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आदिवासियों, दलितों और ओबीसी को अंग्रेजी शिक्षा से वंचित करने का ‘शाही’ षडयंत्र

अमित शाह चाहते हैं कि ग्रामीण और गरीब परिवारों के लोग अपने बच्चों की शिक्षा क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से करवाएं ताकि वे हमेशा दूसरों से पीछे रहे। बता रहे हैं कांचा इलैया शेपर्ड

अभी कुछ समय पहले तक केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ‘एक राष्ट्र, एक भाषा’ सिद्धांत के कट्टर समर्थक थे। ‘एक भाषा’ से उनका आशय था हिंदी, जिसका वे निरंतर प्रचार करते थे। दक्षिण भारतीय राज्यों ने साफ़ कर दिया कि वे इस सिद्धांत से सहमत नहीं हैं। इसके अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखिया मोहन भागवत ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा कि सभी भारतीय भाषाएं एक बराबर हैं। इसके बाद, शाह, जो कि मोदी के बाद आरएसएस-भाजपा के प्रधानमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार हैं, ने अपना सुर बदल लिया। अब उनकी राय यह है कि भारतीयों की प्रतिभा को सामने लाने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देना ज़रूरी है।

गत 19 अगस्त, 2022 को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 लागू होने की दूसरी वर्षगांठ पर दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केन्द्रीय गृहमंत्री ने कहा कि कानून, चिकित्सा और इंजीनियरिंग की पढ़ाई भारतीय भाषाओं में होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अनुसंधान एवं विकास तभी संभव हो सकता है जब अनुसंधानकर्ता अपनी भाषा में सोचें। उन्होंने कहा कि अपनी भाषा में शोध न होने के कारण ही भारत शोध के क्षेत्र में पीछे है। कार्यक्रम में केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी उपस्थित थे। 

यह किसी से छिपा नहीं है कि संघ-भाजपा गठबंधन कर्नाटक के बाद दक्षिण भारत में तेलंगाना में अपनी सरकार बनाना चाहता है और इसीलिए शाह का यह प्रयास है कि वे दक्षिण भारत में भी स्वीकार्य बनें। 

परंतु दक्षिण भारत में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने की चेतना और आकांक्षा पहले की तुलना में बहुत बढ़ गई है। गांव-गांव में लोग नौकरियों के ग्लोबल बाज़ार में अपना स्थान सुरक्षित करना चाहते हैं। ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को भी यह एहसास है कि अगर उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रोजगार पाना है तो उन्हें अंग्रेजी सीखनी ही होगी। क्षेत्रीय भाषा में उच्च शिक्षा उन्हें उनके राज्य की सीमाओं से बाहर नहीं निकलने देगी। उच्च और मध्यम वर्ग ने पहले से ही क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाओं में अपने बच्चों को पढ़ाना बंद कर दिया है। निजी अंग्रेजी माध्यम के स्कूल इन वर्गों की शक्ति, सत्ता और समृद्धि के स्रोत बन गए हैं। ये वर्ग क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा की ओर वापस नहीं जाएंगे। 

इस सबके चलते ही तेलंगाना और आंध्रप्रदेश की सरकारों को मजबूर होकर सरकारी स्कूलों में भी अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई शुरू करवानी पड़ी। अगर भाजपा तेलंगाना में सत्ता में आती है तो क्या वह सरकारी स्कूलों में फिर से केवल तेलुगू माध्यम में पढ़ाई शुरू करवाएगी? 

अमित शाह तो यही चाहते हैं। परंतु यह तेलंगाना की ग्रामीण जनता के लिए पीछे की ओर जाना होगा। अगर शासकीय स्कूल एक बार फिर तेलुगू माध्यम से शिक्षा प्रदान करना शुरू कर देते हैं तो इससे जनता पर जो नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा वह रायथू बंधु एवं दलित बंधु कल्याण योजनाओं के बंद होने से भी गहरा होगा।

अमित शाह ने तो अपने पुत्र जय शाह की पढ़ाई तो अंग्रेजी माध्यम के विश्व स्तरीय स्कूल में करवाई। वे यह भी जानते हैं कि कारपोरेट जगत के उनके कुबेरपति मित्र, धनिकों की संतानों के लिए वैश्विक स्तर के अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूल खोल रहे हैं। क्षेत्रीय भाषाओं पर जोर देने का एजेंडा इन वर्गों के लिए नहीं है। अमित शाह चाहते हैं कि ग्रामीण और गरीब परिवारों के लोग अपने बच्चों की शिक्षा क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से करवाएं ताकि वे हमेशा दूसरों से पीछे रहे। 

गुणवत्तापूर्ण अधिसंरचना और योग्य शिक्षकों के साथ अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा में निवेश, राष्ट्र निर्माण की राह प्रशस्त करेगा और भारत को दुनिया से जोड़ने में मददगार साबित होगा। आरएसएस-भाजपा गठबंधन नहीं चाहता कि अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में आम लोगों के बच्चों को शिक्षा मिले और वे अन्यों के बराबर आ सकें। विचारधारा के स्तर पर यह गठबंधन हिंदी और संस्कृत की बात करता है परंतु चोरी-छिपे अंग्रेजी का इस्तेमाल करता है। आंध्रप्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में हम देख सकते हैं कि आमजन वैश्विक कनेक्टिीविटी के साथ शैक्षणिक समानता के पक्षधर हैं। शोध, चिकित्सा, इंजीनियरिंग इत्यादि का शिक्षण क्षेत्रीय भाषा में करवाने का अमित शाह का प्रस्ताव विद्यार्थियों के लिए अनर्थकारी होगा। शाह आम जनता को धोखा दे रहे हैं।

