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दहशत में हैं मनीषा के पिता, कहा – हमें इंसाफ चाहिए और जान-माल की सुरक्षा भी

मृतका के परिजन दहशत में हैं। यही वजह है कि बीते 11 अक्टूबर को जब यूपी पुलिस ने उन्हें अदालत में पेशी के लिए लखनऊ ले जाना चाहा तो उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि वे रात में पुलिस के साथ नहीं जाएंगे। नवल किशोर कुमार की रिपोर्ट

ग्राउंड रिपोर्ट

“जबतक मनीषा के हत्यारों को सजा और हमें इंसाफ नहीं मिल जाता, हम उसकी अस्थियां प्रवाहित नहीं करेंगे। हमें बस इतना ही कहना है कि हमें इंसाफ चाहिए और मेरे घर के परिजनों के जान की रक्षा भी हो।” यह कहना है दलित युवती मनीषा वाल्मीकि के पिता का। हाथरस के बूलगढ़ी गांव में फारवर्ड प्रेस से बातचीत में उन्होंने 14 सितंबर को अपनी बेटी के साथ हुई दरिंदगी के बारे में विस्तार से बताया।

उन्होंने बताया कि 29 सितंबर को जब मनीषा का निधन हुआ उस दिन पुलिस ने उन्हें चकमा दिया। उन्हें बताया गया कि लाश पहले ही भेजी जा चुकी है। मृतका के पिता ने बताया कि उन्हें भनक भी नहीं लगने दी गयी कि उसकी लाश को भेजा जा रहा है। उन्होंने बताया कि जब वे दिल्ली में ही थे तभी सूचना दी गयी कि लाश हाथरस भेजी जा चुकी है। उनके मुताबिक, “हम भागे-भागे आए। रात हो चुकी थी। चंदपा थाना के पास वह एंबुलेंस खड़ी थी जिसमें मनीषा की लाश को लाया गया था। हमें पुलिस ने बताया कि आज ही इसका दाह-संस्कार करना है। मैंने मिन्नतें की कि मुझे मनीषा के शव को घर ले जाने दें। उसकी अंतिम क्रिया हम अपनी परंपरा के अनुसार करना चाहते हैं। लेकिन पुलिस ने हमारी एक नहीं सुनी।हमें धक्का दिया गया।”

फारवर्ड प्रेस से बातचीत करते मृतका मनीषा वाल्मीकि के भाई, पिता व एक रिश्तेदार (तस्वीर : नवल)

बताते चलें कि 14 सितंबर, 2020 को एक 21 वर्षीया दलित युवती जो कि अपनी मां के साथ खेतों में मवेशियों के लिए चारा काट रही थी, उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया तथा नृशंसता की सारी हदों को पार करते हुए उसकी जीभ काट दी गई, उसकी गर्दन व रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गई। बीती 29 सितंबर, 2020 को पीड़िता की मौत दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में हो गई। फिर उसी दिन पुलिस ने मनीषा की लाश को बिना उसके परिजनों की सहमति के जला दिया। 

पुलिस ने नहीं देखने दिया शव

मृतका के पिता ने कहा कि उन्होंने शव को नहीं देखा। उन्होंने कहा कि “मैं नहीं जानता कि पुलिस ने जिसको जला दिया, वह मेरी बेटी मनीषा की लाश ही थी। लेकिन मैंने जले हुए अवशेष को सुरक्षित रखा है। हमने यह तय किया है कि जबतक मनीषा को इंसाफ नहीं मिलेगा तबतक उसकी अस्थियों को नदी में प्रवाहित नहीं करूंगा।”

मृतका के घर के एक कमरे में बुद्ध की तस्वीर (तस्वीर : नवल)

क्या मनीषा के पहले भी कभी इस गांव में इस तरह की कोई घटना घटित हुई थी? इस सवाल के जवाब में मृतका के पिता ने कहा कि “नहीं, इस तरह की घटना तो पहली बार ही हुई है। गांव में कहा-सुनी तो होती ही रहती है। लेकिन जैसी दरिंदगी मेरी बेटी के साथ हुई, वैसी पहले नहीं हुई।”

