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यूपी चुनाव : आवारा गौवंशीय पशुओं का आतंक बन रहा चुनावी मुद्दा

गेहूं की सिंचाई में लगे विश्वनाथगंज खास के हरकेश बहादुर सिंह अपने खेतों के चरे हुये हिस्सों को दिखाते हुये कहने लगे गेहूं के खेत में जो पीला भाग दिख रहा है वो जानवरों का चरा हुआ है और जो हरा भाग है वो बचा हुआ है। वो बताते हैं कि छुट्टा जानवरो का इतना आतंक 4-5 साल पहले नहीं था। पढें, सुशील मानव की जमीनी रपट

उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र के बाकी इलाकों और पूर्वांचल में आवारा पशु, छुट्‌टा जानवर सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है। एक प्रमाण तो यही कि बीते 22 फरवरी, 2022 को राजधानी लखनऊ से 40 किमी दूर बाराबंकी में योगी आदित्यनाथ की सभा से पहले ग्रामीणों ने वहां छुट्‌टा जानवरों को छोड़ कर अपना आक्रोश व्यक्त किया। समाजवादी पार्टी (सपा) ने इसे सरकार की सबसे बड़ी नाकामी करार दिया है। सपा ने अपने घोषणापत्र में सांड की टक्कर से मरने वाले व्यक्ति के परिवार को 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का वादा किया है।

पश्चिमी यूपी से पलायन, धर्मांतरण, हिंदू-मुस्लिम, जिन्ना, पाकिस्तान जैसे मुद्दे लेकर चली भाजपा पूर्वांचल में छुट्टा सांडों के मुद्दे के सामने घुटनों पर है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 फरवरी को उन्नाव के सिकरी मोड़ रैली में कहा कि – “आवारा पशुओं के कारण आप लोगों को जो परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, उससे निपटने के लिए 10 मार्च के बाद नई व्‍यवस्‍था लागू की जाएगी। ऐसी व्‍यवस्‍था बनाई जाएगी, जिसके तहत आप ऐसे पशुओं के गोबर से भी आमदनी कर सकेंगे, जो दूध नहीं देते।”

वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 23 फरवरी को अमेठी की जनसभा में घोषणा की है कि आवारा पशुओं के मामलों से निपटने के लिए वे अब कार्य करेंगे। और नई सरकार बनने के बाद 900 से 1000 रुपये तक किसानों को ही पशुओं की देखभाल के लिए देने की घोषणा की है। साथ ही इस मुद्दे पर सांप्रदायिक रंग देकर योगी ने कहा है कि उनकी सरकार ने अवैध बूचड़खानों को पूरी तरह से बंद कर दिया है। मैं वादा करता हूं कि हम ‘गौमाता’ का वध नहीं होने देंगे। इससे उन्होंने साफ कर दिया कि विपक्षी दल इस समस्या का समाधान अवैध बूचड़खानों को अनुमति देकर करेगा। 

क्या हैं ज़मीनी हालात? 

प्रतापगढ़ के सेंहुरवा गांव में खेतों और नालियों से होते हुये हम शिव कुमार यादव के खेतों में घुसे। शिव कुमार सरसों के खेत में बनी 7 फुट ऊंचे मचान पर सो रहे थे। जगाने पर बोले कि रात भर खेतों की रखवाली में जगना पड़ता है दिन में यहीं मचान पर सो जाते हैं। 

शिव कुमार बटाई पर खेती करते हैं। उन्होंनें खेतों के चारो ओर बांस की बाड़ लगा रखी है और कांटों से रूंध रखा है। और मचान बनाकर रखवाली करने के बावजूद जंगली सुअरों ने खेतों में घुसकर उनकी सरसों की फसलों को मटियामेट कर दिया है। शिव कुमार अपने खेतों में सुअर के आंतक के निशाने को दिखाते हुये बताते हैं कि इस सीजन में डीएपी और यूरिया खाद की बहुत किल्लत हुई थी। छुट्टा जानवरों में भैंस और भैंसा नहीं दिखते, सिर्फ़ गाय व सांढ़ ही हैं। यदि सरकार जानवर काबू में कर ले तो किसान खेती से ही जी खा लेगा, वर्ना किसानों के सामने कोई रास्ता नहीं बचेगा।

मचान पर बैठकर खेत की रखवाली करते शिव कुमार

गेहूं की सिंचाई में लगे विश्वनाथगंज खास के हरकेश बहादुर सिंह अपने खेतों के चरे हुये हिस्सों को दिखाते हुये कहने लगे गेहूं के खेत में जो पीला भाग दिख रहा है वो जानवरों का चरा हुआ है और जो हरा भाग है वो बचा हुआ है। वो बताते हैं कि छुट्टा जानवरो का इतना आतंक 4-5 साल पहले नहीं था। तब केवल नीलगाय होते थे। हरकेश जी अपने खेतों से संटे बीसों बीघे के परती चक दिखाकर कहते हैं कि पानी के साधन के बावजूद ये चक परती पड़े हैं, क्या करें लागत तक चर जाते हैं छुट्टा जानवर। जुताई, खाद, बीज, कीटनाशक पानी, मजदूरी सब जोड़ने के बाद भी जब खेत में फसल नहीं बचती तो लोगों ने बोना ही छोड़ दिया। लागत भी गंवाने से क्या फायदा। मैंने कहा हमारे यहां खेतों को परती रखना अशुभ माना जाता है। इस पर हरकेश जी बोले कि हां, अशुभ तो होता है। कुछ बोने से कमाई होगी। लोगों का पेट भरेगा, लेकिन क्या करें जब बचेगा ही नहीं तो। नीलगाय टिकाऊ जानवर नहीं है। वह डराने पर भाग जाता है लेकिन छुट्टा जानवर नहीं भागते। वो झुंड के झुंड चलते हैं और सब चट कर जाते हैं।

