h n

बिहार : नीतीश की ‘घोषणा’ का मतलब

तेजस्वी यादव द्वारा 2025 में नेतृत्व संबंधी नीतीश कुमार की उद्घोषणा से अब धुंधलका छंटने की उम्मीद है। लेकिन मूल सवाल यह है कि उस अति पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए महागठबंधन अब क्या करने जा रहा है, जो कि अबतक भाजपा के लिए फायदेमंद रहा है। बता रहे हैं वीरेंद्र यादव

बिहार की राजनीति तेजी से करवट बदल रही है। गत 13 दिसंबर, 2022 को राजधानी पटना में पहले तो मीडियाकर्मियों से बातचीत में मुख्यमंत्री ने यह घोषणा की कि वर्ष 2025 में बिहार में होनेवाले विधानसभा चुनाव का नेतृत्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव करेंगे। बाद में यही बात नीतीश कुमार ने विधानमंडल में सत्ता पक्ष की बैठक में कही। उनका यह बयान गत 8 दिसंबर, 2022 को राज्य के कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र में जदयू उम्मीदवार की हार के बाद आया है। वहीं अपने बारे में नीतीश कुमार ने कहा कि वे पीएम पद के उम्मीदवार नहीं, लेकिन भारत को भाजपा मुक्त बनाने के अभियान में जुटे हैं। 

बताते चलें कि बिहार में वर्तमान में नीतीश कुमार के नेतृत्व में पिछले अगस्त महीने से जदयू, राजद और कांग्रेस की सरकार राज कर रही है। लेकिन जिस तरह से महागठबंधन को एक के बाद एक हुए उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ रहा है, उससे इसकी साख पर सवाल उठने लगा है। माना जा रहा है कि नीतीश कुमार ने जदयू और राजद के समर्थकों के बीच में खाई को पाटने के लिए यह बयान दिया है।

दरअसल, उनके बयान के पीछे जदयू और राजद के साथ आने के बाद और उसके पहले महागठबंधन के कुछ प्रदर्शन हैं। मसलन मुजफ्फरपुर जिले में कुछ महीने पहले ही बोचहां में उपचुनाव हुआ था, उसमें भाजपा और जदयू साथ में थे। इसके बावजूद तेजस्‍वी यादव की पार्टी राजद के उम्‍मीदवार अमर पासवान ने चुनाव जीत ली थी। दिसंबर महीने उसी जिले के कुढ़नी में हुए उपचुनाव में तेजस्‍वी यादव का गठबंधन चुनाव हार जाता है। इस नये गठबंधन में नीतीश कुमार और तेजस्‍वी यादव के साथ अन्‍य पांच पार्टियों शामिल हैं। इसके बावजूद जदयू के उम्‍मीदवार मनोज कुशवाहा भाजपा उम्‍मीदवार केदार गुप्‍ता से 3632 वोट से चुनाव हार जाते हैं।

बोचहां में राजद के जीत के बाद राजद ने यह प्रचार किया था कि भूमिहारों का वोट उसके उम्‍मीदवार को मिला है। इसकी ब्रांडिंग भी कुछ भूमिहार संगठनों ने की, लेकिन कुढ़नी उपचुनाव में भूमिहार राजद से अलग दिखे। कुढ़नी की हार के बाद महागठबंधन खेमा में बेचैनी बढ़ गयी है। वह इस बात से हैरान है कि कुढ़नी में जहां सवर्ण वोटरों की संख्‍या काफी कम है, वहां भाजपा ने कैसे जीत हासिल कर ली। जदयू के वरिष्‍ठ नेता और मंत्री विजय कुमार चौधरी ने हार पर अपनी प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि परिणाम अप्रत्‍याशित है।

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव

कुढ़नी के पहले मोकामा और गोपालगंज में उपचुनाव हुआ था। मोकामा में पूर्व विधायक अनंत कुमार सिंह की पत्‍नी नीलम देवी ने राजद के टिकट पर जीत दर्ज की। मोकामा की जीत अनंत सिंह की व्‍यक्तिगत जीत थी। इस चुनाव में भी भाजपा ने अपने वोटों में काफी इजाफा किया था। मोकामा हारने के बाद भी भाजपा के लिए यह शुभ संकेत था कि उसका वोट बढ़ रहा है। उसी समय गोपालगंज में हुए उपचुनाव में भाजपा अपनी सीट बचाने में सफल रही थी। इस सीट पर भाजपा की कुसुम देवी लगभग 2000 वोटों की बढ़त से निर्वाचित हुई थीं। वर्ष 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में जदयू और भाजपा का गठबंधन था। अगस्त, 2022 में जदयू ने भाजपा का साथ छोड़ दिया था। इसके बावजूद भाजपा के वोट में नाममात्र की गिरावट आयी थी। इससे यह सवाल बनता है कि आखिर नीतीश कुमार का वोट कहां जा रहा है।

