h n

‘मामला केवल ओबीसी क्रीमीलेयर की सीमा 8 लाख से 12 लाख करने का नहीं है’

राज्य और केन्द्र सरकार के पदों में समतुल्यता तय होनी चाहिए। लेकिन अभी तक यह समतुल्यता तय नहीं हुई है, जिसके कारण बड़ी संख्या में ओबीसी के लोग नौकरियों से वंचित हो रहे हैं। ओबीसी मामले को लेकर गठित संसदीय समिति के अध्यक्ष गणेश सिंह से नवल किशोर कुमार की खास बातचीत

[देश के अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को लेकर एक बड़े बदलाव की आहट सुनायी दे रही है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार सरकार ने क्रीमीलेयर की सीमा 8 लाख रुपए से बढ़ाकर 12 लाख रुपए करने का मन लगभग बना ही लिया है। लेकिन ओबीसी को लेकर सरकार द्वारा बनाये गये संसदीय समिति के अध्यक्ष गणेश सिंह का मानना है कि यह केवल क्रीमीलेयर की राशि घटाने अथवा बढ़ाने तक सीमित नहीं है। नवल किशोर कुमार ने उनसे दूरभाष पर खास बातचीत की। प्रस्तुत है संपादित अंश]

आप अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए बनाए गए संसदीय समिति के अध्यक्ष रहे। आपने अपनी रिपोर्ट में कई सुधारों सुझाव दिए हैं। लेकिन खबर आ रही है कि सरकार आपके सुझावों को अनसुना कर रही है। 

देखिए, मैंने ओबीसी क्रीमीलेयर में वेतन से प्राप्त आय और कृषि से प्राप्त आय को बाहर रखने का प्रस्ताव किया है। यह सच है कि मेरी अनुशंसा के बाद केन्द्र सरकार ने बी.पी. शर्मा कमिटी का गठन किया और उसने भी अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। जहां तक मेरी जानकारी है उसके मुताबिक मंत्रिमंडल समूह में ओबीसी क्रीमीलेयर के सवाल पर चर्चा की गयी है। एक प्रारूप भी तैयार किया गया है। उन्होंने ओबीसी क्रीमीलेयर की सीमा 8 लाख रुपए से 12 लाख रुपए करने का निर्णय लिया है, जबकि मैंने 15 लाख रुपए तक करने का प्रस्ताव किया था। इस मसले पर कैबिनेट में निर्णय लिया जाना बाकी है।

लेकिन, यह बात सार्वजनिक हो चुकी है कि बी.पी. शर्मा ने अपनी रिपोर्ट में अनुशंसा की है कि वार्षिक आय निर्धारण में वेतन से प्राप्त आय को भी शामिल किया जाय। आप क्या कहेंगे?

हां, यह मामला आया था। दरअसल राज्य और केन्द्र सरकार के पदों में समतुल्यता तय होनी चाहिए। लेकिन अभी तक यह समतुल्यता तय नहीं हुई है, जिसके कारण बड़ी संख्या में ओबीसी के लोग नौकरियों से वंचित हो रहे हैं। राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के अधीन पद खासतौर पर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम में कार्यरत ओबीसी लोगों के हक का मामला है। उन्हें लाभ मिलना चाहिए था, लेकिन उन्हें लाभ नहीं मिल पा रहा है। मेरे संज्ञान में अनेक मामले ऐसे आए हैं। इनमें संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) में चयनित ओबीसी अभ्यर्थियों का मामला भी है। चूंकि इन अभ्यर्थियों के पिता/माता सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में रहे और उनके पदों की समतुल्यता का निर्धारण नहीं हुआ है, इस कारण उन्हें क्रीमीलेयर में डाल दिया गया। जबकि उनके पिता ज्यादातर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे। ऐसे ही कई मामले मेरे संज्ञान में आये थे तभी मेरी कमिटी ने प्रस्ताव किया था। मैंने सभी पक्षों को ध्यापूर्वक सुनने के बाद ही यह प्रस्ताव तैयार किया था। मैंने बैठक में राज्य सरकारों को भी बुलाया था और उनको सुनने के बाद प्रस्ताव प्रशासन को भेजा था। उस पर ही बी. पी. शर्मा की कमिटी का गठन हुआ था। उसकी रिपोर्ट काफी दिनों तक पड़ी रही। फिर मैंने दुबारा प्रस्ताव भेजा। तत्पश्चात यह रिपोर्ट मंत्रिमंडल समूह में गई। मंत्रिमंडल में चर्चा होने के बाद ओबीसी क्रीमीलेयर 8 से 12 लाख किये जाने का प्रस्ताव सामने आया है।

