदवारों को बहुत कम अंक दिए गए हैं और इस कारण पद रिक्त पड़े हैं।
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बहरहाल, यह मामला अब जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में विचाराधीन है। हाई कोर्ट ने आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इस मामले में अब अगली सुनवाई 5 अगस्त 2019 को मुकर्रर है।
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(कॉपी संपादन : नवल/सिद्धार्थ)
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