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दिल्ली के प्रेस क्लब पहुंचे आदिवासी, नजर आया मीडिया का गैर-आदिवासी चरित्र

गढ़चिरौली जिला परिषद के सदस्य व अधिवक्ता लाल्सू नोटोटी ने कहा कि मैं यहां इसलिए आया हूं ताकि गढ़चिरौली में कॉरपोरेटीकरण व सैन्यीकरण की बात दिल्ली के लोग भी जानें व इसके खिलाफ हो रहे आंदोलन में हमारा साथ दें

बीते 30 मार्च, 2022 को नई दिल्ली के प्रेस क्लब का नजारा अलग था। बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ष्ट्र आदि राज्यों से सामाजिक कार्यकर्ता जुटे थे। ‘फोरम एगेन्स्ट कॉरपोरेटाइजेशन एंड मिलिटराइजेशन’ के बैनर तले देश के आदिवासी अपनी हुंकार की आवाज सुनाने दिल्ली आये थे। लेकिन मुख्यधारा की मीडिया ने इसे कोई महत्व नहीं दिया। यहां तक कि वैकल्पिक मीडिया कहे जानेवाले मीडिया संस्थानों ने भी आदिवासियों के इस प्रेस कांफ्रेंस से खुद को दूर रखा। 

वक्ताओं में सिलगेर, बस्तर (छत्तीसगढ़), सूरजगढ़ (महाराष्ट्र), पारसनाथ (झारखंड) में जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिए संघर्षरत आदिवासी एक्टिविस्ट, गढ़चिरौली (महाराष्ट्र) के ज़िला परिषद सदस्य अधिवक्ता लाल्सू नोगोटी, झारखंड के पत्रकार रूपेश कुमार सिंह एवं चर्चित मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार शामिल थे।

प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए सबसे पहले गढ़चिरौली से आये सैनु गोटा ने कहा कि गढ़चिरौली में खनन कम्पनी को लगाने के लिए आदिवासियों के उपर अर्द्धसैनिक बलों द्वारा अत्याचार किया जा रहा है। करीब 40 हजार एकड़ जमीन सिर्फ गढ़चिरौली जिला में खनन करनेवाली कंपनियों को दे दी गयी है। उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासियों का जीवन पूरी तरह से जंगल पर निर्भर है, लेकिन अब जंगल में जाने पर सुरक्षा बल आदिवासियों का उत्पीड़न करते हैं।

ग्राम सभा के साथ काम करने वाली गढ़चिरौली की राजश्री लेखामी ने कहा कि आदिवासियों के लिए जो कानून बना है, उसपर सरकार अमल नहीं कर रही है। पार्लाकोटा नदी का पानी खनन के कारण प्रदूषित हो गयी है। सुरक्षा बलों को आदिवासी इलाके में रखकर खनन कम्पनियों का विस्तार किया जा रहा है। हमें पुलिस कैम्प नहीं चाहिए, हमारे इलाके में पुलिस कैम्प की कोई जरूरत नहीं है। पुलिस कैम्प आदिवासी इलाके में भय का माहौल बनाते हैं।

प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हिमांशु कुमार

गढ़चिरौली जिला परिषद सदस्य व अधिवक्ता लाल्सू नोगोटी ने कहा कि आदिवासी हमेशा निशाने पर रहते हैं। पांचवीं व छठी अनुसूची एवं पेसा एक्ट के खिलाफ जाकर आदिवासी इलाकों में खनन कम्पनी लगायी जा रही है। जब बड़ी कम्पनियां आती हैं तो वह अपने साथ पारा मिलिट्री फोर्स को भी लाती है और पारा मिलिट्री फोर्स लाती है टॉर्चर, गिरफ्तारियां, बलात्कार व झूठी मुठभेड़ें। गढ़चिरौली के सौ गांवों मे लगभग 25 आदिवासियों के उपर यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। नोटोटी ने कहा कि मैं यहां इसलिए आया हूं, ताकि गढ़चिरौली में कॉरपोरेटीकरण व सैन्यीकरण की बात दिल्ली के लोग भी जानें व इसके खिलाफ हो रहे आंदोलन में हमारा साथ दें।

संवाददाता सम्मेलन में सामाजिक कार्यकर्ताओं की रही भीड़, मुख्यधारा के मीडियाकर्मियों ने की उपेक्षा

