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‘इंडिया’ गठबंधन ऐसे बांधे मजबूत गांठ

एक सवाल यह भी है कि आरएसएस-भाजपा को खतरा किससे है? यह सवाल इसलिए कि उसे संविधान से कोई खतरा नहीं है और लोकतंत्र से भी नहीं। उसे वास्तविक खतरा ब्राह्मणी-अब्राह्मणी सांस्कृतिक संघर्ष से है। बता रहे हैं श्रावण देवरे

महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की दो दिवसीय बैठक कल यानी 31 अगस्त से प्रारंभ होगी। इससे पहले कि वर्तमान में विपक्षी दलों के गठबंधन की रूपरेखा व कार्यक्रमों आदि पर विचार करें, हमें इतिहास की ओर एक नजर देखना चाहिए। सर्वविदित है कि 1977 में भी जनता पार्टी नामक एक विरोधी गठबंधन का गठन हुआ था। उस समय मुकाबले में कांग्रेस थी और विरोधी दलों के गठबंधन में आरएसएस की राजनीतिक शाखा जनसंघ भी शामिल था। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे। वंचित समाज ने जब कालेलकर आयोग की अनुशंसा को लागू करने का दबाव बनाया तब जनसंघ के आगे झुकते हुए इस सरकार ने अनुशंसाओं को लागू करने के बजाय एक नए आयोग का गठन कर दिया। और फिर इससे पहले की सरकार नवगठित मंडल आयोग की अनुशंसाओं को लागू करती, 1980 में जनसंघ ने सरकार ही गिरा दी।

इसके करीब दस साल के बाद फिर से जनता दल नामक विरोधी दलों का गठबंधन बना। लेकिन इस गठबंधन में न तो कांग्रेस थी और न भाजपा थी। इसलिए जनता दल सरकार मंडल कमीशन की अनुशंसा को लागू करने में कामयाब हो गई। लेकिन उस समय कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी थी। मंडल आयोग लागू करने वाले वी.पी. सिंह की सरकार गिराने के लिए कांग्रेस ने भाजपा से साठगांठ करके सरकार गिराने में मुख्य भूमिका निभाई। इतना ही नहीं, वी.पी. सिंह की सरकार गिराने के लिए कांग्रेस+भाजपा गठबंधन में कांशीराम की बसपा और जयललिता की एआईडीएमके पार्टी भी शामिल थी।

वर्ष 2009 से 2011 के दरम्यान देश भर के ओबीसी संगठनों, कार्यकर्ताओं, नेताओं और बुद्धिजीवियों ने ओबीसी जनगणना के लिए युद्ध ही छेड़ दिया था। ओबीसी का यह आंदोलन संसद में आक्रामक होने पर सत्ताधारी कांग्रेस नरम हुई और ओबीसी जनगणना कराने के लिए तैयार हुई। मनमोहन सिंह सरकार ने ओबीसी जनगणना कराने की मांग को मान लिया। लेकिन कांग्रेस ने संसद में दिए लिखित उत्तर को किनारे रखते हुए जनगणना फार्म में बिना ओबीसी का कालम डाले ही जनगणना शुरू कर दिया।

प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते उद्धव ठाकरे और शरद पवार

समीर भुजबल, गोपीनाथ मुंडे, लालू प्रसाद और मुलायम सिंह यादव जैसे ओबीसी सांसदों के आक्रामक रूख अपनाने पर फिर से दूसरा आर्थिक, जाति-आधारित जनगणना कराया गया। लेकिन उसमें पेंच फंसा दिया कि इस जाति आधारित जनगणना के आंकड़े और डेटा मांगने का अधिकार किसी को भी नहीं होगा। फिर ओबीसी को यह आंकड़े मिलने का तो सवाल ही नहीं उठता। यहां तक कि ये आंकड़े योजना आयोग तक को भी नहीं दिए गए। 

इस दूसरी जनगणना जो कि वास्तव में आर्थिक-सामाजिक सर्वे ही थी, उसमें भी ओबीसी का कालम नहीं था। इस तरह देश भर के ओबीसी आंदोलन को फंसाकर कांग्रेस ने ओबीसी वर्ग को धोखा दिया।

एक सवाल यह भी है कि आरएसएस-भाजपा को खतरा किससे है? यह सवाल इसलिए कि उसे संविधान से कोई खतरा नहीं है और लोकतंत्र से भी नहीं। उसे वास्तविक खतरा ब्राह्मणी-अब्राह्मणी सांस्कृतिक संघर्ष से है। यह जोतीराव फुले, डॉ. आंबेडकर व रामासामी पेरियार ने बारंबार कहा है। पेरियार ने तो तमिलनाडु में यह सिद्ध करके दिखाया भी है। रामास्वामी पेरियार ने 1925 से ही ब्राह्मणी संस्कृति के विरोध में अब्राह्मणी संस्कृति का युद्ध छेड़ दिया। ‘सच्ची रामायण’ लिखकर उन्होंने ब्राह्मणी संस्कृति के नायक रहे राम को तमिलनाडु से खदेड़ दिया। यह उन्होंने जन प्रबोधन के माध्यम से किया। 

