h n

कार्टूनों में कैसे चित्रित किए गए हैं भीमराव आंबेडकर?

वाकई यह मजाक की बात नहीं थी जब डॉ. आंबेडकर अंग्रेजों के समय से लेकर आजादी और उसके बाद भी द्विजवादी वर्चस्ववादी सत्ता से लोहा लेते रहे। उनके संघर्ष को बहुत गंभीरता से समझने में ही उन पर बने कार्टून संकलन की पुस्तक ‘नो लाफिंग मैटर’ मदद करती है। इस किताब का विमोचन 3 अगस्त को दिल्ली में किया गया। कमल चंद्रवंशी की खबर

हर दौर के राजनीतिक कार्टून इतिहास के सच्चे आईने की तरह देखे जाते हैं। वो उस दौर की विसंगतियों को सामने लाते हैं और तीक्ष्ण व्यंग्य और लगभग धज्जियां उड़ाते हुए वो समय और सच की कसौटी पर कसे जाते हैं। जाहिर है, ऐसे में डॉ. आंबेडकर पर बने कार्टून अभिलेखों से भी बाहर आने चाहिए थे, देर से ही सही लेकिन ये कार्टून में बड़े महत्व के हैं और बहुत देर से ही सही आंबेडकर पर कार्टूनों के संकलन को पुस्तकाकार लाया गया है। इस किताब में वे किरदार भी मिलते हैं जिनसे जातिवादी पूर्वाग्रहों को खत्म करने के ऐतिहासिक संघर्ष में आंबेडकर टकराते हैं। 

इस लिहाज से उन्नमति स्यामा सुंदर के द्वारा संकलित कार्टून पुस्तक “नो लाफिंग मैटर” महत्वपूर्ण हो गई है। 1932 से 1956 के दरमियान बने 122 कार्टूनों का इसमें संकलन किया गया है। नवयाना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘नो लाफिंग मैटर’ नामक इस पुस्तक का विमोचन बीते 3 अगस्तर 2019 को दिल्ली के हैबिटेट सेंटर में किया गया। इस मौके पर देश के कई प्रमुख आंबेडकवादी, प्रगतिशील-जनवादी और दलित विचारकों ने शिरकत की और लेखक के संकलन की प्रशंसा की।

सवर्ण, जातिवादी ताकतों से जकड़े समाज में टकराव के बिंब 

हालांकि यह भी याद रखना चाहिए कि कार्टून ऐसी विधा है जो सत्ता में बैठे ताकतवर लोगों को जमीन और जनमानस का सच दिखाते हैं। पीटीआई को दी गई सुंदर की जानकारी के मुताबिक, संविधान को बनाने की कथित धीमी प्रक्रिया पर के. शंकर पिल्लई ने 1949 में एक कार्टून बनाया था जिसमें भीमराव आंबेडकर घोंघे पर बैठे हैं और जवाहर लाल नेहरू चाबुक मारकर आगे बढ़ाते नजर आ रहे हैं। उस वक्त इस कार्टून को लेकर तो कोई विवाद नहीं हुआ था लेकिन 2012 में जब इसे स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया गया तो संसद में काफी हंगामा हुआ। 

आंबेडकर पर बनाया गया एक कार्टून

बहरहाल, उन्नमति स्यामा सुंदर ने इस घटना को अपने लिए एक अवसर की तरह लिया और आंबेडकर पर बने कार्टूनों पर एक किताब का संकलन किया। सुंदर ने इंडिया हैबिटेट सेंटर में कहा, ‘‘एनसीईआरटी की किताब में आंबेडकर के कार्टून पर विवाद के बाद मैंने 1932 से 1956 तक आंबेडकर पर बने कार्टूनों का संकलन करना शुरू किया। यह पुस्तक भारत के प्रमुख प्रकाशनों में प्रकाशित शंकर, अनवर अहमद और आरके लक्ष्मण एवं अन्य कार्टूनिस्टों द्वारा चित्रित 122 कार्टूनों का संकलन है। यह किताब वास्तव में उस भावना को दर्शाती है कि कार्टूनिस्ट उन्हें किस नकारात्मकता से पेश करते थे।’’

दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम की तस्वीर

इस किताब में संकलित कार्टूनों में से एक  शंकर का एक कार्टून है जो पूना संधि को लेकर है और जो गांधी की पृष्ठभूमि में है। इसमें आंबेडकर एक पैन में बिना अंडे तोड़े आमलेट बना रहे हैं। “मेकिंग ऑमलेट विदआउट ब्रेकिंग एग्स”- यह कार्टून 29 जुलाई 1936 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुआ था। बता दें कि अंग्रेजी राज के दौर में तब पूना संधि गांधी और आंबेडकर के बीच यरवदा सेंट्रल जेल में हुई थी। संधि के तहत दलितों (हरिजनों) के लिए राज्यों में आरक्षित सीटों की संख्या 71 से बढ़ाकर 148 कर दी गई थी। तब रवींद्र नाथ टैगोर ने गांधी के योगदान की सराहना करते हुए इस बलिदान को ऐतिहासिक कहा था। जाहिर है, ये सभी कार्टून अंग्रेजी के मुख्यधारा के मीडिया में प्रकाशित हुए इसलिए इनका राष्ट्रीय महत्व है। ऐसा इसलिए भी कि माना जाता है उस दौर की मुख्य मीडिया आज की तरह थुथली और सत्ता की चाटुकार नहीं थी। प्रसिद्ध लेखक और चिंतक हर्ष मंदर ने उस कार्टून की ओर इशारा किया जिसमें आंबेडकर को आधुनिक मनु के रूप में चित्रित कहा गया है। मंदर ने कहा कि यह हैरान करने वाला है जिस तरह से जाति-व्यवस्था की भीषण असंवेदनशीलता उजागर हुई है। 

‘नो लाफिंग मैटर’ का कवर पृष्ठ

‘नो लाफिंग मैटर’ दरअसल उस गंभीरता की ओर इशारा करती है जिसमें आंबेडकर सवर्ण ताकतों और उसके रहनुमाओँ से लड़कर दलितों और वंचितों के लिए संघर्षरत थे। पुस्तक के सात खंड बनाए गए हैं। जाहिर है इसमें सम्मिलित कार्टून के साथ लेखक सुंदर की बताने की कोशिश है कि आंबेडकर रुढ़िवादी और तर्कहीन शक्तियों से लड़ते हैं और लगातार एक समावेशी समाज की स्थापना के लिए संघर्ष करते हैं।

 कार्यक्रम में हर्ष मंदर, युवा दलित लेखक सूरज एंगड़े, डॉक्टर अजिता, सुल्तान सिंह गुलाम, विश्वज्योति घोष ने विचार रखे। खुद लेखक उन्नमति स्याम सुंदर ने पुस्तक तैयार करने के अपने अनुभवों को साझा किया, साथ ही उन ऐतिहासिक संदर्भों को भी रखा जिन पर कार्टून बनाए गए हैं। इस पुस्तक को खरीदने के लिए यहां क्लिक करें।

(कॉपी संपादन : नवल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

 

लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

संबंधित आलेख

राष्ट्रीय स्तर पर शोषितों का संघ ऐसे बनाना चाहते थे जगदेव प्रसाद
‘ऊंची जाति के साम्राज्यवादियों से मुक्ति दिलाने के लिए मद्रास में डीएमके, बिहार में शोषित दल और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय शोषित संघ बना...
‘बाबा साहब की किताबों पर प्रतिबंध के खिलाफ लड़ने और जीतनेवाले महान योद्धा थे ललई सिंह यादव’
बाबा साहब की किताब ‘सम्मान के लिए धर्म परिवर्तन करें’ और ‘जाति का विनाश’ को जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जब्त कर लिया तब...
जननायक को भारत रत्न का सम्मान देकर स्वयं सम्मानित हुई भारत सरकार
17 फरवरी, 1988 को ठाकुर जी का जब निधन हुआ तब उनके समान प्रतिष्ठा और समाज पर पकड़ रखनेवाला तथा सामाजिक न्याय की राजनीति...
जगदेव प्रसाद की नजर में केवल सांप्रदायिक हिंसा-घृणा तक सीमित नहीं रहा जनसंघ और आरएसएस
जगदेव प्रसाद हिंदू-मुसलमान के बायनरी में नहीं फंसते हैं। वह ऊंची जात बनाम शोषित वर्ग के बायनरी में एक वर्गीय राजनीति गढ़ने की पहल...
समाजिक न्याय के सांस्कृतिक पुरोधा भिखारी ठाकुर को अब भी नहीं मिल रहा समुचित सम्मान
प्रेमचंद के इस प्रसिद्ध वक्तव्य कि “संस्कृति राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है” को आधार बनाएं तो यह कहा जा सकता है कि...