h n

शिकंजे में ‘न्यूज़क्लिक’, प्रेस पर सरकार का हमला

‘न्यूज़क्लिक’ से जुड़े पत्रकारों से जो सवाल पूछे गए उनमें शाहीनबाग आंदोलन का कवरेज करने, किसान आंदोलन का कवरेज करने और दिल्ली हिंसा से जुड़ी घटनाओं के कवरेज से संबंधित थे। सवाल है कि क्या इन मामलों से जुड़ी खबरें प्रकाशित करना कोई ऐसा कृत्य है, जिसके लिए यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज हो? क्या दिल्ली पुलिस की इस कार्रवाई में साजिशों की बू नहीं आती?

बीते 3 अक्टूबर, 2023 की सुबह दिल्ली पुलिस ने जनपक्षीय खबरों के लिए लोकप्रिय न्यूज वेब पोर्टल ‘न्यूज़क्लिक डॉट इन’ से जुड़े कर्मियों व पत्रकारों के घर में छापा मारा। पुलिस की इस कार्रवाई की जद में वे स्वतंत्र पत्रकार भी आए, जिन्होंने पोर्टल के लिए एक या दो आलेख लिखा था। इनमें राज्यसभा टीवी के पूर्व संपादक उर्मिलेश, इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली के पूर्व संपादक परंजॉय गुहा ठाकुरता, अभिसार शर्मा, भाषा सिंह आदि शामिल थे। दिल्ली पुलिस ने 47 लोगों के साथ पूछताछ किया और न्यूज़क्लिक के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ व एचआर प्रमुख अमित चक्रवर्ती को गिरफ्तार कर लिया। 4 अक्टूबर, 2023 दिल्ली पुलिस ने दोनों को दिल्ली की एक निचली अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसने उन्हें सात दिनों के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिया। दोनों के ऊपर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। 

सवाल यह है कि क्या ‘न्यूज़क्लिक’ के द्वारा कोई ऐसी खबर प्रकाशित की गई है, जिससे देश में आतंकी गतिविधि को बढ़ावा मिला है? या फिर ‘न्यूज़क्लिक’ द्वारा कोई ऐसी खबर प्रकाशित की गई है, जिससे यह साबित हो कि उसने चीन के साथ मिलकर प्रोपेगेंडा किया? दरअसल बीते 17 अगस्त, 2023 से ‘न्यूज़क्लिक’ के खिलाफ यह दमनात्मक अभियान चलाया जा रहा है। इसके पीछे न्यूयार्क टाइम्स द्वारा प्रकाशित एक खबर को आधार बनाया जा रहा है, जिसमें कहा गया कि न्यूज़क्लिक और नेवेल रॉय सिंघम के बीच सांठगांठ है। नेविल रॉय सिंघम के बारे में इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वह अमेरिका में चीन के प्रोपेगेंडा का प्रसार करते हैं। 

‘न्यूज़क्लिक’ से जुड़े पत्रकारों से जो सवाल पूछे गए उनमें शाहीनबाग आंदोलन का कवरेज करने, किसान आंदोलन का कवरेज करने और दिल्ली हिंसा से जुड़ी घटनाओं के कवरेज से संबंधित थे। सवाल है कि क्या इन मामलों से जुड़ी खबरें प्रकाशित करना कोई ऐसा कृत्य है, जिसके लिए यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज हो? क्या दिल्ली पुलिस की इस कार्रवाई में साजिशों की बू नहीं आती? 

‘न्यूज़क्लिक’ का कार्यालय

दिल्ली पुलिस की इस कार्रवाई की विभिन्न राजनीतिक दलों ने (भाजपा को छोड़कर) निंदा की। मसलन, इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (इंडिया) द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि– इंडियन नेशनल डेव्लपमेंटल इन्क्लूसिव अलायन्स (इंडिया) की पार्टियां, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार के मीडिया पर ताज़ा हमले की कड़ी भर्त्सना करती हैं। हम मजबूती से मीडिया और संविधान-प्रदत्त बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में खड़े हैं। 

