h n

जंतर-मंतर पर मनरेगा मजदूरों ने मांगा काम और दाम

प्रदर्शन की खासियत रही कि इस दौरान देश भर के मजदूरों ने राष्ट्रीय मंच पर अपनी समस्याओं को रखा। तेलंगाना से आईं पुलिकल्पना ने फारवर्ड प्रेस से बातचीत में कहा कि चूंकि मनरेगा के अधिकांश लाभार्थी दलित-बहुजन हैं, जिनके पास गांवों में रोजी-रोजगार का साधन नहीं है, इसलिए केंद्र सरकार इस योजना के वास्ते राशि राज्य सरकारों को नहीं दे रही है

गत 2-4 अगस्त, 2022 को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) से संबद्ध देश भर के मजदूरों का जुटान नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुआ। इस मौके पर मजदूरों ने केंद्र सरकार पर मनरेगा की उपेक्षा करने का आरोप लगाया और अपने लिए काम व बकाया मजदूरी का भुगतान करने की मांग की। तीन दिनों के इस प्रदर्शन के दौरान अनेक दलों के प्रतिनिधियों ने भी अपने विचार व्यक्त किये तथा मजदूरों की मांगों का समर्थन किया। इनमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी. राजा भी शामिल रहे।

पूरा आर्टिकल यहां पढें : बहस-तलब : जंतर-मंतर पर मनरेगा मजदूरों ने मांगा काम और दाम

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

संबंधित आलेख

बिहार विधानसभा चुनाव : सामाजिक न्याय का सवाल रहेगा महत्वपूर्ण
दक्षिणी प्रायद्वीप में आजादी के पहले से आरक्षण लागू है और 85 फ़ीसदी तक इसकी सीमा है। ये राज्य विकसित श्रेणी में आते हैं।...
जनसंघ के किसी नेता ने नहीं किया था ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द जोड़े जाने का विरोध : सिद्दीकी
1976 में जब 42वां संविधान संशोधन हुआ तब चाहे वे अटलबिहारी वाजपेयी रहे या फिर आडवाणी या अन्य बड़े नेता, किसी के मुंह से...
जेर-ए-बहस : श्रम-संस्कृति ही बहुजन संस्कृति
संख्या के माध्यम से बहुजन को परिभाषित करने के अनेक खतरे हैं। इससे ‘बहुजन’ को संख्याबल समझ लिए जाने की संभावना बराबर बनी रहेगी।...
‘धर्मनिरपेक्ष’ व ‘समाजवादी’ शब्द सांप्रदायिक और सवर्णवादी एजेंडे के सबसे बड़े बाधक
1975 में आपातकाल के दौरान आरएसएस पर प्रतिबंध लगा था, और तब से वे आपातकाल को अपने राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते...
दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के ऊपर पेशाब : राजनीतिक शक्ति का कमजोर होना है वजह
तमाम पुनरुत्थानवादी प्रवृत्तियां सर चढ़कर बोल रही हैं। शक्ति के विकेंद्रीकरण की ज़गह शक्ति के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है। ऐसे दौर में...