गर्भवती महिलाओं के लिए आजतक नहीं कोई कानून
बिहार और उत्तराखंड जैसे राज्यों की तरह ही दिल्ली के नारी निकेतन व आश्रय गृहों की हालत गर्त में जा चुकी है। शुक्र है दिल्ली हाईकोर्ट का जिसने नई और ठोस गाइड लाइन्स बनाने के लिए मार्ग प्रशस्त किया है और इसके लिए अरविंद जैन को न्याय मित्र बनाकर अहम जिम्मेदारी सौंपी है अदालती दुनिया के बाहर भी अरविंद जैन हाशिए में रहने वाले आम लोगों तथा अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही महिलाओं के बीच भी दोस्त की तरह पहचाने जाते हैं।
यह संयोग है कि मशहूर अधिवक्ता और कानूनविद् अरविंद जैन फारवर्ड प्रेस के नियमित स्तंभकार के तौर पर जुड़े हैं। फारवर्ड प्रेस में नियमित तौर पर उनका स्तंभ ‘न्याय क्षेत्रे-अन्याय क्षेत्रे’ प्रकाशित हो रहा है।
हाल में दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद राजधानी के विभिन्न आश्रय घरों में रखीं गईं गर्भवती (कम उम्र की) किशोरियों को अब बेहतर सुविधाएं मिलने की उम्मीद बढ़ गई है। हाईकोर्ट ने इसके लिए दिशा-निर्देश भी तय किए। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और आईएस मेहता की पीठ ने पिछले सप्ताह विभिन्न आश्रय घरों में रहने वाले नाबालिगों के आहार, कपड़े आदि की सुविधा और उनको मिलने वाले परामर्श जैसी सुविधाओं का देखा। इसके बाद ही अपना फैसला सुनाया।
गौरतलब है कि नारी निकेतन में रह रही एक नाबालिग लड़की के माता-पिता ने याचिका दायर की थी, जिस पर कोर्ट सुनवाई कर रहा था। इन माता-पिता की बेटी दिल्ली के एक आश्रय गृह में है और गर्भवती है। याचिका में माता-पिता ने कहा कि उन्होंने केवल लड़की के अधिकारों और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया, ना कि अपनी लड़की को अपने पास लेने के लिए कोई दबाव बनाने को कहा है।
नाबालिग लड़की और उसके माता-पिता के साथ बात करने के बाद अदालत ने अधिवक्ता अरविंद जैन को एमिकस क्यूरिया (न्याय मित्र) नियुक्त करने का फैसला किया और उन्हें निर्मल छाया परिसर (नारी निकेतन) का निरीक्षण करने और का काम सौंपा। अरविंद जैन को इन परिसरों की हालात देखकर कोर्ट को बताएंगे कि इन परिसरों की बेहतरी के लिए क्या किया जाना चाहिए। कोर्ट ने नारी निकेतन के हालात पर 24 सितंबर तक रिपोर्ट मांगी है और कहा है कि इस बीच निर्मल छाया आश्रय गृह तुरंत अनुभवी पूर्णकालिक नर्स/नर्सों की सेवा लेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि गर्भवती लड़की और अन्य को इसी तरह सभी चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की जाती रहें। साथ ही कोर्ट ने कहा है कि अपराधों की शिकार हुई महिलाओं और लड़कियों को चौबीसों घंटे राज्य की ओर से संचालित किए जा रहे आश्रय गृहों में पूरे अधिकार मिलने चाहिए, इसे कैसे किया जाए, इस संबंध में श्री जैन मौजूदा स्थितियों का अध्ययन कर कोर्ट को सूचित करें।
न्यायमित्र की जरूरत
दरअसल, यह किसी से छिपा नहीं है कि दिल्ली के हरिनगर स्थित निर्मल छाया आश्रय गृह ही नहीं, बल्कि सारे नारी निकेतनों में महिलाएं बेहद दयनीय स्थिति में रह रही हैं। इन आश्रय घरों में रहने वाली महिलाएं विभिन्न प्रकार की गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हो जाने की खबरें भी अक्सर प्रकाश में आती रहती हैं। इनमें मानसिक रोग भी शामिल है। इन घरों में सफाई, उनके बिस्तरों की दयनीय स्थिति और रसोईघर के हालात बद से बदतर हो गए हैं। वहां नियमों का अनुपालन नहीं होने के कारण कई बार लड़कियों के साथ यौन शोषण के मामले भी सामने आते हैँ। इस तरह के मामले में कई बार कार्रवाई हो चुकी है लेकिन हालात फिर जस के जस हो जाते हैं।
