h n

महिला आरक्षण विधेयक : सोनिया गांधी और प्रकाश आंबेडकर ने उठाया जातिगत जनगणना और ओबीसी की हिस्सेदारी का सवाल

बिहार विधानसभा के पूर्व सदस्य एन.के. नंदा के मुताबिक यह विधेयक कुलीन वर्ग की महिलाओं के लिए लाया गया है। इसमें वंचित समुदायों के लिए प्रावधान नहीं किया गया है। यदि सरकार वाकई में महिलाओं का सशक्तिकरण करना चाहती है तो उसे वंचित समुदायों की महिलाओं को हिस्सेदारी देनी होगी

गत 19 सितंबर, 2023 को केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत नारी शक्ति वंदन अधिनियम-2023 को कांग्रेस ने अपना समर्थन दिया है। 20 सितंबर, 2023 को इस विधेयक को लेकर हुए बहस में भाग लेते हुए कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व सांसद सोनिया गांधी ने कहा कि महिलाओं को विधायिका में 33 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का यह निर्णय बिना देरी के लागू किया जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि देश में जातिगत जनगणना हो और महिला आरक्षण विधेयक में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग की महिलाओं की भागीदारी भी सरकार सुनिश्चित करे।

बताते चलें कि 128वें संविधान संशोधन विधेयक को केंद्र सरकार की तरफ से ‘नारी वंदन शक्ति अधिनियम’ कहा गया है। इसे प्रस्तुत करते हुए केंद्रीय विधि राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा को बताया कि 543 सदस्यों वाले लोकसभा में अभी केवल 82 महिला सदस्य हैं, लेकिन इस विधेयक के लागू हो जाने के बाद यह संख्या बढ़कर 181 हो जाएगी। 

वंचित बहुजन अघाड़ी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर ने इस विधेयक के बारे में दूरभाष पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि यदि इस विधेयक में ओबीसी महिलाओं के लिए कोटा नहीं है तो इसे केवल मनुवादी विधेयक ही कहा जाएगा। इसके लागू होने से संसद में ऊंची जातियों के लोगों की संख्या बढ़ेगी और जो वंचित हैं, उनकी संख्या कम होगी।

महिला आरक्षण विधेयक के बारे में लोकसभा को संबोधित करतीं सोनिया गांधी

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा है– “हम हमेशा महिला आरक्षण बिल के पक्ष में रहे हैं। 2010 में कांग्रेस सरकार ने इस बिल को राज्यसभा में पास किया था। राजनीति में जैसे एससी-एसटी वर्ग को संवैधानिक अवसर मिला है, वैसे ही ओबीसी वर्ग की महिलाओं को समान मौका मिलना चाहिए।” समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव ने लोकसभा में इस विधेयक को लागू करने में होनेवाली देरी का सवाल उठाते हुए इसे बेमानी करार दिया। उन्होंने यह भी कहा कि यह विधेयक तभी सार्थक होगा जब इसमें दलित, आदिवासी, ओबीसी और अल्पसंख्यक महिलाओं को हिस्सेदारी दी जाएगी।

वहीं बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि यह विधेयक ओबीसी और ईबीसी (पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग) वर्ग की महिलाओं को ठेंगा दिखाने वाला है। उन्होंने यह भी कहा कि यह परिसीमन के बाद लागू होगा और परिसीमन जनगणना के बाद होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना करवाने के दबाव में केंद्र ने जनगणना को ठंडे बस्ते में ही डाल दिया है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि यह बस झाल बजाने और शोर मचाने के लिए शिगूफा छोड़ा गया है।

वहीं बिहार विधानसभा के पूर्व सदस्य एन.के. नंदा के मुताबिक यह विधेयक कुलीन वर्ग की महिलाओं के लिए लाया गया है। इसमें वंचित समुदायों के लिए प्रावधान नहीं किया गया है। यदि सरकार वाकई में महिलाओं का सशक्तिकरण करना चाहती है तो उसे वंचित समुदायों की महिलाओं को हिस्सेदारी देनी होगी। यदि ऐसा नहीं होता है तो यह केवल और केवल धोखा है। बिहार सरकार के पूर्व मंत्री व राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी का कहना है कि इस विधेयक से केवल ऊंची जातियों की महिलाओं को लाभ मिलेगा। यह विधेयक बेमानी है यदि इसमें कोटा के अंदर कोटा शामिल नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि बिहार में जिस तरह महिलाओं को आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है, विधायिका में केंद्र सरकार को वैसे ही यह लाभ महिलाओं को देना चाहिए। और इसके लिए सबसे पहले वह जातिगत जनगणना कराए।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, संस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

रोज केरकेट्टा, एक विद्वान लेखिका और मानवाधिकार की उद्भट सिपाही
रोज दी जितनी बड़ी लेखिका थीं और उतनी ही बड़ी मानवाधिकार के लिए लड़ने वाली नेत्री भी थीं। वह बेहद सरल और मृदभाषी महिला...
जोतीराव फुले और हमारा समय
असहिष्णुता और प्रतिगामी सोच के इस दौर में फुले को पढ़ना और समझना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव हो सकता है। हाल में ‘फुले’...
सामाजिक न्याय का पेरियारवादी मॉडल ही समयानुकूल
आमजनों को दोष देने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि उनके दलित-ओबीसी नेताओं ने फुले-आंबेडकरवाद को ब्राह्मणों और मराठों के यहां गिरवी रख दिया...
एक नहीं, हजारों डॉ. रोज केरकेट्टा की आवश्यकता
डॉ. रोज केरकेट्टा के भीतर सवर्ण समाज के ज़्यादातर प्रोफेसरों की तरह ‘सभ्य बनाने’ या ‘सुधारने’ की मानसिकता नहीं थी। वे केवल एक शिक्षिका...
महाबोधि विहार मुक्ति आंदोलन : सिर्फ फेसबुक पर ही मत लिखिए, आंदोलन में शामिल भी होइए
इस आंदोलन का एक यह भी दुखद पहलू है कि जिस बिहार की धरती पर ब्राह्मणवादियों का आजादी के सात-आठ दशक बाद भी अभी...