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राजनीति सत्ता की चाबी, इस पर दलित-बहुजनों का भी समान अधिकार : राजू यादव

1982 में जन्में राजू यादव बिहार में उभरते हुए बहुजन नेता हैं। वामपंथी दल भाकपा माले के उम्मीदवार के रूप में उन्होंने पिछले वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में आरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा। नवल किशोर कुमार से बातचीत में उन्होंने अबतक के अपने संघर्ष व अनुभवों को साझा किया है

परिवारवाद और पूंजी के बल पर राजनीति में जगह बनाने वालों के विपरीत राजू यादव उन नेताओं में शामिल हैं जिनकी पहचान जमीनी स्तर पर संघर्ष करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता की रही है। उनसे बातचीत में यह बात भी सामने आई कि दलित-बहुजन लोगों में जागरूकता किस सीमा तक बढ़ी है और यह भी कि तमाम विषमताओं के बावजूद दलित-बहुजन युवा राजनीति में आगे आ रहे हैं। बिहार के आरा निवासी और भाकपा माले के युवा नेता राजू यादव से नवल किशोर कुमार की खास बातचीत

जाति जानने के बाद शिक्षक का बदल गया रूख

बात उन दिनों की है जब मैं सातवीं कक्षा में पढ़ता था। वह आरा (बिहार) का सबसे नामी स्कूल था। क्षत्रिय हाई स्कूल। मैं पढ़ने में अव्वल था। पहले मुझे ऐसा लगता था कि मेरे शिक्षक मेरी पढ़ाई के कारण मुझे मानते हैं। लेकिन ऐसा नहीं था। एक दिन असेंबली के समय बताया गया कि सभी दलित-ओबीसी छात्रों को स्कॉलरशिप मिलेगी। सभी अपना-अपना नाम व रोल नंबर लिखकर दें। मैंने भी दिया। उन दिनों मेरा नाम राजीव रंजन सिंह था और पिता के रूप में मैंने अपने चाचा शिवजी सिंह का नाम दिया था। वजह यह थी कि पिता रामतवकया सिंह पुलिस द्वारा वांछित थे। उनके ऊपर 25 हजार रुपए का इनाम था। मेरे नाम में सिंह देख मेरे शिक्षक मुझे राजपूत समझते थे। जैसे ही मैंने अपना नाम और रोल नंबर लिखकर दिया, तब मेरे शिक्षक रामप्रसाद सिंह चौंके। मुझसे पूछा कि तुम क्यों अपना नाम दे रहे हो। मैंने बताया कि मैं यादव जाति का हूं। इसके बाद उनका रूख बदल गया। उन्होंने मुझसे दूरी बना ली। जाति समाज में किस हद तक व्याप्त है, इसका एक उदाहरण मुझे अपने स्कूल में देखने को मिल रहा था।

यह कहना है भाकपा माले के युवा दलित-बहुजन नेता राजू यादव का। राजू यादव ने पिछले वर्ष 2019 में आरा लोकसभा संसदीय क्षेत्र से माले प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और आर. के. सिंह को कड़ी टक्कर दी। इसके पहले माले ने उन्हें 2014 में भी उम्मीदवार बनाया था और उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। चुनावी राजनीति में पराजय के बावजूद राजू यादव के कदम डिगे नहीं हैं। उनका कहना है कि चुनाव में उतरने के बाद उन्होंने समाज का जो दृश्य देखा है, वह उन्हें संघर्ष को तेज करने के लिए प्रेरित करता है।

माले के पूर्व महासचिव विनोद मिश्र के छद्म नाम पर हुआ नामकरण

फारवर्ड प्रेस से खास बातचीत में राजू यादव ने बताया कि उनका नाम राजू यादव कैसे पड़ा। उन्होंने बताया कि माले के भूतपूर्व महासचिव विनोद मिश्र आंदोलन के दिनों में जब आरा में रहते थे तो अपना नाम बदलकर रहते थे। लोग उन्हें राजू नेता के नाम से जानते थे। 1982 में मेरा जन्म हुआ था। मेरे पिता ने विनोद मिश्र उर्फ राजू नेता के नाम पर ही मेरा नाम राजू यादव रखा।

विनोद मिश्र (24 मार्च, 1947 – 18 दिसंबर, 1998)

वामपंथी विचारधारा से आपका जुड़ाव कैसे हुआ? यह पूछने पर राजू यादव ने बताया कि इस जुड़ाव की दास्तान लंबी है जो सत्तर के दशक से शुरू होती है। मेरे पिता रामतवकया सिंह आर्मी में थे और दानापुर कैंट में तैनात थे। मेरे गांव का नाम गोरपा है जो भोजपुर में एकवारी गांव से महज एक किलोमीटर दूर है। 

सनद रहे कि मध्य बिहार में वामपंथी संघर्ष की शुरूआत 1970 के दशक में इसी एकवारी गांव में जगदीश मास्टर और रामनरेश राम जैसे नेताओं ने की थी। 