हम कोई काम नहीं कर पा रहे हैं

मृतका के पिता ने बताया कि उनके घर में  मां, उनकी पत्नी, दो बेटे और तीन पोतियां हैं। उनकी आजीविका का मुख्य साधन उनके खेत तथा मवेशी हैं। इनसे होने वाली आय से ही वह अपना घर चलाते हैं। लेकिन जबसे यह घटना हुई तबसे हमारे पास कोई काम नहीं है। घर में मवेशी का दूध बेकार जा रहा है। हम बेचने भी नहीं जा पा रहे हैं। खेतों में भी हम काम नहीं कर पा रहे हैं।

मृतका के घर में तैनात डीएसपी रैंक का एक अधिकारी (तस्वीर : नवल)

गांव में है तनातनी की स्थिति, पहले से अनबन से मृतका की मां का इंकार

क्या उन्हें किसी तरह की कोई धमकी दी गई है? यह पूछने पर मृतका के भाई ने बताया कि चूंकि अभी पुलिस है तो किसी ने धमकी तो नहीं दी है। लेकिन बगल के गांवों में जहां ठाकुर समाज के लोग रहते हैं, वे बैठकें कर रहे हैं। गांव में तनातनी की स्थिति है।

वहीं मृतका की मां ने बताया कि “ठाकुरों से हमारी कभी कोई अनबन नहीं रही। सभी अपने खेतों में काम करने वाले हैं। पहले से यदि कुछ होता तो हमें जानकारी होती।” घर से घटनास्थल की दूरी कितनी है? इसके जवाब में मृतका की मां ने संकेत से बताते हुए कहा कि करीब आधा-पौन किलोमीटर दूरी है। क्या मनीषा ने बताया कि उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ? जवाब में मनीषा की मां ने कहा कि “हां, उसने कहा था कि उसके साथ बुरा काम किया गया था।”

मुख्य आरोपी का घर जो मृतका के घर से करीब 20 मीटर दूर है (तस्वीर : नवल)

मृतका के एक रिश्तेदार ने बताया कि मनीषा वाल्मीकि तीन बहनों में सबसे छोटी थी। दो बड़ी बहनों की शादी हो चुकी है। वहीं उसके दो भाई हैं जिनमें से एक की शादी हो चुकी है तथा उनकी तीन बेटियां हैं। इनमें से एक करीब एक माह की है। रिश्तेदार ने बताया कि मनीषा के पिता के पास कुल जमा तीन-साढ़े तीन बीघा जमीन है जिसपर वे खेती करते हैं। साथ ही जीवनयापन के लिए भैंसें पालते हैं। रिश्तेदार ने बताया कि मनीषा ने केवल चौथी कक्षा तक की पढ़ाई की थी। वह बहुत परिश्रमी थी और घर से लेकर खेत तक के कामों में अपने परिजनों का साथ देती थी। बूलगढ़ी गांव के सामाजिक ताने-बाने के बारे में रिश्तेदार ने बताया कि यहां वाल्मीकि समुदाय के चार घर है। दो घर कुम्हार व एक घर नाई जाति के अलावा शेष करीब 40 घर ठाकुरों एवं 30 घर ब्राह्मणों के हैं।

बहरहाल, मृतका के परिजन दहशत में हैं। यही वजह है कि बीते 11 अक्टूबर को जब यूपी पुलिस ने उन्हें अदालत में पेशी के लिए लखनऊ ले जाना चाहा तो उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि वे रात में पुलिस के साथ नहीं जाएंगे। बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों की मौजूदगी के बावजूद उनके चेहरे पर दहशत है। वहीं मृतका के घर में छह-छह सीसीटीवी कैमरा लगाकर पुलिस ने उनकी निजता को तार-तार कर दिया है। इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि एक कैमरा उनके शौचालय के दरवाजे के उपर भी लगा दिया गया है। 

(संपादन : अमरीश)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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