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पेरियार ललई सिंह जैसी वैचारिकी का निर्माण करें हम दलित-बहुजन : जयप्रकाश कर्दम

जयप्रकाश कर्दम ने कहा कि आज हमें पेरियार ललई सिंह के जैसी ही वैचारिकी सांस्कृतिक राष्ट्र-निर्माण में चाहिए। लेकिन हम अपनी-अपनी जातियों का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। जबकि हम जानते हैं कि यही हमारे बिखराव और पतन का मुख्य कारण है। पढ़ें, ‘पेरियार ललई सिंह ग्रंथावली’ के विमोचन की यह खबर

‘पेरियार ललई सिंह ग्रंथावली’ का हुआ विमोचन, जुटे दिग्गज बुद्धिजीवी

“मैं युवा अवस्था में पेरियार ललई सिंह और उनके साहित्य से परिचित हुआ। वे बौद्ध भिक्खुओं सा कुर्ता-पजामा पहनते थे। उसमें कई थैली होती थी। पैर में जूता और चप्पल पहनते थे। जब मैं पहली बार उनसे मिला तो अभिभूत हो गया कि उत्तर भारत का इतना बड़ा महानायक कितनी सौम्यता से मिलता है। मृदु भाषा में बात करता है लेकिन जब जनता को प्रबोधित करने के लिए मंच पर होते हैं तो बहुत कड़क और तेज आवाज में बोलते हैं। वह इसलिए ताकि सोई हुई जनता में ऊर्जा आ जाये।” यह उद्गार प्रसिद्ध दलित साहित्यकार जयप्रकाश कर्दम ने गत 16 अक्टूबर, 2022 को उत्तर प्रदेश के शहर कानपुर में आयोजित ‘पेरियार ललई सिंह ग्रंथावली’ (पांच खंडों में राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा एक साथ प्रकाशित) के विमोचन के अवसर पर अपने अध्यक्षीय संबोधन में व्यक्त की। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, प्रसिद्ध साहित्य समालोचक वीरेंद्र यादव के अलावा वक्ताओं में दिलीप मंडल, हितेंद्र पटेल, रामाशंकर सिंह, नीरज भाई पटेल और पुस्तक के संकलक व संपादक धर्मवीर यादव गगन रहे। यह कार्यक्रम सुरेंद्र सिंह के तत्वावधान में आयोजित था। 

हम नहीं छोड़ पा रहे अपनी जातियों का मोह

अपने अध्यक्षीय संबोधन में जयप्रकाश कर्दम ने पेरियार ललई सिंह की शख्सियत पर विस्तार से बताते हुए कहा कि वे हिंदुत्व पर हर समय करारा हमला करते थे। उनके झोले में आंदोलन के पर्चे, छोटी-छोटी पुस्तकें जो सामाजिक, राजनीतिक और धम्म की चेतना की होती थीं। वे जब किसी से मिलते थे तो वही सब देते थे। उन्होंने आगे कहा कि पेरियार ललई सिंह वर्ण, जाति और छुआछूत के आमूलचूल उन्मूलन के लिए लड़े और इस क्रम में उन्होंने अपने नाम से अपनी यादव जाति का प्रतीक सरनेम तक हटा दिया। 

जयप्रकाश कर्दम ने आह्वान करते हुए कहा कि आज हमें पेरियार ललई सिंह के जैसी ही वैचारिकी सांस्कृतिक राष्ट्र-निर्माण में चाहिए। लेकिन हम अपनी-अपनी जातियों का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। जबकि हम जानते हैं कि यही हमारे बिखराव और पतन का मुख्य कारण है। उन्होंने पुस्तक के संकलक और संपादक धर्मवीर यादव गगन की सराहना करते हुए कहा कि उनके अथक परिश्रम से ही पेरियार ललई सिंह का समग्र साहित्य एक साथ साकार हो सका है।

पुस्तक का विमोचन करते अतिथिगण

पेरियार ललई सिंह के प्रेरणा स्रोत थे बुद्ध, फुले, पेरियार और डॉ. आंबेडकर

अपने संबोधन में साहित्यकार व समालोचक वीरेंद्र यादव ने कहा कि पेरियार ललई सिंह ने बुद्धि, तर्क और ज्ञान की सोच से भौतिकतावादी राष्ट्र निर्माण करने की कोशिश की। इसके लिए उन्होंने सतत कार्य किया। यह व समय था जब देश स्वतंत्र होने वाला था और वे अपनी बौद्धिक और साहित्यिक अभिव्यक्ति से देश को विकल्प दे रहे थे जो हिंदुत्व मुक्त और समतामूलक था। 