पिछले नौ वर्षों में भाजपा सरकार ने ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन (बीबीसी), न्यूज़लांड्री, दैनिक भास्कर, भारत समाचार, द कश्मीर वाला, द वायर इत्यादि और हाल में न्यूज़क्लिक से जुड़े पत्रकारों को दबाने के लिए सरकारी एजेंसियों का इस्तेमाल कर जानते-बूझते मीडिया को सताया और उसका दमन किया है। मीडिया को अपनी पार्टी और अपने विचारधारात्मक हितों के भोंपू में बदलने के लिए भाजपा सरकार ने चंद सहचर पूंजीपतियों की मीडिया संस्थानों पर उनका नियंत्रण स्थापित करने में मदद की। सरकार और विचारधारा के स्तर पर उससे जुड़े विभिन्न संगठनों ने ऐसे पत्रकारों के खिलाफ बदले की कार्यवाही की, जिन्होंने सत्ता के मुंह पर सच बोलने की हिम्मत दिखाई। इसके अतिरिक्त, भाजपा सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी नियम-2021 जैसी प्रतिगामी नीतियां लागू की, जो मीडिया द्वारा निष्पक्ष रिपोर्टिंग में बाधक हैं। यह सब करके भाजपा न केवल अपनी गलतियों और कमियों को भारत के लोगों से छुपा रही है, वरन् अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक परिपक्व लोकतंत्र बतौर देश की प्रतिष्ठा को भी चोट पहुंचा रही है। 

भाजपा सरकार की बेजा कार्यवाहियों के शिकार केवल वे मीडिया संस्थान और पत्रकार हो रहे हैं, जो सत्ता से डरे बिना सच बोलने का साहस दिखाते हैं। यह विडंबना ही है कि जब बात ऐसे पत्रकारों के खिलाफ कार्यवाही करने की आती है, जो नफरत और भेदभाव को बढ़ावा दे रहे हैं, तब भाजपा सरकार को मानो लकवा मार जाता है। राष्ट्रीय हित में भाजपा सरकार के लिए यह बेहतर होगा कि वह देश और उसके लोगों के असली सरोकारों पर फोकस करे और अपनी असफलताओं से ध्यान हटाने के लिए मीडिया पर हमले करना बंद करे।

वहीं, सत्ता पक्ष यानी भाजपा ने भी इस मामले में सफाई दी है। भाजपा के रष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया ने 4 अक्टूबर, 2023 को दिल्ली स्थित केंद्रीय कार्यालया में संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहा कि “पहली बात यह कि ‘न्यूज़क्लिक’ के खिलाफ ठोस सबूत हैं, उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े गंभीर आरोप लगे हैं। यही कारण है कि धनशोधन के लिए मामला दर्ज किया गया और यूएपीए के प्रावधानों को भी लागू किया गया है।” गौरव भाटिया ने आगे कहा कि “भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों को कड़ी से कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि लोगों ने ऐसे तत्वों से सख्ती से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को जनादेश दिया है।” उन्होंने कहा कि “न्यूज़क्लिक पत्रकारिता का मुखौटा पहनकर भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल था। और वह भी चीन से वित्तीय सहायता लेना, जो भारत के खिलाफ रहा है।”

भाजपा के द्वारा दी गई इस सफाई और न्यूज़क्लिक पर लगाए गए आरोपों से इतर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया सहित डिजिपब न्यूज इंडिया फाऊंडेशन, इंडियन वीमेंस प्रेस कोर, फाऊंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स, नेटवर्क ऑफ वीमेन इन मीडिया (इंडिया), चंडीगढ़ प्रेस क्लब, नेशनल अलायंस ऑफ जर्नलिस्ट्स, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स, केरला यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स, बृहन मुंबई यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स, फ्री स्पीच कलेक्टिव, मुंबई प्रेस क्लब, अरुणाचल प्रदेश यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स, प्रेस एसोसिएशन, गौहाटी प्रेस क्लब, इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन, कोलकाता प्रेस क्लब, वर्किंग न्यूज कैमरामैन एसोसिएशन ने संयुक्त रूप से दिल्ली पुलिस की कार्रवाई को मीडिया के ऊपर हमला माना है और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ को पत्र लिखा है। अपने पत्र में मीडिया संगठनों ने कहा है–

तथ्य यह है कि आज भारत में पत्रकारों का एक बड़ा तबका बदले की कार्यवाही के डर के साए में जी रहा है। यह ज़रूरी है कि न्यायपालिका, सरकार को इस मूलभूत सत्य का अहसास करवाए कि हमारे देश में एक संविधान हैं, जिसके प्रति हम सब जवाबदेह हैं। 

