[बीते 19 नवंबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की बात कही। इसे किसानों के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। लेकिन क्या इसके बाद सरकार की नीतियां कृषकों के पक्ष में हो जाएंगीं या फिर यह महज चुनावी पासा है? इस आंदोलन में दलित व पिछड़े वर्ग से आनेवाले छोटे किसानों व खेतिहर मजदूरों की भूमिका कैसी रही तथा उनके सवाल क्या हैं? इन सभी सवालों को लेकर फारवर्ड प्रेस के हिंदी संपादक नवल किशोर कुमार अखिल भारतीय खेत एवं ग्रामीण मजदूर सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष धीरेंद्र झा से बातचीत की। प्रस्तुत है इस बातचीत का संपादित अंश]
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के आलोक में आपकी प्राथमिक प्रतिक्रिया क्या है?
निस्संदेह यह एक बड़ी जीत है। मोदी निजाम की कारपोरेटपरस्ती के खिलाफ संपूर्ण कृषक समाज की गोलबंदी हुई और इस गोलबंदी ने यह साबित कर दिया कि सरकार चाहे कितनी भी फासीवादी क्यों न हो, यदि समाज मिलकर उसका विरोध करे तो उसे पीछे हटना ही होता है। इस मायने में यह एक बड़ी जीत है और इसके लिए किसान आंदोलन में शामिल सभी लोगों को हमारा सलाम। अब सवाल है कि यह अभी मुकम्मिल जीत नहीं हैं। अभी लड़ाईयां शेष हैं। मसलन, न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुनिश्चित करने के लिए एक विशेष कानून का बनया जाना आवश्यक है। इसके अलावा भी देश में कारपोरेट सेक्टर का हस्तक्षेप जिस तरह से बढ़ता जा रहा है, उसे देखते हुए अभी यह नहीं माना जा सकता है कि जो खतरा इस देश के अन्नदाताओं के समक्ष है, वह टल गया है। एक बड़ा सवाल खेतिहर मजदूरों, छोटे किसानों, बटाईदारों का है।