[प्रस्तुत आलेखांश फारवर्ड प्रेस, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘ई.वी. रामासामी पेरियार : दर्शन-चिंतन और सच्ची रामायण’ के पृष्ठ संख्या 151-153 से उद्धृत है। मूल तमिल में ‘सच्ची रामायण’ किताब का प्रकाशन 1944 में हुआ। वर्ष 1959 में इसका अंग्रेजी अनुवाद ‘दी रामायण : ए ट्रू रीडिंग’ शीर्षक से किया गया। तदुपरांत इसका हिंदी अनुवाद 1968 में किया गया, जिसके प्रकाशक पेरियार ललई सिंह यादव थे।]
रावण की विशेषताएं–
- वह
- एक महान विद्वान था।
- बहुत बड़ा संत था।
- वेद और शास्त्रों का ज्ञाता था।
- अपने संबंधियों व प्रजा के प्रति दयालु और उनका संरक्षक था।
- वीर योद्धा था।
- बहुत शक्तिशाली था।
- शूरवीर था।
- पवित्र व्यक्ति था।
- परमात्मा का प्रिय पुत्र था।
- वरदानी पुरुष था।
वाल्मीकि ने खुद रावण की उपरोक्त दस विशेषताओं का वर्णन किया है और उसकी प्रशंसा कई स्थलों पर की है।
- कमीना विभीषण अपने भाई रावण की प्रभुता से द्वेष रखता था। उसने रावण को धोखा दिया और उसकी मृत्यु का कारण बना। रावण के मरने के तुरंत बाद भ्रातृ-प्रेम से अभिभूत विभीषण उसके शव पर पछाड़ खाकर विलाप करने लगा और उसके गुणों का बखान करने लगा। विभीषण ने कहा– “तुम न्याय करने में कभी पीछे नहीं रहे। तुमने महान लोगों का हमेशा आदर किया।” (उत्तरकांड, 111 सर्ग)
- अपनी बहन सूर्पनखा के प्रति की गई भयानक दुष्टता और अपमान से कुपित होकर उसने राम से बदला लेने का निर्णय लिया। वह सीता को लंका उठा लाया। वह सीता को इसलिए नहीं लाया था कि उसको प्रेम करता था। न ही किसी की पत्नी को बहलाने-फुसलाने का उसका कोई इरादा था।
- प्रेम प्रसंग के बारे में रावण के गुणों की हनुमान ने स्वयं प्रशंसा की है– “रावण के राजभवन में रह रही महिलाओं ने रावण की पत्नी बनने के लिए ख़ुद को प्रस्तुत किया। उसने किसी भी महिला को उसकी अनुमति के बिना छुआ तक नहीं और न ही उनके ख़िलाफ़ बल प्रयोग किया।” (सुंदरकांड, 9 सर्ग)
- रावण देवताओं और ऋषियों आखिर क्यों घृणा करता? क्योंकि, वे यज्ञ करते थे यानी पवित्र अग्नि को आहुति देने के नाम पर निर्दयतापूर्वक गूंगे पशुओं की बलि देने का जघन्य अपराध करते थे। वह किसी अन्य कारणों से उनसे घृणा नहीं करता था।
वाल्मीकि ने खुद कहा है– “रावण एक सज्जन पुरुष था। वह सुन्दर व उत्साही था। लेकिन, जब वह ब्राह्मणों को यज्ञ करते हुए व सोमरस पीते हुए देखता था, तब उन्हें दंड देता था।”
- वाल्मीकि ने स्वयं कहा है कि राम व लक्ष्मण द्वारा सूर्पनखा का नाक-कान काटने बाद, यानी भयानक रूप से उकसाए जाने और अपना आपा खोने की स्थिति में भी, रावण ने सीता के नाक, कान एवं स्तन काटने की बात सोची तक नहीं थी।
- सीता को पूर्व नियोजित योजना के तहत जंगल में एकांत छोड़ दिया गया था। ताकि, रावण सीता को आसानी से उठा ले जाए। सीता भी यह उम्मीद लगाए थी कि रावण उसे उठा ले जाए और वह इसी को ध्यान में रखकर तैयारी कर रही थी। इसके पक्ष में कई अनुवादकों ने अपने मत व्यक्त किए हैं।
- उसने अपने मंत्रियों की जो सभाएं आमंत्रित की और उसमें जो विचार विमर्श हुआ, उसी पर उसने अमल किया, वह उसके न्यायशील शासन के उदाहरण हैं।
नोट : रामायण के पात्रों के चरित्र, आचरण और योग्यता के बारे में ऊपर जो वर्णन किया गया है; वह वाल्मीकि रामायण और खुद ब्राह्मणों द्वारा तमिल में किए गए इसके अनुवाद पर आधारित है। इससे हमारे पाठक यह समझ पाएंगे कि अब तक रामायण के बारे में, जो तमिल समाज की राय थी वह पूरी तरह गलत है। संक्षिप्त में कहा जा सकता है कि रामायण में सच बोलने वाले और सही सोच वाले लोगों को नीचा दिखाया गया है और उन्हें नालायक बताया गया है। जबकि बेईमान और दुराचारियों को बहुत ही ईमानदार, धार्मिक और पूजनीय का दर्जा दिया गया है। इस पुस्तक की रचना का उद्देश्य इस तरह की भ्रांतियों को दूर करना और उन पर विश्वास करने वालों को यह बताना है कि साधु का कपड़ा पहन लेने से ही कोई साधु नहीं हो जाता।
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in