दरअसल बिहार एक नये राजनीतिक चौराहे पर खड़ा है, जहां भाजपा का आधार लगातार बढ़ रहा है और वह इसके लिए कवायद भी कर रही है। जबकि राजद या जदयू अपने वोट को संभाल भी नहीं पा रहे हैं। गोपालगंज में जदयू का वोट राजद उम्‍मीदवार को नहीं मिलने का आरोप लगा तो कुढ़नी में राजद का वोट जदयू उम्‍मीदवार को नहीं मिलने आरोप लगा। ऐसे आरोप पराजय की पीड़ा हो सकती है, लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि राजद या जदयू अपना वोट एक-दूसरे का शिफ्ट कराने में सफल नहीं हो रहे हैं। कुढ़नी से लौटे जदयू के एक पूर्व मंत्री ने कहा कि जमीनी स्‍तर पर राजद और जदयू कार्यकर्ताओं में भरोसा विकसित नहीं हो पाया है। इसी कारण दोनों का आधार वोट अलग-अलग कारणों से भाजपा की ओर शिफ्ट कर रहा है।

एआईएमआईएम और वीआईपी जैसी पार्टियां कुछ वोटों को प्रभावित कर रही हैं। जीत का कम मार्जिन की स्थिति में इनका वोट शेयर महत्‍वपूर्ण माना जाता है, लेकिन व्‍यापक स्‍तर पर इनकी भूमिका सीमित हो जाती है। इनका वोट किसको हानि या लाभ पहुंचा रहा है, यह पार्टी, उम्‍मीदवार और जाति के आधार पर निर्भर करता है। जैसे कुढ़नी में मुकेश सहनी ने भूमिहार को अपनी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) का उम्‍मीदवार बनाया था। उन्‍हें लगभग 10 हजार वोट आये। यह वोट भूमिहार का था या मल्‍लाह – जो कि वीआईपी का आधार वोट माना जाता है – का, इसका आकलन संभव नहीं है। सभी पक्ष इसकी व्‍याख्‍या अपने-अपने ढंग से कर रहे हैं।

बिहार में नयी सरकार बनने के बाद तीन उपचुनाव हुए और तीनों में एक बात समान रही कि हर जगह भाजपा का वोट और आधार बढ़ रहा है। जबकि महागठबंधन का कुनबा अपने वोट को बांधे रखने में विफल साबित हो रहा है। यह स्थिति नीतीश कुमार और तेजस्‍वी यादव के लिए खतरे की घंटी भी साबित हो सकती है और गठबंधन के अंदर की बेचैनी बढ़ा सकती है। 

बहरहाल, नीतीश कुमार द्वारा की गई उद्घोषणा से अब धुंधलका छंटने की उम्मीद है। लेकिन मूल सवाल यह है कि उस अति पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए महागठबंधन अब क्या करने जा रहा है, जो कि अबतक भाजपा के लिए फायदेमंद रहा है।  

(संपादन : नवल/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

वीरेंद्र यादव

फारवर्ड प्रेस, हिंदुस्‍तान, प्रभात खबर समेत कई दैनिक पत्रों में जिम्मेवार पदों पर काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र यादव इन दिनों अपना एक साप्ताहिक अखबार 'वीरेंद्र यादव न्यूज़' प्रकाशित करते हैं, जो पटना के राजनीतिक गलियारों में खासा चर्चित है

संबंधित आलेख

सामाजिक न्याय की कब्रगाह और कारपोरेट लूट का केंद्र बनने की राह पर बिहार
नीतीश कुमार के 27 सदस्यीय नए मंत्रिमंडल में ऊंची जाति हिंदू 8, अतिपिछड़े हिंदू 5, पिछड़े हिंदू 8, दलित 5 और एक मुसलमान हैं।...
बिहार चुनाव जीत कर भी हार गए नीतीश कुमार
शपथ समारोह में प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों, उप-मुख्यमंत्रियों, छोटे-बड़े नेताओं के भारी जुटान के बीच नीतीश तो अलग-थलग पड़े थे। प्रधानमंत्री...
युवा पीढ़ी को बाबा साहब के विचारों से दूर क्यों किया जा रहा है?
संविधान सभा की चर्चाओं में‌ आप देखेंगें कि संविधान के प्रारूप, इसके प्रावधानों और मूल्यों को कौन डिफेंड कर रहा है? वे थे डॉ....
बिहार : अब जगदेव फॉर्मूला की जरूरत
जब कहा गया कि दस का शासन नब्बे पर नहीं चलेगा तो इस पर पिछड़े वर्ग के राजनेताओं द्वारा अमल किया जाना चाहिए था।...
बिहार की अठारहवीं विधानसभा की सामाजिक बुनावट
सभी जातियों में राजपूतों का प्रतिनिधित्व सबसे ज्यादा है। पिछड़े वर्गों में कुशवाहों और उनके बाद यादवों की संख्या सबसे अधिक है। अति पिछड़े...