सिलगेर (बस्तर) से मूलवासी बचाओ मंच के रघु व गजेन्द्र ने सिलगेर में मई 2021 से लगातार चल रहे सीआरपीएफ कैंप विरोधी आंदोलन के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि 17 मई, 2021 को जब सुकमा व बीजापुर जिला के सीमावर्ती गांव सिलगेर में हमलोग सीआरपीएफ कैम्प के निर्माण का विरोध कर रहे थे, तो सीआरपीएफ के जवानों ने हमारे लोगों के उपर गोलियां चलायी, जिसमें हमारे तीन साथी मौके पर ही शहीद हो गये और एक गर्भवती महिला गंभीर रूप घायल हो गयी, जो बाद में शहीद हो गयी। अभी बस्तर में दर्जनों जगह पर सीआरपीएफ कैम्प के निर्माण के विरोध में आदिवासी आंदोलन कर रहे हैं। बस्तर में सीआरपीएफ किसी को भी कभी भी माओवादी बताकर गिरफ्तार कर लेती है और कई बार गोली भी मार देती है। बस्तर में सुरक्षा बलों के आतंक से हम आदिवासी कराह रहे हैं, वे हमारी महिलाओं के साथ बलात्कार करते हैं और फिर माओवादी बताकर गोली मार देते हैं।

उन्होंने कहा कि हमलोगों को भी डर लग रहा है कि दिल्ली अपनी बात सुनाने आ तो गये हैं, लेकिन यहां से जाने के बाद पुलिस कहीं गिरफ्तार न कर ले। उन्होंने कहा कि अब हमारे आंदोलन के एक साल पूरे होने वाले हैं, लेकिन सरकार ने चुप्पी साध रखी है, इसीलिए हमलोग यहां आए हैं ताकि हमारी बात राजधानी की मीडिया में भी प्रकाशित हो और सरकार हमारी बात सुने। हमें सीआरपीएफ कैम्प नहीं चाहिए, हमें स्कूल व अस्पताल चाहिए।

पारसनाथ (झारखंड) से आए झारखंड जन संघर्ष मोर्चा से जुड़े अनिल किस्कू ने कहा कि पारसनाथ पहाड़ के आसपास वर्तमान में 12 पुलिस कैम्प (सीआरपीएफ, झारखंड जगुवार, आईआरबी, थाना व ओपी) है, फिर भी और चार सीआरपीएफ कैम्प लगाया जा रहा है। जब यहां के आदिवासियों ने इसका विरोध किया, तो कई आदिवासियों पर मुकदमा दर्ज कर दिया गया व कई को जेल में बंद कर दिया गया। अभी हाल-फिलहाल मेरे साथी भगवान दास किस्कू को 20 फरवरी को पुलिस ने रांची से गिरफ्तार किया, लेकिन 23 फरवरी को जंगल से उनकी गिरफ्तारी माओवादी बताकर दिखायी गयी। जबकि वे अपने इलाके में बन रहे सीआरपीएफ कैम्प के खिलाफ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर उन्हें आवेदन भी दिया था। पारसनाथ क्षेत्र में सीआरपीएफ व पुलिस के द्वारा आदिवासी जनता पर जुल्म ढाया जा रहा है और जो भी इसका विरोध करते हैं, उनको माओवादी बताकर जेल में बंद कर दिया जाता है।

झारखंड से आये पत्रकार रूपेश कुमार सिंह ने कहा कि केन्द्र की मोदी सरकार ने ऑपरेशन समाधान के जरिए आदिवासियों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है। सरकार माओवादी के खिलाफ ऑपरेशन समाधान की बात करती है, लेकिन असलियत में सरकार ऑपरेशन समाधान के जरिए आदिवासियों को फर्जी मुठभेड़ों में मार रही है, फर्जी मामलों में गिरफ्तार कर रही है । झारखंड में भी कई आदिवासियों की हत्या फर्जी मुठभेड़ में हुई है। झारखंड में अभी महागठबंधन की सरकार है, लेकिन आदिवासियों पर दमन के मामले में यह भी पीछे नहीं है। आज पूरे झारखंड में आदिवासियों की जमीन को पूँजीपतियों के हवाले करने के लिए आदिवासियों को विस्थापित करने की योजना बन रही है, जिसके खिलाफ में आदिवासियों का आंदोलन भी चल रहा है। उन्होंने अपील किया कि झारखंड में हो रहे कॉरपोरेटाइजेशन और मिलिटराइजेशन एवं आदिवासियों पर हो रहे दमन के खिलाफ सभी लोग आगे आएं।

मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने कहा कि आज आदिवासियों पर हो रहे हमले का कारण उनके यहां का खनिज संपदा है, जब खनिज संपदा आदिवासी इलाके से खत्म हो जाएंगे, तो आदिवासियों पर हमले भी रूक जाएंगे। उन्होंने कहा कि अर्द्धसैनिक बलों की अधिकांश संख्या आदिवासी इलाके में है। आदिवासी इलाके में विकास कॉरपोरेट का हो रहा है ना कि आदिवासियों का। 

(संपादन : नवल/अनिल, इनपुट सहयोग : आर. के. सिंह)


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