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आंबेडकर-भगत सिंह : समतामूलक भारत के निर्भीक स्वप्नद्रष्टा

भगत सिंह जून 1928 में अछूत समुदाय के लिये अधिक अधिकार दिए जाने और पृथक निर्वाचन का समर्थन करते हुए लिखते हैं– ‘हम तो समझते हैं कि अछूत समुदाय का स्वयं को अलग संगठनबद्ध करना तथा मुस्लिमों के बराबर गिनती में होने के कारण उनके बराबर अधिकारों की मांग करना बहुत आशाजनक संकेत है।’ स्मरण कर रहे हैं भंवर मेघवंशी

महज 23 साल की उम्र में भगत सिंह और उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश शासन ने 23 मार्च 1931 के दिन फांसी पर चढ़ा दिया था। फांसी से तीन साल पहले जून 1928 में ‘कीरती’ नामक अख़बार में विद्रोही उपनाम से भगत सिंह का एक आलेख प्रकाशित हुआ, जो बाद में ‘अछूत समस्या’ शीर्षक से प्रसिद्ध हुआ। इस लेख में व्यक्त विचारों को देखें तो भगत सिंह की वैचारिकी और डॉ. आंबेडकर के चिंतन में काफी समानताएं मिलती हैं।

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लेखक के बारे में

भंवर मेघवंशी

भंवर मेघवंशी लेखक, पत्रकार और सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने आरएसएस के स्वयंसेवक के रूप में अपना सार्वजनिक जीवन शुरू किया था। आगे चलकर, उनकी आत्मकथा ‘मैं एक कारसेवक था’ सुर्ख़ियों में रही है। इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद हाल में ‘आई कुड नॉट बी हिन्दू’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। संप्रति मेघवंशी ‘शून्यकाल डॉट कॉम’ के संपादक हैं।

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