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कैदियों के आंकड़ों के सवाल पर कटघरे में मीडिया संस्थान

केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा संसद में दिए गए जवाब का संबंध मुख्य रूप से दलितों, आदिवासियों, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग से था कि इन वर्गों के कितने कैदी भारतीय जेलों में बंद हैं। लेकिन सरकार ने जो आंकड़े दिए, उनमें धर्म वार आंकड़ा भी शामिल था। फिर क्या था, मीडिया संस्थानों ने इसे लपक लिया और पूरे मामले को सांप्रदायिक बना दिया। बता रहे हैं अनिल चमड़िया

विश्लेषण

बीते 14 फरवरी, 2021 को बड़ी-बड़ी मीडिया कंपनियों के समाचार पत्रों व वेब पोर्टल ने लोगों के बीच एक खबर फैलाई। इनमें से कुछ के लिंक आलेख के अंत में शामिल हैं। खबर में यह प्रमुखता से बताया गया है कि देश के जेलों में 67 फीसदी से अधिक हिंदू कैदी हैं। यह खबर 10 फरवरी, 2021 को राज्यसभा में एक अतारांकित प्रश्न का केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री द्वारा दिए गए जवाब पर आधारित हैं। लेकिन क्या खबर का मतलब यह होता है कि सरकार जो कहती है, उसमें से किसी अंश को अपने मनमिजाज के मुताबिक छांट लिया जाए और उसे ज्यों का त्यों लोगों के बीच फैला दिया जाए? या फिर सरकार जो संसद में जवाब देती है, उसमें खबर की तलाश की जाए? लेकिन मीडिया को विज्ञापनों की इतनी लत लग गई हैं कि वह खबरों की तलाश नहीं करती और विज्ञापन की तरह ही किसी भी सरकारी दावे को आम लोगों के बीच फैला देती है।

 संसद में क्या प्रश्न पूछा गया? 

देश के जेलों में बंद कैदियों के बारे में राज्य सभा में सैयद नासिर हुसैन ने एक सवाल किया । उन्होंने इस सच्चाई के बारे में बताने के लिए सरकार से अनुरोध किया था कि भारत के जेलों में क्या अधिकतर दलित और मुसलमान हैं और दूसरा सवाल कि अधिकतर पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को जेल में डाले जाने के पीछे क्या कारण हैं? इसके साथ ही, उन्होंने आंकड़े के रुप में यह मुहैया कराने की मांग की थी कि अनुसूचित जातियों/ अनुसूचित जनजातियों/ अन्य पिछड़े वर्गों/ मुस्लिम पृष्ठभूमि के कुल कैदियों का महिला-पुरूष वार राज्य-वार ब्यौरा क्या है? 

सरकार ने जवाब में जबरन आंक़ड़े पेश किए 

केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री ने संसद में चार हिस्सों में इस प्रश्न के जवाब में आंकड़े पेश किए। एक हिस्सा 31 दिसम्बर 2019 तक भारत के जेलों में कैद अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग और अन्य का ब्यौरा प्रस्तुत किया। दूसरे हिस्से में धर्मों के आधार पर कैदियों के बीच वर्गीकरण किया जबकि धर्मों पर आधारित कैदियों के वर्गीकरण के बारे में पूछा ही नहीं गया था। तीसरा और चौथा हिस्सा कैदियों के बीच शिक्षा के स्तर एवं जेलों में शिक्षा का सुविधाओं के बारे में है।

संसद में पूछा गया यह अतारांकित प्रश्न था। अतारांकित प्रश्न का जवाब सरकार की ओर से लिखित में संसद में पेश किया जाता है और इसमें प्रति प्रश्न पूछने की गुंजाइश नहीं होती है। तारांकित प्रश्न का जवाब सदन के पटल पर सरकार देती है और उस जवाब एवं प्रश्न के आलोक में प्रति प्रश्न पूछे जा सकते हैं। 

इस प्रश्न के जवाब में खबर क्या है? 