ओबीसी को लेकर गठित संसदीय समिति के अध्यक्ष गणेश सिंह

लेकिन मूल सवाल यानी पदों की समतुल्यता का निर्धारण का क्या हुआ?  

मैंने पहले ही कहा कि पहले ही इस बारे में सरकार को अनुशंसा मेरी अध्यक्षता में गठित संसदीय समिति द्वारा की जा चुकी है। अब इस मामले में सरकार क्या कार्रवाई करने जा रही है, इसकी सूचना मेरे पास उपलब्ध नहीं है।

यह भी पढ़ें : शर्मा कमिटी की अनुंशसा से खत्म हो जाएगा ओबीसी आरक्षण, उठ रहे सवाल

यदि सरकार बी. पी. शर्मा कमिटी की अनुशंसा कि वार्षिक आय में वेतन से प्राप्त आय भी शामिल कर लिया जाय, को मान लेती है तब इसका ओबीसी के हितों पर क्या असर पड़ेगा?

निश्चित तौर पर इससे बड़ी संख्या में ओबीसी के लोग नौकरियों से बाहर हो जाएंगे। वेतन से प्राप्त आय और कृषि-आय को ओबीसी क्रीमीलेयर में बिल्कुल शामिल नहीं किया जाना चाहिए। अगर इसके अलावा कोई आय का स्रोत हो तो जरूर शामिल किया जाना चाहिए।

क्या आप बी.पी. शर्मा कमिटी के अन्य प्रस्तावों से सहमत हैं?

जिस तरह की सूचना मेरे पास आई है, उससे लगता है कि बी.पी. शर्मा कमिटी के प्रस्ताव हमारे प्रस्ताव से काफी समानता रखते हैं। हालांकि मैं फिर दुहराना चाहता हूं कि अभी मैं उनके सभी प्रस्तावों से अवगत नहीं हो पाया हूं, क्योंकि ये दस्तावेज गोपनीय रखे जाते हैं। कैबिनेट का प्रस्ताव आ जाने पर ही कुछ कहा जा सकता है।

(संपादन : इमानुद्दीन)

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

संबंधित आलेख

लोकसभा चुनाव : भाजपा को क्यों चाहिए चार सौ से अधिक सीटें?
आगामी 19 अप्रैल से लेकर 1 जून तक कुल सात चरणों में लाेकसभा चुनाव की अधिसूचना चुनाव आयोग द्वारा जारी कर दी गई है।...
ऊंची जातियों के लोग क्यों चाहते हैं भारत से लोकतंत्र की विदाई?
कंवल भारती बता रहे हैं भारत सरकार के सीएए कानून का दलित-पसमांदा संदर्भ। उनके मुताबिक, इस कानून से गरीब-पसमांदा मुसलमानों की एक बड़ी आबादी...
1857 के विद्रोह का दलित पाठ
सिपाही विद्रोह को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहने वाले और अखंड हिंदू भारत का स्वप्न देखने वाले ब्राह्मण लेखकों ने यह देखने के...
मायावती आख़िर किधर जा सकती हैं?
समाजवादी पार्टी के पास अभी भी तीस सीट हैं, जिनपर वह मोलभाव कर सकती है। सियासी जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव इन...
आंकड़ों में बिहार के पसमांदा (पहला भाग, संदर्भ : नौकरी, शिक्षा, खेती और स्वरोजगार )
बीते दिनों दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज की एक रिपोर्ट ‘बिहार जाति गणना 2022-23 और पसमांदा एजेंडा’ पूर्व राज्यसभा...