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प्रेमचंद की बहुजन कहानियाँ

बहुजनों के लिए बौद्धिक पूंजी का निर्माण करती इस किताब की कीमत केवल 200 रुपए है। इसे अमेजन और फ्लिपकार्ट के जरिए घर बैठे खरीदा जा सकता है।

हिन्दी साहित्य के सबसे प्रतिष्ठित कहानीकार प्रेमचंद की कहानियां भारतीय सामाजिक व्यवस्था को सामने लाती हैं। उनकी अनेक कहानियों में बहुजन समाज किस रूप में है और उसे किस तरह के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक शोषण का शिकार होना पड़ता है, बताया गया है। फारवर्ड प्रेस उनकी ऐसी ही कहानियों का संकलन लेकर आया है। इसके संपादक कहानीकार सुभाष चंद्र कुशवाहा हैं। इन्होंने ही कहानियों का संकलन भी किया है। इसे अमेजन और फ्लिपकार्ट के जरिए घर बैठे खरीदा जा सकता है। बहुजनों के लिए बौद्धिक पूंजी का निर्माण करती इस किताब की कीमत केवल 200 रुपए है।

इस किताब की प्रस्तावना बहुजन चिंतक व विचारक प्रेमकुमार मणि ने लिखी है। उन्होंने यह बताया है कि प्रेमचंद की बहुजन कहानियों में छिपे निहितार्थ को समझे बगैर भारतीय समाज के नस-नस में व्याप्त जातिवाद के जहर को खत्म नहीं किया जा सकता है। 

यह किताब क्यों जरूरी है, इस संबंध में प्राख्यात समालोचक वीरेंद्र यादव का मानना है कि “प्रेमचंद की इन बहुजन कहानियों के केंद्र में किसान विरोधी भूमि व्यवस्था के चलते खेत गंवाता खेतिहर किसान है तो अपने श्रम के मूल्य से वंचित होता मजदूर भी। इस संग्रह की कहानी ‘बलिदान’ संभवतः किसान आत्महत्या की पहली कहानी है तो ‘मुक्तिमार्ग’ शूद्र और दलित श्रमशीलों की सर्वहारा नियति को उजागर करती यादगार कहानी। ‘सवा सेर गेहूं’, ‘सद्गति’ और ‘बाबा जी का भोग’ सरीखी कहानियां धर्मपोषित शोषण की उस व्यवस्था को बेपर्दा करती है जो छल–छद्म के आधार पर शूद्र और अवर्णों की गुलामी का आधार तैयार करती है। ‘मंदिर’ कहानी की सुखिया और ‘घासवाली’ की मुलिया ऐसे स्त्री दलित पात्र हैं जो पुरोहित, ईश्वर और पुरुष सत्ता को खुली चुनौती देने की सामर्थ्य रखते हैं। प्रेमचंद की बहुचर्चित कहानी ‘कफ़न’ पिछले कुछ वर्षों बहस के केंद्र में रही है। संग्रह की अन्य कहानियों के साथ इसे पढने से इस यह तथ्य उजागर होता है कि प्रेमचंद का संकेत सामन्ती शोषण की उस दुरावस्था पर है जिसमें घीसू और माधव सरीखों का उचित मेहनत-मजूरी न मिलने के कारण श्रम से ही अलगाव हो जाता है।”

वहीं, नया पथ के संपादक मुरली मनोहर प्रसाद ने इस किताब के बारे में टिप्पणी की है कि “श्री सुभाष चंद्र कुशवाहा द्वारा संपादित ‘प्रेमचंद की बहुजन कहानियां’ एक महत्त्वपूर्ण प्रकाशन है। इस पुस्तक में प्रेमचंद के जनवादी दृष्टिकोण का किस प्रकार विकास और परिष्कार होता है, यह बहुत अच्छी तरह प्रतिबिम्बित होता है। डॉ. आंबेडकर के विचारों के प्रसार के पहले ही प्रेमचंद गांव के जीवन के तीव्र अंतर्विरोधों को अंकित कर रहे थे। ‘सवा सेर गेहूँ’ कहानी इस बात का साक्ष्य प्रस्तुत करती है। सामंती समाज के उत्पीड़क स्वरूप का उद्घाटन इस पुस्तक को पठनीय बनाता है। प्रेमचंद की इसी यथार्थवादी कथा परम्परा का विकास अमृतलाल नागर, वृन्दावन लाल वर्मा, अमृत राय, रांगेय राघव, नागार्जुन आदि के कथा साहित्य में होता है।”

दलित साहित्यकार भंवर मेघवंशी भी मानते हैं कि “प्रेमचंद अपने लेखन, विचार और व्यक्तित्व में सदैव ही आम जन के मुंशी रहे हैं। उनकी प्रासंगिकता समय के साथ साथ न केवल बनी रहती है, बल्कि बढ़ती जाती है। चूंकि शोषक वर्ग अपना रंग रूप समय के साथ बदलता जाता है और शोषण के हथियार भी बदल जाते हैं, परंतु शोषक तबके और शोषण के संस्थान भी कमोबेश वही बने रहते है। इसलिए इस किताब में संकलित प्रेमचंद की कहानियों को पढ़ते हुए उनको आसानी से चिन्हित किया जा सकता है।”

प्रकाशित पुस्तक : प्रेमचंद की बहुजन कहानियाँ

संपादन व संकलन : सुभाष चंद्र कुशवाहा

प्रस्तावना : प्रेमकुमार मणि

प्रकाशक : फारवर्ड प्रेस, नई दिल्ली

मूल्य : 200 रुपए मात्र

घर बैठे खरीदने के लिए लिंक पर क्लिक करें : अमेजन, फ्लिपकार्ट

थोक खरीद के लिए संपर्क करें : फारवर्ड प्रेस, 803 दिपाली बिल्डिंग, 92 नेहरू प्लेस, नई दिल्ली – 110019

दूरभाष : 7827427311

ईमेल : fpbooks@forwardpress.in

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एफपी डेस्‍क

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