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बिना ओबीसी की हिस्सेदारी के महिला आरक्षण विधेयक पारित, राहुल गांधी ने किया सरकार में आने पर आरक्षण देने का वादा

भले ही ओबीसी महिला आरक्षण विधेयक के हाशिए से भी बाहर रहा, लेकिन संसद के इस विशेष सत्र की खासियत यह रही कि विधायिका में ओबीसी के लिए आरक्षण केंद्रीय विषय बना। कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने इस सवाल को मजबूती से रखा। हालांकि विपक्ष इस पेशोपेश में जरूर रहा कि वह वर्तमान स्वरूप में ही विधेयक को अपना समर्थन दे अथवा नहीं दे

बहुजन साप्ताहिकी

आज 22 सितंबर, 2023 को कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि “जाति जनगणना एक्स-रे है। देश की बीमारी जानने के लिए जाति जनगणना जरूरी है! केंद्र सरकार के 90 सचिवों में मात्र तीन गैर सवर्ण हैं! सारे के सारे अगड़ी जाति वाले! हद है! बजट बनाने में, देश चलाने में ओबीसी, इबीसी, एससी-एसटी की कोई भागीदारी नहीं!” उन्होंने आगे कहा कि “मोदीजी जाति जनगणना से भाग रहे हैं। महिलाओं को आरक्षण के नाम पर धोखा दे रहे हैं। देश का सारा धन, सारी ताकत अडानी जी को दे रहे हैं।” 

हम सरकार में आएंगे, जातिगत जनगणना होगी : राहुल गांधी

राहुल गांधी ने कहा कि “हम सरकार में आएंगे। जाति जनगणना होगी। ओबीसी, इबीसी, एससी-एसटी, महिलाओं को पावर ट्रांसफार किया जायेगा! हमें इस बात का पश्चाताप हो रहा है कि हमारी सरकार को 2010 में ओबीसी को आरक्षण महिला आरक्षण बिल पास करा लेना चाहिए था। लेकिन अब हम इसे पूरा करेंगे। मोदीजी कर सकते थे। उन्होंने नहीं किया!”

इसके पहले गत 21 सितंबर, 2023 को विधायिका में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण से संबंधित 128वां संविधान संशोधन विधेयक संसद के उच्च सदन यानी राज्यसभा में भी पारित कर दिया गया। नारी शक्ति वंदन अधिनियम के नाम से संबोधित इस विधेयक के पक्ष में राज्यसभा में कुल 214 मत पड़े। जबकि विरोध में कोई मत नहीं पड़ा। इसके साथ ही संसद का विशेष सत्र पूर्व निर्धारित समय से एक दिन पहले ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। इसके पहले 20 सितंबर को लोकसभा में इस विधेयक को 2 के मुकाबले 454 मतों के बहुमत से पारित किया गया।

राज्यसभा में मनोज झा ने उठाया सवाल

राज्यसभा में भी अनेक सदस्यों ने इस विधेयक पर हुई बहस में भाग लिया। सत्ता पक्ष के सदस्यों ने इस विधेयक के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति आभार प्रकट किया। वहीं विपक्ष के सदस्यों ने केंद्र सरकार को दो मुद्दों पर घेरने की कोशिश की। पहला मुद्दा महिला आरक्षण में ओबीसी महिलाओं के लिए प्रावधान करने का रहा। वहीं दूसरा मुद्दा इसे लागू करने को लेकर सरकार की मंशा का रहा। विपक्ष ने केंद्र पर यह आरोप लगाया कि वह इसे लागू नहीं करना चाहता है। इसलिए उसने जानबुझकर इसमें ऐसे प्रावधान किए हैं, जिसके कारण इसे तभी लागू किया जा सकेगा, जब देश में जनगणना उपरांत परिसीमन होगा।

संसद के इस विशेष सत्र की खासियत यह रही कि विधायिका में ओबीसी के लिए आरक्षण केंद्रीय विषय बना। कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने इस सवाल को मजबूती से रखा। हालांकि विपक्ष इस पेशोपेश में जरूर रहा कि वह वर्तमान स्वरूप में ही विधेयक को अपना समर्थन दे अथवा नहीं दे। एक महत्वपूर्ण मांग राजद के सदस्य मनोज झा ने की। उन्होंने यह सवाल उठाया कि इस विधेयक को संसद की प्रवर समिति को सौंप दिया जाय और जब तक इस में ओबीसी और अल्पसंख्यक समाज की महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं होता है, इसे पारित न किया जाय। 

मनोज झा ने अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में संसद के केंद्रीय कक्ष में दिए गए एक बयान को उद्धृत किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि कैनवास के बड़ा होने से आकृति बड़ी दिखती है। मनोज झा ने कहा– “यहां (विधेयक में) कैनवास बड़ा है, किंतु आकृति छोटी है, जिसे इतिहास स्मरण रखेगा। यदि आज हम इसे नहीं कहेंगे तो हम ऐतिहासिक गुनहगार होंगे। बाहर लोग देख रहे हैं और वे हमसे सवाल पूछेंगे कि आपने यह क्या किया? संविधान अधिकार की बात करता है, किंतु अधिकार के साथ दया करने की बात नहीं होनी चाहिए।”

राहुल गांधी, मनोज झा, मायावती, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव और दीपंकर भट्टाचार्य

ओबीसी को शामिल न करना, उन्हें न्याय से वंचित करने के समान : मायावती

संसद के बाहर भी इस विधेयक को लेकर दलित-बहुजन नेताओं ने केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया। बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने ‘एक्स’ पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा– “महिला आरक्षण बिल संसद के दोनों सदनों से पारित हो जाने का स्वागत, किंतु देश इसका भरपूर व जोरदार स्वागत करता अगर उनकी अपेक्षाओं के मुताबिक यह अविलम्ब लागू हो जाता। अब तक लगभग 27 वर्षों की लंबी प्रतीक्षा के बाद अनिश्चितता का अब आगे और लंबा इंतजार करना कितना न्यायसंगत है?”