मेरे गांव में सामंतों ने ओबीसी महिला को जिंदा जला दिया था

राजू यादव के मुताबिक, उन दिनों उनके गांव में भूमिहार जाति के लोगों का दबदबा था। वे दलितों-पिछड़ों पर तरह-तरह के अत्याचार करते थे। इनमें किसी के खेत से जबरन फसल काट लेना, बहन-बेटियों को उठा ले जाना तो आम बात थी। इस प्रकार उन दिनों सामंतों के खिलाफ माहौल बनने लगा था। इसी बीच ऊंची जाति के लोगों ने उनकी चाची की हत्या कर दी। इस घटना के कुछ महीने बाद ही यादव जाति की ही एक महिला को गेठौल (उपलों को रखने के लिए अस्थायी झोपड़ी) में आग लगाकर जिंदा जला दिया गया था। इस प्रकार उन दिनों एक के बाद तीन लोगों की हत्याएं हुईं। इस बीच सामंती लोगों ने राजू यादव के चाचा पर भी जानलेवा हमला किया।

राजू यादव बताते हैं कि उन दिनों उनके पिता रामतवकया सिंह दानापुर में थे। गांव में घट रही घटनाओं की जानकारी उन्हें देर से मिली। जानकारी मिलते ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी और आंदोलन में शरीक हो गए। वह वर्ष 1976 था, जब मध्य बिहार में पहली बार सामंती तबके के नौ लोगों की हत्या एक के बाद हुई। खेतिहर-मजदूर और गरीब-गुरबों ने सामंतों की बेगारी करने से इंकार कर दिया था।

राजू यादव के अनुसार उनका जन्म 1982 में हुआ। पिता आंदोलन में सक्रिय थे। उनके खिलाफ कई मुकदमे भी दर्ज थे। 1990 में उनके निधन के बाद चाचा ने परवरिश की। उन्होंने पढ़ाई-लिखाई में कोई कमी नहीं आने दी। 

राजनीति ही क्यों, पूछने पर राजू यादव ने बताया कि वे शुरू के दिनों में डाक्टर बनना चाहते थे। इसलिए बारहवीं में जीव विज्ञान पढ़ा। लेकिन पार्टी के कामों में पहले ही सक्रिय हो गए थे। उन्होंने बताया कि जब वे नवीं कक्षा में थे तब स्कूल में फीस वृद्धि के खिलाफ आंदोलन चलाया। इसके बाद आरा शहर में उनकी पहचान छात्र नेता के रूप में हो गई। कॉलेज के दिनों में आइसा से जुड़े और बाद में आइसा के बिहार प्रदेश सचिव भी बने। इसके अलावा भाकपा माले के युवाओं के संगठन इंकलाबी नौजवान सभा के भी प्रदेश सचिव बने।

राजू यादव के पिता रामतवकया सिंह

आंदोलन और पार्टी के कामों में सक्रियता के बावजूद राजू यादव ने पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने एम.ए. करने के बाद कानून की पढ़ाई भी की।

चुनाव लड़ने दौरान देखा समाज का सच

चुनाव लड़ने का ख्याल कब आया? यह पूछने पर राजू यादव ने बताया कि यह पार्टी नेतृत्व का फैसला था। वर्ष 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी ने पहली बार उन्हें बरहरा विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया। इस चुनाव में वे हार गए। इसके बाद पार्टी ने उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में आरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ाया। इस चुनाव में उन्हें हालांकि हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उनके पक्ष में करीब एक लाख वोट पड़े। इसके बाद उन्हें वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में दुबारा उम्मीदवार बनाया गया। इस चुनाव में राजद का समर्थन मिला और करीब चार लाख से अधिक वोट पाने में कामयाब रहे। लेकिन इसके बावजूद भाजपा के उम्मीदवार आर. के. सिंह से हार गए।

राजू यादव बताते हैं कि चुनाव मैदान में उतरना उनके लिए एक अलग अनुभव था। उनके मुताबिक जब आप पार्टी के लिए काम करते हैं तो आप समान विचारधारा और लगभग एक जैसे लोगों के साथ मिलते-जुलते हैं। परंतु चुनाव प्रचार के दौरान समाज को समझने का मौका मिलता है। उनके मुताबिक, बिहार में ओबीसी जातियों के लोगों की हालत भी बहुत खराब है। आप जब लोगों के बीच जाएंगे तो आप देखेंगे कि कैसे एक यादव परिवार छोटे से घर में अपने मवेशियों के साथ जीता है। आप कुर्मी और कुशवाहा जाति के उन लोगों से मिलेंगे जिनके पास खेत नहीं है। वे खेतिहर मजदूर हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि बिहार में करीब 80 फीसदी ओबीसी की आबादी की हालत दलित वर्ग जैसी ही है। तो यह सब आपको जानकारी तब मिलेगी जब आप गांवों में जाएंगे। 

राजू यादव, युवा नेता, भाकपा माले

राजनीति में दलित-बहुजन युवाओं की भागीदारी कैसे बढ़े, के जवाब में राजू यादव ने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि राजनीति सत्ता की चाबी है। इस चाबी पर दलित-बहुजनों का भी अधिकार होना ही चाहिए। राजनीति करना कोई गलत काम नहीं है बशर्ते कि राजनीति करने का उद्देश्य एक ऐसे समाज के निर्माण में अपना योगदान देना हो, जिसमें सभी के लिए समान अवसर और सम्मान हो।

(संपादन : सिद्धार्थ)

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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