उगईपुर गांव में दयाशंकर पटेल हाथ में खुर्पी लिये एक क्यारी से दूसरे क्यारी पानी निकालते हुए बताते हैं कि कंटीले तार का बाड़ खींच रखा है, फिर भी जानवरों के कारण फसल नहीं बच रही। जब से जोगी आये हैं सांढोंकी बहार है, किसानों के यहां मातम है। जोगी गाय, सांड सुअर सब छोड़ दिये हैं। आप किसान लोग अपने स्थानीय संसद-विधायक से इसके बारे में आवाज़ नहीं उठाते, इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं कि यहां कोई नहीं आता भैय्या। वोट लेने के बाद कोई नहीं झांकता कि हम जी रहे हैं या मर रहे हैं। तीन भाईयों में 3 बीघे साझा खेत में एक मड़हा बनाकर रहते हैं। रात भर खेतों में रखवाली करते हैं। कहते हैं पहले दाल नहीं ख़रीदनी पड़ती थी, खेतों में हो जाता था, अब इसे भी ख़रीदकर खाना पड़ता है। किसानी जीवन की समस्यांओं को हमसे साझा करते हुये वो कहते हैं कि मौके पर यूरिया और डीएपी नहीं मिलती। सिंचाई के समय बिजली नहीं मिलती। और बिल बहुत बढ़ा-चढ़ाकर आता है जबकि कुछ ज़्यादा इस्तेमाल भी नहीं करते।

किसानों की फसलें बर्बाद कर रहे हैं आवारा पशु

बभनमई गांव के शीतलाल धुरिया के पास अपनी जमीन नहीं है। वो एक ब्राह्मण परिवार का खेत बटाई पर लेकर खेती करते हैं। अघोल होकर आलू बीनने में लगे शीतलाल धुरिया नई खोदी आलू दिखाते हुये बताते हैं कि देखिए, आलू की साइज। डीएपी नहीं मिली। इस समिति से उस समिति दौड़ने के बावजूद जब नहीं मिली तो बाज़ार से 1500 रुपये में दो नंबर की डीएपी ख़रीदकर आलू बोया था। नकली डीएपी थी तो कुछ काम ही नहीं किया। आलू छोटे रह गये।  किसानी जीवन के अन्य समस्याओं को बताते हुये शीतलाल कहते हैं जानवरों का आतंक है। सुअर ओंड़ देती है। पानी की सुविधा नहीं है। करीब 120 रुपए घंटे की दर से पानी ले आते हीं, खेतों में बिजली कट जाती है। बीच बीच में तो सिंचाई की लागत बढ़ जाती है। 16 रुपए किलो आलू लगाया, अपना बेंचूगा तो 7-8 रुपए किलो बिकेगा। अरहर बोया था, जानवरों ने चर के खत्म कर दिया। यहां तक कि लहसुन धनिया सब चर गये।

इसी गांव के किसान संतोष कुमार उपाध्याय कहते हैं “योगी और मोदी गाय व बछड़ा सब छोड़ दिये हैं। इनकी कोई व्यवस्था नहीं है। सारी खेती चरि के खाय लेत हैं। जितना 10 किलो राशन देते हैं, उससे जाने कितने कुंटल किसान की फसल सांढों-गायों से खियाय देते हैं। चार बीघा सरसों में 40 बोझ पैदा होई, सब चरि लिये हैं। बीस बांस ख़रीदी तौ 2-3 हजार उसमें ही लग जाता है। सरकार का हुक्म है कि कँटहवा तार न रूँधा।” 

संतोष उपाध्याय की मां कहती हैं कि “गैय्या बछवा के मारे अब कुछ नाहीं बोई जात अहै। सब खेती खतम होइ गा। परबत चना मटर अरहर होत रहा। मोल के लइ के खा। पांच किलो गेहूं दइ के सब चौपट कइ दिहेन। खाद में कमी कइ दिहेन (बोरी 50 के बजाय 45 किलो आने लगी), हर चीजै में महंगाई लाय दिहे हैं। जनता मरत है तो मरै। अपुवै खटइ के बा, मरइ के बा। इहै वोटवा भर चाहे जवन दै देइं, वोट खत्म होइ जाये फिर देख्या ढेला न देइहे मोदी योगी।” 

इसी तरह बटाई पर खेती करने वाली भूमिहीन चित्रा देवी प्रजापति कहती हैं कि “हमरे खेते में नाही होत बा तौ छीमी मटर 35-40 रुपिया किलो मिलत बा। निमोना खाय के तरसि गये। यूं मोटी मोटी गंजी [शंकरकंद] होती रही आज आंख में दरेरै के सुतरा तक मुअन्सर नाही होत बा। सब छुट्टा जानवर और जंगली सुअर के चलते। दर्जनों जानवर कूद परत हइ तो चरि के बैठाय देति हैं। 10 हजार लागत लगावा और 2 हजार से फसल नाही मिलत बा। अधिया तिकुरी खेत लिहे अहि। बांस लगाये हैं ख़रीद के। साड़ी पांच पांच सौ के ख़रीदे रहे पहिरै के लिये। लेकिन खेत के लागत जाते नहीं देखा जात भैय्या। सब साड़ी खेत में बांध दी।” 

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

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