ई.वी. रामासामी पेरियार (17 सितंबर, 1879 – 24 दिसंबर, 1973) पर विशेष
पेरियार का सार्वजनिक जीवन बेहद सक्रिय और बहुआयामी था। तमिल समाज, विशेष रूप से गैर-ब्राह्मणों में आत्ससम्मान की भावना जाग्रत करने तथा उनके अधिकारों के लिए वे कई मोर्चो पर एक साथ लड़ रहे थे। जातीय भेदभाव, राजनीतिक-सामाजिक वर्चस्ववाद, धार्मिक आडंबरवाद, सामाजिक कुरीतियां और रूढ़ियां, स्त्री-स्वतंत्र्य, जातीय विषमता, देवदासी प्रथा, विधवा समस्या, बाल-विवाह आदि। मानव समाज का कोई ऐसा सरोकार न था जो उनका अपना सरोकार न हो। न कोई ऐसी त्रासदी नहीं थी, जिससे वे जूझे न हों। वे व्यापारी, नेता, समाज सुधारक, चिंतक, विचारक, भाषा-वैज्ञानिक, तर्कशास्त्री, आंदोलनकर्मी, मार्गदर्शक आदि सभी कुछ एक साथ थे। इसके अलावा उनका एक रूप और भी था। वह था, पत्रकार-संपादक का। अधिकांश लोग उनके इस रूप के बारे में ज्यादा नहीं जानते। हालांकि इस क्षेत्र में भी उनका योगदान इतना महत्वपूर्ण और मौलिक है कि यदि उनके दूसरे कार्यों को छोड़ दिया जाए तब भी वे ‘पेरियार’ (महान) कहे जा सकते हैं। ‘कुदी आरसु’ (1925), ‘द्रविड़ियन’ (1927), ‘रिवोल्ट’ (1928), ‘पुरात्ची’ (1933), ‘पाहुथरिवु (1934), ‘विदुथलाई’ (1935), ‘जस्टिस’ (1942), ‘उन्मई’ (1970) तथा दि माडर्न रेशनिलष्ट (1971) जैसे पत्र-पत्रिकाओं से उनका संबंध रहा। इनमें से कुछ की स्थापना उन्होंने स्वयं की। वहीं कुछ का संपादन दायित्व संभाला। अपनी अर्जित पूंजी का बड़ा हिस्सा उन्होंने इन अखबारों पर खर्च किया। व्यापारिक घाटा सहा। यहाँ तक कि जेल यात्राएं भी कीं। लेकिन अपने सरोकारों पर आंच न आने दी। मानव मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता हमेशा बनी रही।