वीरेंद्र यादव ने पेरियार ललई सिंह के नाटक ‘सिपाही की तबाही’ का उद्धरण देते हुए कहा कि वर्ष 1946 में अपने इस नाटक में उन्होंने साम्राज्यवाद के साथ वर्णवाद की भी मारक आलोचना की। उन्होंने कहा कि जिन मूल्यों के लिए आंबेडकर गांधी से टकराते हैं, उन्हीं मूल्यों की स्थापना के लिए पेरियार ललई सिंह ने कारगर बौद्धिक हस्तक्षेप और विपुल लेखन किया। उनके प्रेरणा स्रोत बुद्ध, फुले, पेरियार और डॉ. आंबेडकर थे। 

वीरेंद्र यादव ने मौजूदा दौर में सामाजिक विषमता और वर्चस्वाद के खात्म के लिए जोतीराव फुले, डॉ. आंबेडकर, पेरियार ई.वी. रामासामी, पेरियार ललई सिंह और रामस्वरूप वर्मा का अध्ययन व उनके विचारों के अनुसरण पर जोर दिया। 

उर्मिलेश ने सामाजिक न्याय की सरकारों को किया कटघरे में खड़ा

मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने अपने संबोधन के प्रारंभ में कानपुर शहर की ऐतिहासिकता बताते हुए कहा कि क्रांति के समय भगत सिंह यहीं से प्रकाशित ‘प्रताप’ अखबार के कार्यालय में रहा करते थे। यहीं से पेरियार ललई सिंह और रामस्वरूप वर्मा जैसे विचारक निकले। हालांकि इस हिंदी प्रदेश के सामाजिक न्याय की सरकारों ने भी उनके वैचारिकी को हथियार नहीं बनाया। उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि 1990 से 2017 तक सामाजिक न्याय की सरकार रही, लेकिन पेरियार ललई सिंह को कभी याद नहीं किया गया। उर्मिलेश ने कहा कि यह गंभीरता से सोचने की बात है कि सामाजिक न्याय की सरकारों ने चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु, पेरियार ललई सिंह, रामस्वरूप वर्मा और जगदेव प्रसाद आदि का साहित्य क्यों नहीं प्रकाशित किया? जबकि दक्षिण की पेरियारवादी सरकार ने पेरियार ई. वी. रामासामी के साहित्य को भारत और दुनिया की सभी भाषाओं में अनुवाद के लिए पांच करोड़ का बजट विधान सभा से पास किया है। 

उर्मिलेश ने कहा कि आज हमारे लोग भी हिंदुत्व की फिल्ड पर राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं। इसका परिणाम जगजाहिर है कि हिंदुत्ववादी ताकतें सत्ता में हैं। उन्होंने कहा कि इससे मुकाबले के लिए यदि कोई आदर्श व्यक्तिव है तो वह व्यक्तित्व फुले, पेरियार, डॉ. आंबेडकर, पेरियार ललई सिंह और रामस्वरूप वर्मा का व्यक्तित्व ही है। इस दिशा में धर्मवीर यादव गगन ने पेरियार ललई सिंह के समग्र साहित्य को संकलित कर चुनौतीपूर्ण व एक अत्यंत ही अनिवार्य काम को अंजाम दिया है।

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल भी रहे मौजूद

अपने संबोधन में पत्रकार दिलीप मंडल ने कहा कि पेरियार ललई सिंह यादव की इस ग्रंथावली के साथ देश भी वैचारिक यात्रा कर रहा है। जो राष्ट्र को मनुष्यता और बंधुता के मूल्य के साथ आगे ले जाने के लिए है। वे दक्षिण भारत के पेरियार से प्रेरित थे। इसीलिए वेद आदि की आलोचना करते हैं। पेरियार ललई सिंह का मानना था कि वेद आदि ग्रंथ असमानता के प्रेरणा श्रोत हैं। उन्होंने पेरियार की कालजयी रचना ‘सच्ची रामायण : अ ट्र्रू रीडिंग’ का रामाधार जी द्वारा अनूदित ‘सच्ची रामायण’ का प्रकाशन कराकर एक क्रांति का ही आगाज कर दिया था। इसके अलावा उन्होंने स्वयं भी शंबूक और एकलव्य आदि के बारे में विपुल लेखन किया। 

न्यायप्रिय मनुष्य का निर्माण करना चाहते थे पेरियार ललई सिंह

वहीं रामाशंकर सिंह ने कहा पेरियार ललई सिंह नए मनुष्य का सृजन करना चाह रहे थे, जो न्याय, समता और बंधुता से भरा हुआ हो। जो सवाल करने वाला हो, आज्ञापालन करने वाला या गुलामवृत्ति का न हो। वे मानते थे कि किसी भी समाज में मनुष्य को पांच प्रकार का न्याय चाहिए– सामाजिक न्याय, राजनीति न्याय, विधिक और आर्थिक न्याय, लैंगिक न्याय, धार्मिक और सांस्कृतिक न्याय। इसमें कोई भी कम होगा तो वह पूर्ण न्यायप्रिय समाज नहीं हो सकता है। वे अखिल भारतीय स्तर के लेखक और बुद्धिजीवी थे। उनकी किताबों की सम्मतियां पंजाब से एल. आर. बाली तो वहीं लखनऊ से चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु और कानपुर से रामस्वरूप वर्मा जैसे विद्वान लिख रहे थे। 