गत 29 जुलाई को नई दिल्ली में शिक्षा मंत्रालय द्वरा आयोजित कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान व शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी

यद्यपि टीआरएस सरकार को राज्य में स्कूली शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए मैदानी स्तर पर अभी बहुत कुछ करना बाकी है, परंतु सभी सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई शुरू करवाने का उसका निर्णय अच्छा एवं समतावादी शिक्षा की ओर कदम है। दुखद है कि टीआरएस नेता राज्य के लोगों को यह समझा नहीं पा रहे हैं कि भाजपा की शिक्षा नीति, सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने की उनकी नीति के खिलाफ है। तेलंगाना के सरकारी स्कूलों की किताबें दोनों भाषाओं में छापी जा रही हैं अर्थात क्षेत्रीय भाषा व अंग्रेजी। शिक्षकों के कौशल स्तर का भी उन्नयन किया गया है। 

हम सबने देखा है कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार की स्कूली शिक्षा व्यवस्था ने संघ और भाजपा को बचाव की मुद्रा में ला दिया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजधानी के सरकारी स्कूलों के बेहतरीन होने के तथ्य का इस्तेमाल वैश्विक स्तर पर विश्वसनीयता हासिल करने के लिए कर रहे हैं। हाल में दिल्ली की स्कूली शिक्षा व्यवस्था पर ‘द न्यूयार्क टाईम्स’ में छपी खबर का इस्तेमाल केजरीवाल अपने शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया को जेल में डालने की भाजपा सरकार की धमकियों का मुकाबला करने के लिए एक हथियार के तौर पर कर रहे हैं। 

तेलंगाना में टीआरएस ने सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई इसी शैक्षणिक सत्र से शुरू की है। परंतु पार्टी उसे एक ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में नहीं देख रही है, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजी-विरोधी अमित शाह एवं भाजपा/आरएसएस का मुकाबला करने के लिए किया जा सकता है। न तो पिता (मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव) और ना ही पुत्र (के. टी. रामाराव) ने अपनी सरकार के इस निर्णय के बारे में सार्वजनिक रूप से कुछ कहा है। कारण यह कि उनकी समझ में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा को प्रोत्साहन देने से उन्हें वोट नहीं मिलने वाले हैं। 

दक्षिण में केवल आंध्रप्रदेश वायएसआर कांग्रेस पार्टी और विशेषकर मुख्यमंत्री वायएस जगनमोहन रेड्डी, ग्रामीण स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा की संभावनाओं और महत्व को समझ सके हैं। दक्षिण भारत के सभी राज्यों में कुछ प्रतिशत सरकारी स्कूल अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दे रहे हैं। परंतु आंध्रप्रदेश एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां की सरकार ने सभी सरकारी स्कूलों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में बदलने का निर्णय लिया है। एक साल पहले जगन ने राज्य के सभी स्नातक कालेजों में अंग्रेजी में शिक्षा देने की घोषणा की थी। अंग्रेजी शिक्षा और अम्मा वोदी कार्यक्रम के कारण राज्य में टीडीपी की हालत खस्ता हो गई है। बच्चों के लिए अच्छी गुणवत्ता की अंग्रेजी शिक्षा को शायद ही कोई ‘रेवड़ी’’ कह सकता है। कोई अदालत, कोई विधानमंडल यह नहीं कह सकता कि स्कूली शिक्षा पर खर्च रेवड़ी है। आंध्रप्रदेश में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने का निर्णय सत्ताधारी दल की झोली वोटों से भर देगा। राज्य में चुनावों में टीडीपी एवं भाजपा की हार सुनिश्चित है। और इसका मुख्य कारण है जगनमोहन रेड्डी द्वारा स्कूली शिक्षा को बेहतर बनाने के सतत प्रयास। इन प्रयासों की चमक लोग अपने बच्चों के चेहरों पर देख सकते हैं। आंध्रप्रदेश के अनुभव के कारण ही तेलंगाना की टीआरएस सरकार भी स्कूली शिक्षा में सुधार लाने में सफल रही है और उसे विपक्ष के विरोध का सामना नहीं करना पड़ रहा है। 

अगर तेलंगाना का सत्ताधारी दल स्कूली शिक्षा को चुनावों में मुद्दा बनाए तो हर मां पोलिंग बूथ पर इस जज्बे के साथ जाएगी कि उसे अपने बच्चे के दुश्मनों को धूल चटाना है। देश के ग्रामीण इलाकों की हर मां अमित शाह से बेहतर राष्ट्रवादी है। 

(अनुवाद: अमरीश हरदेनिया, संपादन : नवल/अनिल)

(मूल अंग्रेजी में यह आलोख पूर्व में ‘द न्यूज मिनट डॉट कॉम’ द्वारा प्रकाशित। यहां लेखक की सहमति से हिंदी अनुवाद प्रकाशित है) 


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कांचा आइलैय्या शेपर्ड

राजनैतिक सिद्धांतकार, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता कांचा आइलैया शेपर्ड, हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक और मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद के सामाजिक बहिष्कार एवं स्वीकार्य नीतियां अध्ययन केंद्र के निदेशक रहे हैं। वे ‘व्हाई आई एम नॉट ए हिन्दू’, ‘बफैलो नेशनलिज्म’ और ‘पोस्ट-हिन्दू इंडिया’ शीर्षक पुस्तकों के लेखक हैं।

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