नारी निकेतनों के लिए सामान्य गाइड लाइन्स तो है कि किस तरह से वहां के रहबासी को रखना होगा, क्या उनकी डायट होगी मेडिकल के लिए सामान्य और विशेष सुविधाएं दी जानी चाहिए। लेकिन स्पेशल में क्या है और सामान्य क्या है, कहीं परिभाषित नहीं है। बहुत सी चीजें सुस्पष्ट नहीं हैं। गर्भवती महिलाओं के लिए तो नारी निकेतनों में अभी तक ना कोई गाइड लाइन्स हैं और ना कानून हैं। इस बारे में कोई जजमेंट्स भी नहीं हैं जिनसे ऐसी महिलाओँ को मिलने वाली सुविधाओं को लेकर दावा किया जा सके। माना जा रहा है कि इसी बात को ध्यान में रखकर कोर्ट को न्याय मित्र बनाना पड़ा। कोर्ट ने अरविंद जैन से पूरी गहन अध्ययन करके बताने को कहा है ताकि इस पर ठोस गाइड लाइन्स बन सकें और रोज-रोज का झमेला खत्म हो सके और सभी कुछ एक बार में ही सेटल हो जाए।
जाहिर है, इसके लिए अरविंद जैन को कई बार नारी निकेतनों का दौरा करना होगा। इसके लिए जो भी बिंदु वो तैयार करेंगे, निश्चित ही दिल्ली ही नहीं देशभर के नारी निकेतनों के लिए रोशनी दिखाने का मार्ग प्रशस्त करेंगे। अभी मुश्किल यह है कि नारी निकेतन में आने वाली लड़कियों को समझाने के नाम पर दबाव भी बनाया जाता है। उन्हें सामाजिक और नैतिक मूल्यों की दुहाई देकर कहा जाता है कि इस बच्चे का क्या करोगी, यह तो नाजायज है, इसका भविष्य क्या होगा- अच्छा होगा कि इसका गर्भपात करा दो आदि। ऐसी स्थिति में होता यह है कि ज्यादातर लड़कियां गर्भपात के लिए कोर्ट से परमिशन मांगने आती हैं। कुछ मामलों में यह भी हुआ कि ठीक से देखभाल ना होने के चलते प्रसव के बाद मौत हो जाती हैं। कोर्ट के आदेश पर मुआवजा दिया। कुछ में इजाजत दी गई। कुछ में नहीं दी गई। बीस हफ्ते के गर्भधारण के बाद कोर्ट के लिए फैसला देना मुश्किल हो जाता है।
निश्चित ही इस तरह की तमाम तरह की समस्याएं हैं। इस पर बहस होनी ही होनी है। माना जा रहा है कि ये एक तरह से प्रारंभिक आदेश कोर्ट ने दिया है और शायद इसलिए कि अरविंद जैन की पृष्ठभूमि चाइल्ड मैरिज अध्ययन पर बहुत ठोस रही है। ऐसे एक मामले में पूर्व में हाईकोर्ट के एक प्रमुख फैसले में अरविंद जैन ने ही कोर्ट में दलीलें रखी थीं, जिस पर अरविंद जैन ने चार साल तक मुकम्मल अध्ययन किया था। 1986 में जुवैनाइल जस्टिस एक्ट के लिए गठित एक्सपर्ट कमेटी के सदस्य होने के नाते भी अरविंद जैन का अनुभव कोर्ट ने देखा होगा। बता दें कि इसके बाद ही देश में जुवेनाइल एक्ट देश में अस्तित्व में आया था। जैन का दूसरे देशों के कानूनों को लेकर भी खासा ज्ञान है। माना जाता है कि दुनिया के तमाम मुल्कों में जर्मनी को छोड़ दें तो कहीं भी महिलाओं के लिए जेलों में या आश्रय गृहों में मिलने वाली सुविधाओं और परिस्थितियों को लेकर ठोस खास कानून नहीं हैं।
उम्मीद की जानी चाहिए कि नारी निकेतनों में महिलाओं के हालात बेहतर बनाने के लिए देश के कानून में नई खिड़की जल्द खुल सकेगी।
(संपादन : नवल)
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