रामाशंकर सिंह ने कहा कि ‘पेरियार ललई सिंह ग्रंथावली’ की सबसे बड़ी बात है कि इसमें इस बात का समग्रता में उल्लेख है कि उस समय के तमाम बुद्धिजीवी और आंदोलनकारी कैसे एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। क्या बात कर रहे थे। यह ग्रंथावली पूरी दुनिया के समता, बंधुता और मनुष्यता को आगे लेजाने वाले लोगों को एक साथ जोड़ती है। इसमें अब्राहम लिंकन भी हैं पेरियार भी हैं और डॉ. आंबेडकर भी हैं। 

पेरियार ललई सिंह पर था उनके पिता का प्रभाव

धर्मवीर यादव गगन ने इस मौके पर कहा कि पेरियार ललई सिंह के पिता चौधरी गज्जु सिंह, जो कि एक लघु-जमींदार थे, ब्राह्मणवाद व पाखंडवाद के कट्टर विरोधी थे। उनकी मां की मृत्यु पर उन्होंने अपने खेत में उनकी लाश को जलाया और जलती चिता पर भुट्टा सेंक कर खाया। किसी पंडे-पुरोहित को नहीं बुलाया। इसके जरिए उन्होंने यह संदेश दिया कि ईश्वर, देवी-देवता स्वर्ग-नर्क सब झूठ है। पुरोहित पांडे पूजारी की बातें झूठी हैं। सब अंधविश्वास है। वे अपनी मौलिक सोच में वर्णवाद, ब्राह्मणवाद, मनुवाद के प्रखर विरोधी विभूति थे, जिसका गहरा प्रभाव पेरियार ललई सिंह बचपन पर पड़ा था। 

गगन ने आगे कहा कि 1951 ई. में वे डॉ. आंबेडकर से ग्वालियर में मिले, जहां डॉ. आंबेडकर को सिंधिया परिवार ने भारत सरकार से चल रहे मुकदमे में कानूनी सलाह देने के लिए बुलाया था। वहीं 14 अक्टूबर, 1956 को डॉ. आंबेडकर द्वारा बौद्ध धर्म ग्रहण करने हेतु वे नागपुर जाना चाह रहे थे। साथियों संग वे निकले भी, किंतु क्षय रोग के कारण खून की उल्टी होने लगी। इस कारण दीक्षा ग्रहण में नहीं जा सके। 21 जुलाई, 1967 ई. को उन्हीं महाथेरा ऊँ चंद्रमणि से कुशीनगर में बौद्ध धर्म ग्रहण किया और घोषणा की कि अब मैं अपने नाम से चौधरी, यादव सदा के लिए त्यागता हूं। एक बौद्ध धर्मावलंबी की कोई जाति नहीं होती है। यदि कोई बौद्ध धर्मावलंबी जाति को मानता है तो वो बौद्ध नहीं, बल्कि वर्णवादी हिंदू है। उसके बाद से ही वे अपना नाम ‘ललई सिंह’ लिखने लगे। 

धर्मवीर यादव गगन ने कहा कि 12 अक्टूबर, 1968 ई. को गुरु पेरियार ईवी रामास्वामी को चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु, पेरियार ललई सिंह, शिवदयाल सिंह चौरसिया और छेदीलाल साथी आदि ने ‘अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग सम्मेलन, लखनऊ’ में बोलने के लिए बुलाया था। इसमें पेरियार ने हिंदुत्व पर करारा हमला किया था। फिर 14 अक्टूबर, 1968 ई. को नानाराव पार्क (अब आंबेडकर पार्क) कानपुर में पेरियार ललई सिंह ने बौद्ध धर्म दीक्षा ग्रहण का विशाल सम्मेलन किया और 10 हजार से अधिक लोगों को बौद्ध धर्म ग्रहण करवाया। इसमें ललई सिंह ने गुरु पेरियार की तरह ही हिंदुत्व पर करारा हमला किया। इस पर भिक्षु निर्गुणनंद ने कहा की ‘उत्तर भारत के पेरियार’ तो ‘ललई सिंह’ हैं तब से इन्हें इनके समर्थक ‘पेरियार ललई सिंह’ कहने लगे और वे भी अपना नाम ‘पेरियार ललई सिंह’ लिखने लगे। इसी विचारक की किताबें, भाषण, साक्षात्कार, पत्र, पर्चे, पंपलेट आदि इस ग्रंथावली में संगृहीत है। गगन ने कार्यक्रम में मौजूद सभी वक्ताओं के प्रति आभार प्रकट किया और कहा कि इन उद्बोधनों से उन्हें नई ऊर्जा मिली है।

(संपादन : नवल/अनिल)


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