“जिस तरह संवैधानिक प्रावधानों के तहत पुलिस के लिए यह आवश्यक है कि वह किसी भी व्यक्ति की गिरफ़्तारी के आधारों का खुलासा करे, वही शर्त किसी भी व्यक्ति से पूछताछ करने पर भी लागू होनी चाहिए। इसके अभाव में, जैसा कि हमने न्यूज़क्लिक के मामले में देखा, अस्पष्ट आरोपों की जांच को आधार बना कर, अन्य मुद्दों के अलावा, किसान आंदोलन, कोविड महामारी से निपटने के लिए सरकार की कार्यवाही और नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के उनके कवरेज के बारे में पत्रकारों से पूछताछ की जा रही है। 

“हम यह कतई नहीं कह रहे हैं कि पत्रकार कानून से परे हैं। हम कानून के ऊपर नहीं हैं और न ही रहना चाहते हैं। लेकिन मीडिया को आतंकित करने से समाज का लोकतांत्रिक ढांचा प्रभावित होता है। पत्रकारों को आपराधिक जांच प्रक्रिया में केवल इसलिए उलझाया जाना क्योंकि राष्ट्रीय और वैश्विक मसलों का उनका कवरेज सरकार को रास नहीं आ रहा है, बदले की कार्यवाही का डर दिखाकर प्रेस को पंगु बनाने का प्रयास है। यह ठीक वही है जिसे आपने [जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने] आज़ादी के लिए खतरे का घटक बताया है।   

“राज्य को जांच करने के व्यापक अधिकार यह मानते हुए दिए जाते हैं कि उसकी एजेंसियां ईमानदारी और निष्पक्षता से काम करेंगी। संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संबंधी प्रावधानों में यह शामिल है कि व्यक्तियों से किसी तरह की ज़बरदस्ती नहीं की जाएगी। पुलिस द्वारा अपने अधिकारों के बार-बार दुरुपयोग के मद्देनज़र, उसे उसकी हदों से बाहर जाकर कार्यवाही करने से रोकने के उपाय किये जाने चाहिए। हर मामले में सालों तक चलने वाली अदालती कार्यवाही की समाप्ति तक इंतजार नहीं किया जा सकता।” 

वहीं, ‘न्यूज़क्लिक’ ने अपनी ओर से बयान जारी किया है। इसके मुताबिक– 

“कल, 3 अक्टूबर, 2023 को दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल द्वारा न्यूज़क्लिक के कार्यालयों, पत्रकारों और कर्मचारियों के आवासों – पूर्व और वर्तमान, सलाहकारों और न्यूज़क्लिक से जुड़े फ्रीलांस योगदानकर्ताओं सहित विभिन्न स्थानों पर छापे मारे गए।

कई लोगों से पूछताछ की गई और पूछताछ जारी है। फिलहाल, हमारे संस्थापक-संपादक 76 वर्षीय प्रबीर पुरकायस्थ और हमारे प्रशासनिक अधिकारी अमित चक्रवर्ती, जो शारीरिक रूप से विकलांग हैं, को गिरफ्तार कर लिया गया है।

हमें एफआईआर की प्रति उपलब्ध नहीं कराई गई है और न हमें उन अपराधों के सटीक विवरण के बारे में सूचित किया गया है जिनके लिए हम पर आरोप लगाए गए हैं। बिना किसी उचित प्रक्रिया का पालन किए जैसे कि जब्ती मेमो (seizure memos) का प्रावधान, जब्त किए गए डेटा के हैश मान (hash values) यहां तक कि डेटा की प्रतियां आदि के बिना न्यूज़क्लिक परिसर और कर्मचारियों के घरों से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जब्त कर लिया गया। हमें अपनी रिपोर्टिंग जारी रखने से रोकने के एक ज़बरदस्त प्रयास में न्यूज़क्लिक के कार्यालय को भी सील कर दिया गया है।

हम जो बता पाने में सक्षम हैं वह यह है कि न्यूज़क्लिक पर अपनी वेबसाइट पर कथित तौर पर चीनी प्रचार करने के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत अपराध का आरोप लगाया गया है।

हम ऐसी सरकार के इन कार्यों की कड़ी निंदा करते हैं जो पत्रकारिता की स्वतंत्रता का सम्मान करने से इनकार करती है और आलोचना को देशद्रोह या ‘राष्ट्र-विरोधी’ प्रचार मानती है।

