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दलित कवियित्री सुकीरथरणी ने अडाणी के विरोध में ठुकराया सम्मान

'हालांकि नास्तिक होने की वजह से मैं देवी के नाम पर मिलने वाले सम्मान को लेने से हिचक भी रही थी। लेकिन लोगों ने मुझे बताया कि यह महिला शक्ति का सम्मान है। इसके बाद मैंने 28 दिसंबर, 2022 को उन्हें सम्मान लेने की स्वीकृति दे दी थी।'

किसी ऐसी संस्था से या किसी ऐसे समारोह में अवार्ड लेने में मुझे कोई ख़ुशी नहीं होगी जिसे अडानी समूह द्वारा वित्तीय मदद मिल रही हो, क्योंकि ऐसा करना मेरी राजनीति और विचारधारा के ख़िलाफ़ होगा। ये बातें बीते दिनों तमिल दलित कवियित्री सुकीरथरणी ने अपने बयान में कहा जब उन्हें ‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ द्वारा देवी पुरस्कार देने की घोषणा की गई और उन्हें जानकारी मिली कि प्रायोजकों में अडाणी समूह का नाम भी शामिल है। 

दरअसल, हाल ही में ‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ ने बारह महिलाओं को देवी पुरस्कार देने की घोषणा की। यह पुरस्कार महिलाओं को अपने-अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने के लिए दिया जाता है। जब इन नामों की घोषणा की गई तब सूची में अपना नाम देखकर सुकीरथरणी बेहद ख़ुश हुईं। उन्हें साहित्य में, ख़ासतौर पर दलित साहित्य के लिए यह अवार्ड दिया जाना था। उन्होंने फ़ौरन इसकी सहमति दे दी। लेकिन जब आयोजकों ने पुरस्कार वितरण समारोह के विवरण जारी किये तो उन्होंने पाया कि उसके प्रायोजकों में अडानी समूह का नाम भी शामिल है। इसके बाद उन्होंने सम्मान लेने से इंकार कर दिया। 

उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि “अडानी समूह इस सम्मान समारोह का मुख्य प्रायोजक है। मेरी दिलचस्पी ऐसे किसी सम्मान में नहीं है जिसको अडानी समूह की वित्तीय मदद मिल रही हो। मैं इस मुद्दे पर बोलती रही हूं, इसलिए मैं सम्मान लेने से इंकार कर रही हूं।” 

सुकीरथरणी, तमिल दलित कवियित्री

वैसे यह सम्मान समारोह बीते 8 फरवरी, 2023 को तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के आईटीसी ग्रैंड चोल होटल में आयोजित हुआ। पुरस्कृतों में वैज्ञानिक गगनदीप कंग, भरतनाट्यम नृत्यांगना प्रियदर्शिनी गोविन्द, समाजसेवी राधिका शंतिकृष्ण, स्क्वाश खिलाडी जोशना चिनप्पा आदि शामिल हैं। 

बताते चलें कि सुकीरथरणी पिछले 25 सालों से तमिल में लेखन करती रही हैं। वह एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। अपने लेखन में उन्होंने दलित-बहुजनों को प्राथमिकता दी है। 

बीबीसी तमिल से बातचीत में उन्होंने बताया कि बचपन से ही वह पेरियार, डॉ. आंबेडकर और मार्क्स के विचारों से प्रभावित रही हैं। इनके दर्शन का उन पर असर रहा है। उनके अनुसार, उनके लेखन में भी इनके विचार ज़ाहिर होते हैं। उन्होंने बीबीसी को आगे बताया किशुरुआत में मैं बहुत ख़ुश थी। हालांकि नास्तिक होने की वजह से मैं देवी के नाम पर मिलने वाले सम्मान को लेने से हिचक भी रही थी। लेकिन लोगों ने मुझे बताया कि यह महिला शक्ति का सम्मान है। इसके बाद मैंने 28 दिसंबर, 2022 को उन्हें सम्मान लेने की स्वीकृति दे दी।”

सम्मान अस्वीकार करने के बारे में लेखिका ने आगे बताया कि “मेरी स्वीकृति के बाद हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आयी। यह सम्मान समारोह आठ फ़रवरी को होना था। न्यू इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप ने इसको लेकर प्रोमो वीडियो चलाने, पोस्ट करने शुरू किए। तीन फ़रवरी को मैंने वीडियो देखा तो उस पर अडानी समूह का लोगो था।” 

अपने साहसिक लेखन के लिए विख्यात सुकीरथरणी का जन्म एक गरीब दलित परिवार में 1973 में हुआ। उनके पिता एक फैक्ट्री में दिहाड़ी मजदूर थे। वह तमिलनाडु के रानीपेट ज़िले के लालापेट में सरकारी स्कूल में शिक्षिका हैं। वह तमिल भाषा पढ़ाती हैं। उनके छह कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी अनेक कविताओं का अंग्रेज़ी, मलयालम, कन्नड़, हिंदी और जर्मन भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। यहां तक कि तमिलनाडु के स्कूली पाठ्यक्रम में भी उनकी कवितायें पढ़ाई जाती हैं। 

बताते चलें कि 2021 में दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाने वाले उनके और दलित लेखिका बामा के लेखन को हटा दिया गया। इस फैसले की व्यापक निंदा की गई थी। स्वयं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने इसकी निंदा की थी। 

सुकीरथरणी के समूचे लेखन में दलितों और वंचितों के पक्ष में आवाज़ उठाई गई है। दलितों ख़ास तौर पर दलित औरतों के लिए सरोकार उनके लेखन में बहुतायत से मिलता है। इस अवार्ड से पहले उनको पुदुमैपीतन अवार्ड, द वीमेन अचीवर्स अवार्ड, द आवी अवार्ड, द वाइब्रेंट वोइस ऑफ़ सबाल्टर्न अवार्ड मिल चुके हैं। 

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

अमिता शीरीं

लेखिका विगत बीस वर्षों से सक्रिय सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक कार्यकर्ता हैं। उनकी अनेक कहानियां व कविताएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।

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