आज़ादी के 75 सालों में हमारे देश में क्या-क्या बदला है? इस प्रश्न का अलग-अलग लोग अलग-अलग उत्तर देंगे। एक उत्तर शायद यह भी हो कि सवर्णों ने दलितों का दमन करने के तरीके बदल लिए हैं और दलितों की प्रतिरोध की रणनीति भी बदल गई है। लेकिन यह सच है कि अछूत प्रथा आज भी जिंदा है और दलितों को आज भी उत्पीड़न किया जाता है, उनका शोषण होता है और उनके विरुद्ध हिंसा भी होती है। राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, सन 2020 में दलितों (अनुसूचित जातियों) की हर एक लाख आबादी पर अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अंतर्गत अपराध / अत्याचार के 25 प्रकरण दर्ज किए गए। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, 2020 में उक्त अधिनियम के अंतर्गत 53,886 प्रकरण दर्ज हुए। उसके पिछले वर्ष (2019) यह संख्या 49,508 थी। दलितों के विरुद्ध अत्याचारों की वास्तविक दर इससे कहीं अधिक होगी, क्योंकि पुलिस तंत्र में व्याप्त जातिगत पूर्वाग्रहों के चलते अनेक मामलों में अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम , 1989 के तहत प्रकरण दर्ज ही नहीं किये जाते हैं।