भारतीय इतिहास का सांस्कृतिक चेहरा कभी भी सफ़ेद नहीं था। वह काला ही था। हाँ, उसके उफान की लहरें कम-अधिक होते रहती थीं। उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में उसकी एक नई लहर दिखाई दी। जिस राज्य में रामराज्य के नाम पर बेगुनाह लोगों के अधिकारों पर चोट की जा रही हो, उनके धार्मिक अधिकार नकारे जा रहे हों, वह राज्य किसी लोकतान्त्रिक देश का हिस्सा नहीं हो सकता। उसे फासीवादी स्टेट ही कहा जाएगा।
भारत में लोकतंत्र है और यहां कानून का राज है। इतना ही नहीं, दलितों को शोषण के खिलाफ संवैधानिक अधिकार मिले हुए हैं। इस परिस्थिति में राज्य और प्रशासन द्वारा दलितों के अधिकारों पर चोट अत्यंत गंभीर है। उसका मुक़ाबला गंभीरता और एकजुटता से करना बेहद जरूरी हो जाता है।
हाथरस में दबंगों ने दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार कर उसकी जीभ काटी एवं रीढ़ व गर्दन की हड्डी तोड़ दी। पुलिस प्रशासन द्वारा आठ दिन तक आरोपियों को बचाते रहना तथा पंद्रहवें दिन, युवती की मृत्यु होने पर परिवार की सहमति के बिना उसके शरीर को आग के हवाले कर देना, बर्बरता की पराकाष्ठा थी। इस घटना के 24 घंटे बाद बलरामपुर में और एक 22 वर्षीय दलित महिला की बलात्कार कर उसके पैर काट दिए गए और एक दिन बाद उसकी मौत हो गयी। यह बीमारू धर्म-प्रणाली और गहरी जड़वाले जातिवाद और कुप्रथाओं के परिणाम हैं।

हमारे देश में दलित महिलाओं का अमानवीय यौन शोषण होता रहा है। दलित समुदाय के साथ जाति-आधारित अमानवीय व्यवहार भी आम है और जाति के आधार पर उन्हें दबाना भी। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, देश में हर दिन लगभग दस दलित महिलाओं के साथ बलात्कार किया जाता है, जिनमें सबसे अधिक घटनाएं उत्तर प्रदेश में दर्ज की जातीं हैं। ये तो ज्ञात आंकडे हैं, लेकिन अज्ञात आंकड़े इससे कहीं अधिक हैं, जहां डर और अज्ञानतावश पीड़ित परिवारों द्वारा मामले दर्ज ही नहीं किए जाते और पुलिस प्रशासन भी भय दिखाकर बिना रिपोर्ट दर्ज किये उन्हें भगा देता है।
अगर, हाथरस की लड़की ऊंची जाति और धन संपन्न परिवार से होती, तो क्या तब भी पुलिस एफआईआर लिखने में आठ दिन लगाती? बार-बार रिपोर्टों के साथ छेड़छाड़ करती, तथ्यों को पलटती, झूठे बयान देती, बलात्कार और हिंसा की बात को झूठ बताती? क्या पुलिस उसके पार्थिव शरीर को मां-बाप की सहमति के बिना रात में ऐसे ही जला देती? क्या उसे श्मशान में विधिवत नहीं जलाया जाता? क्या कचरे की जगह उसे जला देते? क्या दलितों को अपने सांस्कृतिक रीति-रिवाज के पालन करने का अधिकार नहीं है? पुलिस और सरकार ने उसे रातों-रात क्यों जलाया? क्या सरकार सत्य एवं तथ्य को दबाकर बलात्कारियों को बचाना चाहती है? क्या दलित, तथाकथित हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं है? क्या उनका हिंदुत्व केवल दलितों को अपने स्वार्थ के लिए मुसलमान और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा करवाने तक ही सीमित है?
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दरअसल, दलितों को हिंदुत्व की परिभाषा और स्वार्थी लोगों से सावधान रहना चाहिए। क्योंकि समय आने पर दलित, दलित ही रह जाता है, वह कभी हिंदू नहीं बन सकता। चाहे वह दलित कैबिनेट मंत्री हो या राष्ट्रपति। भारत में उनके अधिकारों एवं स्वाभिमान कों छीना जा रहा है, सरकार को इसका जवाब देना होगा।
अब द्विजवादी मीडिया, भाजपा का आईटी सेल और खुद सरकार दलित महिला पर किए गए रेप पर उलट प्रतिक्रिया देने लगे हैं। कह रहे हैं कि उसके साथ बलात्कार हुआ ही नहीं। क्या यह साबित करने और दोबारा उसकी टेस्ट न हो, इसलिए ही मृतका के शरीर को रातोंरात जला दिया गया? सरकार मृतका के परिजनों को नजरबंद क्यों कर रही है? हाथरस में 144 धारा लगाकर विपक्षी पार्टियों के नेताओं और मीडियाकर्मियों को जाने नहीं दिया जा रहा है। लेकिन ऊंची जातियों के लोगों को पंचायत बुलाने की अनुमति दी जाती है।
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ऐसी ही एक घटना रामराज में घटी थी। रामायण के सर्ग 73 से 76 सर्ग इसकी पुष्टि करते हैं राम ने ब्राह्मणों के कहने पर शूद्र शंबूक की अपने हाथों से हत्या की थी। रामराज में ब्राह्मण बालक के मृत्यु का कारण शंबूक के विद्या सीखने और उसकी तपस्या को बताया गया है। राम ने ब्राह्मणों के अधिकार और वर्णव्यवस्था को कायम रखने के लिए अपनी ही प्रजा को अध्ययन और संपति के अधिकार से वंचित कर दिया था। क्या आज के लोकतंत्र में योगी आदित्यनाथ वही करना चाहते हैं? वर्णव्यवस्था में स्थापित ऊंची जाति के अधिकार और घमंड को कायम रखने के लिए क्या वे दलितों व पिछड़ों को उनके अधिकार से वंचित रखकर मनुवादी भारत को पुनर्स्थापित करना चाहते हैं? हाथरस की घटना से तो यही प्रतीत हो रहा है।
बहरहाल, हाथरस की घटना आधुनिक भारत के इतिहास का काला पन्ना है। भारत के वंचित समाज के लोगों को इस पूरे मामले को समझना चाहिए तथा वर्ण-जातिवादी ताकतों का मुकाबला करना चाहिए।
(संपादन : नवल/अमरीश)
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