देश में अभिव्यक्ति की आजादी पर पहरे कड़े हो गए हैं। हालत यह है कि यदि दलित-बहुजन समाज के लोग अपनी बात कहें तो उन्हें हर स्तर पर चुप कराने की कोशिशें की जाती हैं। ऐसी ही एक कोशिश बीते 27 दिसंबर, 2020 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हिन्दी की प्रोफेसर डॉ. हेमलता महिश्वर के साथ की गई। दिल्ली के सरिता विहार थाना की एक टीम उनके घर गई और उनसे व्हाट्सअप समूह में जारी संदेश के संबंध में पूछताछ की।
घटना के संबंध में पूछने पर डॉ. हेमलता महिश्वर ने बताया कि उन्होंने अपने आवासीय कॉलोनी के व्हाट्सअप ग्रुप में मनुस्मृति दहन दिवस की मंगलकामनाएं दी। अपने संदेश में उन्होंने लिखा – “इंसान बनें, मनुवादी नहीं। संविधान चाहिए, मनुस्मृति नहीं। मनुस्मृति दहन दिन की हार्दिक मंगल कामनाएं।” उनके इस संदेश पर दो लोगों ने आपत्ति व्यक्त की। इसी संबंध में सरिता विहार थाने की पुलिस उनसे पूछताछ करने आई थी।
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पुलिस के साथ बातचीत के बारे में डॉ. महिश्वर ने बताया कि पुलिस ने यह नहीं बताया कि उनके खिलाफ कोई लिखित शिकायत दर्ज कराई गई है या नहीं। लेकिन यह संभव है कि किसी ने पुलिस से शिकायत की हो। डॉ. महिश्वर के मुताबिक व्हाट्सअप ग्रुप में सभी अपने-अपने हिसाब से पर्वों की शुभकामनाएं देते हैं। इसी तरह उन्होंने भी मनुस्मृति दहन दिवस के मौके पर मंगल कामनाएं की। इसे लेकर यदि किसी को आपत्ति है तो इसका मतलब साफ है कि वह मनुस्मृति को पसंद करता है और संविधान को खारिज करता है। जबकि 25 दिसंबर 1927 को डॉ. आंबेडकर द्वारा किया गया स्मृति दहन समतामूलक राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया की शुरूआत थी। इसे दलित-बहुजन एक खास उत्सव की तरह पूरे देश में मनाते हैं।
डॉ. महिश्वर ने बताया कि घर पहुंची पुलिस टीम ने उनसे इस तरह का संदेश दुबारा शेयर नहीं करने का अनुराेध किया। इस संबंध में उन्होंने बताया कि यह तो अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है। यदि किसी की भावनाएं हम दलित-बहुजनों के उत्सवों से आहत होती है तो उनके उत्सवों से हम भी आहत होते हैं। और चूंकि वह विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं तो उनका काम ही लोगों को जागरूक बनाना है।
बहरहाल, डॉ. हेमलता महिश्वर के संदेश पर आपत्ति व्यक्त करने और पुलिस द्वारा हस्तक्षेप की घटनाएं नई नहीं हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में दलित-बहुजनों के खिलाफ मामले अदालतों में विचाराधीन हैं। उनका कसूर केवल इतना ही है कि वे द्विजवाद को नकार डॉ. आंबेडकर के समतामूलक विचारों में यकीन रखते हैं।
(संपादन : नवल)
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