पूछे गए प्रश्न के जवाब में सरकार ने जो आंकड़े दिए हैं और आंकड़ों को ही मीडिया में पेश करना है तो उनमें प्रमुख आंकडे क्या हो सकते हैं? जो प्रश्न पूछा गया है, उस पर गौर करें। उसमें सरकार से अनुसूचित जातियों/ अनुसूचित जनजातियों/ अन्य पिछड़े वर्गों/ मुस्लिम पृष्ठभूमि के कुल कैदियों का महिला-पुरूष वार राज्य-वार ब्यौरा देने के लिए अनुरोध किया गया है। प्रश्न के जवाब का वह हिस्सा प्रमुख हो सकता है, जिसके बारे में पूछा गया है या फिर सरकार ने अपनी ओर से जो जवाब दिया है, वह लोगों के लिए खबर हो सकती है। सरकार के जवाब को ही प्रमुखता देने का आधार क्या है? क्या यह मीडिया कंपनियों का जातीय पूर्वाग्रह नहीं है? जातीय और सांप्रदायिक पूर्वाग्रह एक-दूसरे के पूरक माने जाते हैं। जातीय पूर्वाग्रहों को ढंकने के लिए साम्प्रदायिकता की आड़ ली जाती है। 

यदि संसद में पूछे गए सवाल पर फिर से गौर करें तो उसमें पूर्वाग्रह के बजाय खबर साफ तौर पर नजर आती है। संसद के प्रश्न में यह पूछा ही नहीं गया है कि सरकार भारत के जेलों में बंद कैदियों का धर्म वार ब्यौरा पेश करें। द वायर के एक खबर पर नजर डालें तो धर्म वार कैदियों के आंकड़ों के बारे में पूर्व में उठे विवाद को जाना जा सकता है । 

संसद में केन्द्र सरकार ने इस प्रश्न के जबाब में धर्म वार आंकड़े जबरन प्रस्तुत किए हैं। अनुसूचित जातियों/ अनुसूचित जनजातियों/ अन्य पिछड़े वर्गों/ मुस्लिम पृष्ठभूमि के कुल कैदियों का महिला-पुरूष वार राज्य-वार जो आंकड़े हैं, वे देश में इन वंचित वर्गों की बदतर स्थिति को उजागर करते हैं। लेकिन इन वंचित वर्गों को बदतर हालात की तस्वीर को धुंधला करने के इरादे से धर्मों पर आधारित कैदियों के आंकडे पेश किए गए। आखिर सरकार को वह आंकड़े पेश क्यों करने चाहिए, जबकि प्रश्नकर्ता सदस्य ने उसकी मांग ही नहीं की है। सरकार ने जबरन इस प्रश्न के उत्तर में धर्म वार आंकड़े पेश किए हैं, इसे आगे एक दूसरे प्रश्न के जवाब से स्पष्ट किया जा सकता है। 

संसद में सरकार के जवाब के उस हिस्से को मीडिया में प्रमुखता दी गई जो कि प्रश्न में पूछा ही नहीं गया था। गौर तलब है कि मीडिया ने सचेत होकर यह किया, क्योंकि केन्द्रीय गृह मंत्री के जवाब को अपने तरीके से मीडिया ने विश्लेषित किया। मसलन 67 फीसदी से ज्यादा हिंदू कैदी हैं, प्रतिशत में यह आंकड़ा मीडिया द्वारा निकाला गया, क्योंकि सरकार के जबाब में कैदियों की संख्या दी गई है। उसे प्रतिशत में पेश नहीं किया गया है। मीडिया ने संख्या को प्रतिशत में बदलने के लिए अपने कैलकुलेटर का इस्तेमाल किया है। लेकिन यह कैलकुलेटर धर्म आधारित कैदियों के आंकड़ों पर ही क्यों ऑन हुआ। यदि समस्त आंकड़ों को प्रतिशत में ही प्रस्तुत किया जाता है कि उसमें अनुसूचित जातियों/ अनुसूचित जनजातियों/ अन्य पिछड़े वर्गों के कुल कैदियों का महिला-पुरूष वार संख्या 65 प्रतिशत से ज्यादा हो जाती है। क्या सभी दलित/आदिवासी/पिछड़े वर्ग के सदस्यों को हिंदू मान लिया गया है? उनके ही मुताबिक यदि कुल हिंदू कैदियों की संख्या 67 फीसदी है तो क्या वे यह कहना चाहते हैं कि भारत में सवर्ण कैदियों की संख्या केवल दो फीसदी है? मुस्लिम कैदियों की संख्या 17 फीसदी से ज्यादा है। यदि सिख और ईसाई अल्पसंख्यक कैदियों की तादाद इसमें जोड़ी जाती है तो केवल अल्पसंख्यक कैदियों की संख्या 24 प्रतिशत से ज्यादा होती है। बौद्ध, जैन, पारसी आदि धर्मों के कैदियों के आंकड़े अलग से नहीं हैं। 