इस महाप्रबोधन की लहर से ही वहां ओबीसी-बहुजनों की राजनीति खड़ी हुई। इसी ओबीसी राजनीति ने तमिलनाडु में बीते 56 सालों (1967) से ब्राह्मणी छावनी के कांग्रेस, आरएसएस-जनसंघ-भाजपा आदि को जड़ से उखाड़कर फेंक दिया है। विश्व हिंदू परिषद व बजरंग दल जैसे संगठनों का वहां कोई अता-पता भी नहीं है। पिछले 56 सालों से वहां एक भी सांप्रदायिक दंगा, धार्मिक दंगा नहीं हुआ। ब्राह्मण जाति छोड़कर सभी जाति धर्म के लोगों को जनसंख्या के अनुसार आरक्षण की व्यवस्था होने से कोई भी सामाजिक-धार्मिक भेदभाव नहीं है और न ही कोई तनाव है।

कांग्रेस के वर्चस्व में ‘इंडिया’ गठबंधन पर तभी विश्वास किया जा सकता है जब वह मुंबई की बैठक में कुछ ठोस कार्यक्रम घोषित करे–

(1) देश में अभी जिन राज्यों में कांग्रेस या अन्य विरोधी पार्टियों की सरकारें हैं, वहां की राज्य सरकारें आठ दिन के अंदर अपनी विधानसभा में जाति आधारित जनगणना व ओबीसी जनगणना करने का कानून बनाएं और उसके बाद आठ दिन के अंदर उस कानून के अनुसार जनगणना शुरू करें।

(2) अभी जिन राज्यों में कांग्रेस एवं विरोधी पार्टियों की सरकारें हैं, उनमें एक महीने के अंदर स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में जोतीराव फुले की ‘गुलामगिरी’, डॉ. आंबेडकर की ‘रिडल्स इन हिंदुइज्म’, व रामासामी पेरियार की ‘सच्ची रामायण’, ये तीन किताबें शामिल की जाएं।

(3) 2024 के चुनाव घोषणापत्र में स्पष्ट रूप से लिखा होना चाहिए कि–

  • प्रत्येक दस वर्ष में होने वाली जनगणना में जाति आधारित जनगणना का प्रावधान करने के लिए विधेयक प्रस्तुत करना व उसे मंजूर करके कानून बनाना।
  • केंद्र की पिछली कांग्रेस सरकारों ने और अभी तक की आरएसएस-भाजपा सरकारों ने पिछले 25 सालों से जो भी राष्ट्रीय उद्योग व राष्ट्रीय कंपनियां निजी पूंजीपतियों को बेचीं हैं, वे सभी उद्योग व कंपनियां वापस लेकर उनका फिर से राष्ट्रीयकरण किया जाय।
  • निजीकरण पर रोक लगाया जाय।
  • पिछले दस वर्षों में पिछले दरवाजे से लेटरल इंट्री के जरिए जितनी भर्तियां हुई हैं, उन्हें रद्द किया जाना।
  • कॉलेजियम सिस्टम के बदले राष्ट्रीय न्यायिक आयोग का गठन किया जाय, जो आरक्षण का अनुपालन करे। 
  • ईवीएम के बजाय बैलट पेपर से चुनाव कराने की घोषणा की जाय। 

मुंबई में हो रही ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक में उपरोक्त प्रस्ताव मंजूर करके और उसके अनुसार कामकाज शुरू हुआ तो देश की समस्त ओबीसी-बहुजन जनता मजबूती से ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ खड़ी हो जाएगी। अन्यथा दुबारा धोखा न खाना पड़े, इसके लिए हमें ‘इंडिया’ पर नियंत्रण रखने के लिए ओबीसी राजनीतिक मोर्चा, शेड्यूल्ड कास्ट (दलित) राजनीतिक मोर्चा, माइनारिटी (मुस्लिम) राजनीतिक मोर्चा जैसे राजनीतिक मोर्चे बनाकर चुनाव लड़ने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं होगा। 

(मराठी से अनुवाद : चंद्रभान पाल, संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

श्रावण देवरे

अपने कॉलेज के दिनों में 1978 से प्रगतिशील आंदोलन से जुड़े श्रावण देवरे 1982 में मंडल कमीशन के आंदोलन में सक्रिय हुए। वे महाराष्ट्र ओबीसी संगठन उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए। उन्होंने 1999 में ओबीसी कर्मचारियों और अधिकारियों का ओबीसी सेवा संघ का गठन किया तथा इस संगठन के संस्थापक सदस्य और महासचिव रहे। ओबीसी के विविध मुद्दों पर अब तक 15 किताबें प्राकशित है।

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