मायावती ने कहा कि “देश की आबादी के बहुसंख्यक ओबीसी समाज की महिलाओं को आरक्षण में शामिल नहीं करना बहुजन समाज के उस बड़े वर्ग को न्याय से वंचित रखना है। इसी प्रकार एससी व एसटी समाज की महिलाओं को अलग से आरक्षण नहीं देना भी उतना ही अनुचित व सामाजिक न्याय की मान्यता को नकारना है। किंतु जहां चाह है, वहां राह है और इसीलिए सरकार ओबीसी समाज को इस महिला आरक्षण बिल में शामिल करे, एससी व एसटी वर्ग की महिलाओं को अलग से आरक्षण दे तथा इस विधेयक को तत्काल प्रभाव से लागू करने के सभी जरूरी उपाय करे। धार्मिक अल्पसंख्यक समाज की महिलाओं की भी उपेक्षा अनुचित है।”

तेजस्वी और अखिलेश ने उठाए सवाल

बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि “ओबीसी लड़ाका वर्ग है। मोदी सरकार अच्छे से जान ले कि अगर भाजपा ने देश की 60 फ़ीसदी ओबीसी आबादी का हक़ खाने का दुस्साहस किया तो ओबीसी इनकी ईंट से ईंट बजा देगा। हमारी दशकों से मांग रही है कि महिला आरक्षण 33 प्रतिशत नहीं बल्कि 50 प्रतिशत हो और इसे तुरंत लागू किया जाय तथा इसमें एससी, एसटी, ओबीसी तथा अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षण रहे।”

वहीं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस मामले में भाजपा के ओबीसी सांसदों व नेताओं को आड़े हाथों लेते हुए कहा– “महिला आरक्षण पर भाजपा के ओबीसी सांसदों, विधायकों, पदाधिकारियों व सदस्यों की चुप्पी की वजह वे ख़ुद हैं या फिर उनके ऊपर उनकी पार्टी का दबाव है?” इसके पहले उन्होंने कहा कि “नई संसद के पहले दिन ही भाजपा सरकार ने ‘महाझूठ’ से अपनी पारी शुरू करी है। जब जनगणना और परिसीमन के बिना महिला आरक्षण बिल लागू हो ही नहीं सकता, जिसमें कई साल लग जाएंगे, तो भाजपा सरकार को इस आपाधापी में महिलाओं से झूठ बोलने की क्या ज़रूरत थी। भाजपा सरकार न जनगणना के पक्ष में है न जातिगत गणना के, इनके बिना तो महिला आरक्षण संभव ही नहीं है। इसलिए यह आधा-अधूरा बिल ‘महिला आरक्षण’ जैसे गंभीर विषय का उपहास है, इसका जवाब महिलाएं आगामी चुनावों में भाजपा के विरूद्ध वोट डालकर देंगी।”

पटना में दीपंकर भट्टाचार्य ने किया ओबीसी की हकमारी का विरोध

वहीं, पटना में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि “महिला आरक्षण बिल तत्काल प्रभाव से लागू होना चाहिए और आगामी लोकसभा चुनाव में महिलाओं को इसका फायदा मिलना चाहिए। लेकिन मोदी सरकार केवल चुनावी कार्ड खेलना चाहती है। महिला आरक्षण बिल के बारे में कहा गया है कि यह जनगणना और तदनुरूप परिसीमन के बाद लागू होगा। महिला आरक्षण बिल का नाम नारी शक्ति वंदन अधिनियम दिया गया है, यह देश व महिलाओं को उल्लू बनाने का काम है। आजादी के 75 सालों बाद भी प्रतिनिधि संस्थाओं में महिलाओं की बेहद कम उपस्थिति है। ऐसे में इसे तत्काल लागू किए जाने की जरूरत थी। वास्तविकता यह है कि महिला आरक्षण लागू करने के लिए जनगणना की कोई जरूरत नहीं है। यदि सरकार चुनावी कार्ड नहीं खेलना चाहती तो वह 2024 के चुनाव में ही लागू हो जाता।”

दीपंकर ने सवाल उठाते हुए कहा कि “विधेयक में राज्यसभा, विधानसभाओं को आखिर क्यों बाहर रखा गया है? यह हर जगह लागू होना चाहिए। एक तरफ सरकार हर बात में ओबीसी की बात करती है, लेकिन बिल में इसकी कोई चर्चा नहीं। तीन तलाक पर पीठ थपथपाने वाली सरकार मुस्लिम महिलाओं के आरक्षण पर कुछ नहीं बोल नहीं रही है। बिल में संपूर्णता में विभिन्न तबकों का प्रतिनिधत्व दिखना चाहिए।”

(संपादन : राजन/अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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