हर दौर के राजनीतिक कार्टून इतिहास के सच्चे आईने की तरह देखे जाते हैं। वो उस दौर की विसंगतियों को सामने लाते हैं और तीक्ष्ण व्यंग्य और लगभग धज्जियां उड़ाते हुए वो समय और सच की कसौटी पर कसे जाते हैं। जाहिर है, ऐसे में डॉ. आंबेडकर पर बने कार्टून अभिलेखों से भी बाहर आने चाहिए थे, देर से ही सही लेकिन ये कार्टून में बड़े महत्व के हैं और बहुत देर से ही सही आंबेडकर पर कार्टूनों के संकलन को पुस्तकाकार लाया गया है। इस किताब में वे किरदार भी मिलते हैं जिनसे जातिवादी पूर्वाग्रहों को खत्म करने के ऐतिहासिक संघर्ष में आंबेडकर टकराते हैं।
इस लिहाज से उन्नमति स्यामा सुंदर के द्वारा संकलित कार्टून पुस्तक “नो लाफिंग मैटर” महत्वपूर्ण हो गई है। 1932 से 1956 के दरमियान बने 122 कार्टूनों का इसमें संकलन किया गया है। नवयाना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘नो लाफिंग मैटर’ नामक इस पुस्तक का विमोचन बीते 3 अगस्तर 2019 को दिल्ली के हैबिटेट सेंटर में किया गया। इस मौके पर देश के कई प्रमुख आंबेडकवादी, प्रगतिशील-जनवादी और दलित विचारकों ने शिरकत की और लेखक के संकलन की प्रशंसा की।
सवर्ण, जातिवादी ताकतों से जकड़े समाज में टकराव के बिंब
हालांकि यह भी याद रखना चाहिए कि कार्टून ऐसी विधा है जो सत्ता में बैठे ताकतवर लोगों को जमीन और जनमानस का सच दिखाते हैं। पीटीआई को दी गई सुंदर की जानकारी के मुताबिक, संविधान को बनाने की कथित धीमी प्रक्रिया पर के. शंकर पिल्लई ने 1949 में एक कार्टून बनाया था जिसमें भीमराव आंबेडकर घोंघे पर बैठे हैं और जवाहर लाल नेहरू चाबुक मारकर आगे बढ़ाते नजर आ रहे हैं। उस वक्त इस कार्टून को लेकर तो कोई विवाद नहीं हुआ था लेकिन 2012 में जब इसे स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया गया तो संसद में काफी हंगामा हुआ।

बहरहाल, उन्नमति स्यामा सुंदर ने इस घटना को अपने लिए एक अवसर की तरह लिया और आंबेडकर पर बने कार्टूनों पर एक किताब का संकलन किया। सुंदर ने इंडिया हैबिटेट सेंटर में कहा, ‘‘एनसीईआरटी की किताब में आंबेडकर के कार्टून पर विवाद के बाद मैंने 1932 से 1956 तक आंबेडकर पर बने कार्टूनों का संकलन करना शुरू किया। यह पुस्तक भारत के प्रमुख प्रकाशनों में प्रकाशित शंकर, अनवर अहमद और आरके लक्ष्मण एवं अन्य कार्टूनिस्टों द्वारा चित्रित 122 कार्टूनों का संकलन है। यह किताब वास्तव में उस भावना को दर्शाती है कि कार्टूनिस्ट उन्हें किस नकारात्मकता से पेश करते थे।’’

इस किताब में संकलित कार्टूनों में से एक शंकर का एक कार्टून है जो पूना संधि को लेकर है और जो गांधी की पृष्ठभूमि में है। इसमें आंबेडकर एक पैन में बिना अंडे तोड़े आमलेट बना रहे हैं। “मेकिंग ऑमलेट विदआउट ब्रेकिंग एग्स”- यह कार्टून 29 जुलाई 1936 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुआ था। बता दें कि अंग्रेजी राज के दौर में तब पूना संधि गांधी और आंबेडकर के बीच यरवदा सेंट्रल जेल में हुई थी। संधि के तहत दलितों (हरिजनों) के लिए राज्यों में आरक्षित सीटों की संख्या 71 से बढ़ाकर 148 कर दी गई थी। तब रवींद्र नाथ टैगोर ने गांधी के योगदान की सराहना करते हुए इस बलिदान को ऐतिहासिक कहा था। जाहिर है, ये सभी कार्टून अंग्रेजी के मुख्यधारा के मीडिया में प्रकाशित हुए इसलिए इनका राष्ट्रीय महत्व है। ऐसा इसलिए भी कि माना जाता है उस दौर की मुख्य मीडिया आज की तरह थुथली और सत्ता की चाटुकार नहीं थी। प्रसिद्ध लेखक और चिंतक हर्ष मंदर ने उस कार्टून की ओर इशारा किया जिसमें आंबेडकर को आधुनिक मनु के रूप में चित्रित कहा गया है। मंदर ने कहा कि यह हैरान करने वाला है जिस तरह से जाति-व्यवस्था की भीषण असंवेदनशीलता उजागर हुई है।

‘नो लाफिंग मैटर’ दरअसल उस गंभीरता की ओर इशारा करती है जिसमें आंबेडकर सवर्ण ताकतों और उसके रहनुमाओँ से लड़कर दलितों और वंचितों के लिए संघर्षरत थे। पुस्तक के सात खंड बनाए गए हैं। जाहिर है इसमें सम्मिलित कार्टून के साथ लेखक सुंदर की बताने की कोशिश है कि आंबेडकर रुढ़िवादी और तर्कहीन शक्तियों से लड़ते हैं और लगातार एक समावेशी समाज की स्थापना के लिए संघर्ष करते हैं।
(कॉपी संपादन : नवल)
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