तीन महीने से अधिक समय से चल रहे किसान आंदोलन को दबाने के लिए केंद्र सरकार मुकदमों का सहारा ले रही है। पहले किसान नेताओं के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए। जब सरकार उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकी तब उसने आंदोलन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं व स्वतंत्र रूप से रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों को अपना निशाना बनाया।इस क्रम में दलित सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ता नवदीप कौर, शिव कुमार और मनदीप पुनिया आदि गिरफ्तार किए गए तथा नवदीप और शिव कुमार पुलिस की अमानवीय यातनाओं के शिकार हुए। बाद में इन तीनों को अदालत ने जमानत दी। अब इस कड़ी में अगला नाम है निर्देश सिंह का जो पिछले ढाई महीने से गाजीपुर बार्डर पर सावित्रीबाई फुले पाठशाला चला रही हैं। उनके खिलाफ तीन साल पहले दर्ज एक मुकदमे के सिलसिले में गिरफ्तारी का वारंट जारी किया गया है।
बता दें कि पिछले कुछ दिनों से निर्देश सिंह द्वारा संचालित सावित्रीबाई फुले पाठशाला की चर्चा लगातार मीडिया विमर्श के केंद्र में रहा है। साथ ही, इस पाठशाला में किसानों के बच्चों के साथ साथ दलित-बहुजन समाज के कूड़ा बीनने वाले बच्चों के पढ़ने आने के कारण किसान आंदोलन दलित बहुजन समाज तक पहुंचने में कामयाब रहा है। इस तरह यह पाठशाला मीडिया के उस इकहरे नैरेटिव को तोड़ने में कामयाब रहा ,जो अब तक किसान आंदोलन को अमीर किसानों का आंदोलन बता रहा था।

ध्यातव्य है कि कृषि क्षेत्र में मजदूरी करने वाले 80 से 90 प्रतिशत मजदूर दलित बहुजन-समाज से ताल्लुक रखते हैं। निर्देश सिंह, नवदीप कौर और शिव कुमार जैसे दलित सामाजिक कार्यकर्ताओं ने किसान आंदोलन को हरियाणा और पंजाब से निकालकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड के दूर दराज के जिलों तक फैला दिया है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इसी बात से घबराकर केंद्र सरकार किसान आंदोलन से जुड़े दलित कार्यकर्ताओं के खिलाफ़ कार्रवाई कर रही है।
निर्देश सिंह से मिली जानकारी के अनुसार उन्हें 10 मार्च, 2021 को ऐन सावित्रीबाई फुले के महापरिनिर्वाण दिवस के दिन रेलवे न्यायिक दंडाधिकारी की ओर से गिरफ्तारी वारंट भेजा गया है। यह वारंट तीन साल पहले एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट को न्यायपालिका के द्वारा कमजोर किए जाने के खिलाफ़ 2 अप्रैल, 2018 को आहूत ‘भारत बंद’ में शामिल होकर मुरादाबाद में ट्रेन रोकने के आरोप में भेजा गया है। सनद रहे कि निर्देश सिंह को गिरफ़्तारी वारंट ह्वाट्सऐप के जरिए भेजा गया है।
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इस पूरे मामले में निर्देश सिंह बताती हैं कि “उस वक़्त कुछ भी नहीं हुआ था। एफआईआर भी नहीं। तब से मुरादाबाद में तीन इंस्पेक्टर आये और चले गए। पिछले साल इन लोगों ने 127 लोगों का नाम दर्ज कर रखा था, जिनके उपर मुरादाबाद में 2 अप्रैल, 2018 के विरोध प्रदर्शन में भाग लेने का आरोप था। उनमें से अधिकांश छात्र और सरकारी नौकरीपेशा लोगों के नाम थे। तब मैंने बहुत दौड़-धूप कर उन लोगों के नाम कटवाया। साथ ही, मैंने यह भी कहा कि मुरादाबाद में वह आंदोलन मेरे नेतृत्व में हुआ था। यदि आपको कुछ करना है तो मेरे खिलाफ़ करें। तब मुझसे कहा गया था कि कुछ नहीं होगा। कोई केस ही नहीं है किसी के खिलाफ़।”
उन्होंने आगे कहा कि “इन लोगों को सारी परेशानी लोगों के शिक्षित व जागरूक होने से है। किसान आंदोलन में शामिल हर एक प्रभावशाली व्यक्ति को अलग-अलग तरीके से निशाना बनाया जा रहा है। मेरे खिलाफ़ कार्रवाई करने के लिए इनके पास कोई ठोस कारण नहीं था, तो अब तीन साल पुराने मामले को नये सिरे से खड़ा करके मुझे सलाखों के पीछे भेजने की तैयारी की गई है। लेकिन मुझे गिरफ़्तार करके सरकार न तो किसान आंदोलन को तोड़ पाएगी और ना ही माता सावित्रीबाई फुले द्वारा 200 साल पहले जलाए गये शिक्षा के मशाल को बुझा पाएगी।”
(संपादन : नवल)
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