एक प्रश्न यह भी उठता है कि यदि इस प्रश्न के एक हिस्से में केवल मुस्लिम कैदियों के बारे में मांगी गई जानकारी के लिए सभी कैदियों के धर्मों के बारे में सरकार जबरन बता रही है तो यह “उदारता” पिछड़े, दलित एवं आदिवासी के अलावा अन्य जातियों के बारे में भी दिखानी चाहिए थी। उत्तर प्रदेश के एक जेल अधिकारी ने बताया कि प्रदेश के जेलों में 12 नंबर रजिस्टर में सभी कैदियों की धर्म, शिक्षा, उम्र के साथ जाति भी दर्ज की जाती है और ये आंकड़े नेशनल क्राइम रिक़ॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) को भेजे जाते हैं।  

आंकड़े और कैलकुलेटर पूर्वाग्रहों के खेल के सबसे महत्वपूर्ण औजार के रुप में सामने आ रहे हैं।

यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि धर्म का आंकड़ा मांगा नहीं गया और सरकार ने जबरन उसे प्रस्तुत कर दिया तथा मीडिया ने उसे सांप्रदायिक बनाकर फैला दिया। 

भारतीय मीडिया ने जिस तरह से इन आंकड़ों को प्रस्तुत किया है, उसकी तुलना विदेशी एजेंसियों द्वारा सरकार के उपरोक्त जवाब पर आधारित सामग्री से की जा सकती है। इसके लिए नीचे लिंक है। 

लेकिन एक बात बहुत स्पष्ट रुप से देखी जा रही है कि किसी भी मीडिया ने केवल सरकार के जवाब को ही पढ़कर लोगों के बीच सामग्री परोस दी है। जिस प्रश्न के जवाब में आंकडे पेश किए गए हैं, उस प्रश्न को खबर बनाते समय देखने की जरूरत ही नहीं समझी गई है।

सरकार और मीडिया के पूर्वाग्रहों के रिश्ते 

संसद में 10 फरवरी 2021 को ही पूछे गए एक दूसरे सवाल और उसके जवाब को देखें तो धर्म आधारित कैदियों के आंकड़ों को प्रमुखता देने की सच्चाई सामने आती है। दूसरा प्रश्न एक दिलचस्प स्थिति को सामने लाता है। दूसरा प्रश्न भी सैयद नासिर हुसैन ने ही पूछा और उस अतारांकित प्रश्न का केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री ने जवाब दिया है। दूसरा प्रश्न यह था कि इस वर्ष यूएपीए जिसे आतंकवाद विरोधी कानून के रूप में जाना जाता है, के तहत कितने लोग गिरफ्तार किए गए और उनमें कितने लोग अनुसूचित जातियों/ अनुसूचित जनजातियों/ अन्य पिछड़े वर्गों/ मुस्लिम पृष्ठभूमि के हैं। केन्द्रीय गृह मंत्री ने यह तो बताया कि 2019 में 1948 लोगों को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया है और पांच वर्षों में यूएपीए में गिरफ्तार लोगों की संख्या 5922 है । इसके साथ ही यह भी दावा किया कि केवल 132 लोगों के खिलाफ आरोप सिद्ध हुआ हैं। लेकिन संसद सदस्य के सवाल का जो महत्वपूर्ण पक्ष था कि इन गिरफ्तार लोगों में अनुसूचित जातियों/ अनुसूचित जनजातियों/ अन्य पिछड़े वर्गों/ मुस्लिम पृष्ठभूमि के कुल कितने हैं तो केन्द्रीय मंत्री ने यह जवाब दिया कि एनसीआरबी धर्म, नस्ल, जाति अथवा जेंडर के आधार पर आंकड़े नहीं रखता है ।

संदर्भ लिंक : 

  1. https://www.abplive.com/news/india/more-than-67-percent-of-prisoners-in-the-country-jails-are-hindus-about-18-percent-muslims-govt-data-1772633
  2. https://www.amarujala.com/india-news/indian-jail-report-educated-prisoners-more-than-non-educated-67-percent-are-hindus
  3. https://www.jagran.com/news/national-union-home-ministry-data-says-over-67-pc-prison-inmates-hindu-and-nearly-18-pc-muslim-21369580.html
  4. https://www.livehindustan.com/national/story-more-than-67-percent-of-prisoners-in-the-country-jails-are-hindus-about-18-percent-are-muslims-says-in-a-report-of-national-crime-records-bureau-3852897.html
  5. https://hindi.newsclick.in/Why-is-the-NCRB-data-about-prisoners-in-jail-disturbing
  6. https://bit.ly/37loRYB

(संपादन : नवल)


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लेखक के बारे में

अनिल चमड़िया

वरिष्‍ठ हिंदी पत्रकार अनिल चमडिया मीडिया के क्षेत्र में शोधरत हैं। संप्रति वे 'मास मीडिया' और 'जन मीडिया' नामक अंग्रेजी और हिंदी पत्रिकाओं के संपादक हैं

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