h n

एससी-एसटी की तर्ज पर ओबीसी के लिए विशेष घटक योजना की मांग

बहुजन साप्ताहिकी के तहत इस बार पढ़ें ओबीसी के लिए केंद्रीय बजट में हिस्सेदारी देने की मांग और बिहार में सम्राट अशोक को लेकर भाजपा-जदयू के बीच नूराकुश्ती के बारे में

बहुजन साप्ताहिकी

क्या आप जानते हैं कि इस देश में ओबीसी कितने हैं और उनके लिए केंद्र सरकार बजट में कितना प्रावधान करती है? यह सवाल खड़ा किया है ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ ओबीसी इम्प्लॉयज वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव जी. करुणानिधि ने। उन्होंने यह सवाल उठाते हुए बीते 21 जनवरी को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र भी लिखा है। अपने पत्र में उन्होंने केंद्र से मांग की है कि जिस तरह से केंद्रीय बजट में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष हिस्सेदारी विशेष घटक योजनाओं माध्यम से दी जाती है, वैसे ही प्रावधान ओबीसी के लिए भी किये जाएं।

करुणानिधि ने अपने पत्र में बताया है कि देश में ओबीसी की अनुमानित संख्या करीब 52 फीसदी है और इसीके आधार पर मंडल कमीशन ने 27 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया। यह सच है कि इस देश के 27 फीसदी ओबीसी बहुत गरीब हैं और उनकी हालत अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोगों के समान ही है। यह एक बड़ी आबादी है जिसे विकास की मुख्यधारा में लाये बगैर देश का विकास मुमकिन नहीं है। उन्होंने यह भी उल्लेखित किया है कि ओबीसी के युवाओं के लिए केंद्र सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं के मद में भी जो आंवटन किया जा रहा है, वह अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की तुलना में बहुत कम है।

प्री-मैट्र्रिक, पोस्ट-मैट्रिक व अन्य कल्याणकारी योजनाओं के आलोक में ओबीसी का आवंटन

आवंटन (करोड़ रुपए में)
वित्तीय वर्ष 2016-172017-182018-192019-202020-21
एससी51315418556264046908
एसटी47985300595772535472
ओबीसी 12301237174519442015
जी. करुणानिधि, महासचिव, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ ओबीसी इम्प्लॉयज वेलफेयर एसोसिएशन

यूपी में अगड़ा बनाम पिछड़ा-दलित नॅरेटिव, भाजपा ने की साठ फीसदी सीटों पर दलितों-पिछड़ों को उम्मीदवार बनाने की घोषणा

इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा काे अपने हिंदुत्वादी नॅरेटिव को छोड़कर समाजवादी पार्टी (सपा) द्वारा स्थापित नॅरेटिव को मानने पर मजबूर होना पड़ रहा है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि हाल के दिनों में भाजपा के अनेक कद्दावर दलित-ओबीसी नेताओं ने सपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। इसे देखते हुए भाजपा ने साठ फीसदी सीटों पर दलितों व ओबीसी को उम्मीदवार बनाने का एलान किया। इसका प्रमाण बीते शुक्रवार को भाजपा द्वारा जारी अपने उम्मीदवारों की तीसरी सूची है। इस सूची में 85 उम्मीदवारों के नाम हैं। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सिद्धार्थ नाथ सिंह ने इसके बारे में बताया कि इसमें 49 दलित व ओबीसी हैं। इसके अलावा इसमें 36 उम्मीदवार सामान्य वर्ग के हैं। उन्होंने बताया कि अबतक उनकी पार्टी ने 194 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की है और इसमें साठ फीसदी सीटें दलित-ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों को दिये गये हैं। हालांकि यह सिद्धार्थ नाथ सिंह ने इसका उल्लेख नहीं किया कि आरक्षित सीटों के अलावा कितने सामान्य सीटों के लिए दलित उम्मीदवारों की घोषणा की गई है।

सम्राट अशोक विवाद : उपेंद्र कुशवाहा ने भाजपा पर किया पलटवार

मौर्य वंश के शासक रहे सम्राट अशोक के जीवन पर आधारित नाटक के रचनाकार दया प्रकाश सिन्हा को लेकर शुरू हुआ विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस विवाद के केंद्र में बिहार में सत्तासीन एनडीए के दो बड़े घटक दल जदयू और भाजपा हैं। बताते चलें कि इससे पहले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने जदयू नेताओं को चेताते हुए कहा था कि वे दया प्रकाश सिन्हा को साहित्य अकादमी द्वारा दिये गए पुरस्कार की वापस लेने की मांग को लेकर जारी बयानों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम न घसीटें। उन्होंने यह भी कहा था कि यदि जदयू के नेता गठबंधन धर्म का पालन नहीं करेंगे तो भाजपा के 75 लाख कार्यकर्ता उन्हें मुंहतोड़ जवाब देंगे। डॉ. संजय जायसवाल पर पलटवार करते हुए जदयू के वरिष्ठ नेता उपेंद्र कुशवाहा ने बीते 17 जनवरी को कहा कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केवल दया प्रकाश सिन्हा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराकर पल्ला नहीं झाड़ सकते हैं। उन्हें यह स्पष्ट करना होगा कि वे सम्राट अशोक की आलोचना मामले में किसके साथ खड़े हैं। कुशवाहा ने यह भी कहा कि दया प्रकाश सिन्हा को दिया गया सम्मान को वापस लेने की मांग जदयू प्रधानमंत्री से करती रहेगी और जरूरत पड़ी तो इसके लिए आंदोलन भी चलाया जाएगा।

(संपादन : अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

संबंधित आलेख

बहुजनों के हितार्थ बनाए गए संविधान को मनुस्मृति से खतरे की बात बार-बार क्यों दोहरा रहे हैं राहुल गांधी?
समता, स्वतंत्रता और न्याय के संघर्ष में संत तुकाराम, बासवन्ना, गुरु नानक, सामाजिक क्रांतिधर्मी जोतीराव फुले और डॉ. आंबेडकर का चिंतन भारत के संविधान...
संवाद : इस्लाम, आदिवासियत व हिंदुत्व
आदिवासी इलाकों में भी, जो लोग अपनी ज़मीन और संसाधनों की रक्षा के लिए लड़ते हैं, उन्हें आतंकवाद विरोधी क़ानूनों के तहत गिरफ्तार किया...
‘चरथ भिक्खवे’ : बौद्ध परिपथ की साहित्यिक-सांस्कृतिक यात्रा सारनाथ से प्रारंभ
हिंदी प्रदेशों में बड़े पैमाने पर सांस्कृतिक पिछड़ापन है। यहां पर फासीवादी राजनीति ने अपना गढ़ बना लिया है। इसलिए किसी भी सामाजिक परिवर्तन...
हरियाणा में इन कारणों से हारी कांग्रेस
हरियाणा में इस बार चुनाव बेहद दिलचस्प था। इस बार भी ओबीसी और दलित वोटर निर्णायक साबित हुए। भाजपा न सिर्फ ग़ैर-जाट मतदाताओं को...
ब्राह्मण-ग्रंथों का अंत्यपरीक्षण (संदर्भ : श्रमणत्व और संन्यास, अंतिम भाग)
तिकड़ी में शामिल करने के बावजूद शिव को देवलोक में नहीं बसाया गया। वैसे भी जब एक शूद्र गांव के भीतर नहीं बस सकता...