न्यूज़क्लिक को 2021 से भारत सरकार की विभिन्न एजेंसियों द्वारा कार्रवाइयों की एक शृंखला द्वारा लक्षित किया गया है। इसके कार्यालयों और अधिकारियों के आवासों पर प्रवर्तन निदेशालय, दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा और आयकर विभाग द्वारा छापे मारे गए हैं।

पहले भी सभी उपकरण, लैपटॉप, गैजेट, फोन आदि जब्त कर लिए गए थे। सभी ईमेल और संचार का बारीकी से विश्लेषण किया गया। पिछले कई वर्षों में न्यूज़क्लिक द्वारा प्राप्त सभी बैंक विवरण, चालान, किए गए खर्च और प्राप्त धन के स्रोतों की समय-समय पर सरकार की विभिन्न एजेंसियों द्वारा जांच की गई है। विभिन्न निदेशकों और अन्य संबंधित व्यक्तियों ने कई अवसरों पर इन सरकारी एजेंसियों द्वारा पूछताछ में अनगिनत घंटे बिताए हैं।

फिर भी, पिछले दो से अधिक वर्षों में, प्रवर्तन निदेशालय न्यूज़क्लिक पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज नहीं कर पाया है। दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध के लिए न्यूज़क्लिक के खिलाफ आरोप पत्र दायर नहीं कर पाई है। आयकर विभाग अदालतों के समक्ष अपने कार्यों का बचाव करने में सक्षम नहीं है।

पिछले कई महीनों में प्रबीर पुरकायस्थ को इनमें से किसी भी एजेंसी ने पूछताछ के लिए भी नहीं बुलाया है।

फिर भी, एक ऐसी सरकार जो सारी जानकारी दस्तावेज और संचार के कब्जे में होने के बावजूद न्यूज़क्लिक के खिलाफ किसी भी आरोप को साबित करने में सक्षम नहीं है, उसे कठोर यूएपीए को लागू करने और न्‍यूज़क्लिक को बंद करने का प्रयास करने के लिए न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित फर्जी लेख की आवश्यकता थी। और उन स्वतंत्र और निडर आवाज़ों को दबा दिया जाता है जो असली भारत की कहानी प्रस्‍तुत करती हैं जैसे किसानों की, मज़दूरों की और समाज के अन्य उपेक्षित वर्गों की।

हम रिकॉर्ड के लिए बताना चाहते हैं :

  1. न्यूज़क्लिक एक स्वतंत्र समाचार वेबसाइट है।
  2. हमारी पत्रकारिता सामग्री पेशे के उच्चतम मानकों पर आधारित है।
  3. न्यूज़क्लिक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी चीनी इकाई या प्राधिकारी के आदेश पर कोई समाचार या जानकारी प्रकाशित नहीं करता है।
  4. न्यूज़क्लिक अपनी वेबसाइट पर चीन के किसी प्रोपेगेंडा का प्रचार नहीं करता है।
  5. न्यूज़क्लिक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित सामग्री के संबंध में नेविल रॉय सिंघम से निर्देश नहीं लेता है।
  6. न्यूज़क्लिक को प्राप्त सभी फंडिंग उचित बैंकिंग चैनलों के माध्यम से की गई है और कानून द्वारा अपेक्षित संबंधित अधिकारियों को सूचित किया गया है जैसा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष कार्यवाही में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रमाणित किया गया है।

न्यूज़क्लिक वेबसाइट पर अब तक प्रकाशित सभी पत्रकारिता सामग्री इंटरनेट पर उपलब्ध है और इसे कोई भी देख सकता है। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने एक भी लेख या वीडियो का जिक्र नहीं किया है] जिसे वे चीनी प्रचार मानते हैं। दरअसल, दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा अपनाई गई पूछताछ की शैली – दिल्ली दंगों, किसानों के विरोध प्रदर्शन आदि पर रिपोर्ट के संबंध में, सभी वर्तमान कार्यवाही के पीछे प्रेरित और दुर्भावनापूर्ण इरादे को प्रदर्शित करती है।

हमें न्यायालयों और न्यायिक प्रक्रिया पर पूरा भरोसा है। हम भारत के संविधान के अनुसार अपनी पत्रकारिता की स्वतंत्रता और अपने जीवन के लिए लड़ेंगे।”

बहरहाल, भारत सरकार और सत्तासीन भाजपा के नेतागण ‘न्यूज़क्लिक’ के ऊपर जिस तरह के आरोप लगाएं, लेकिन अभी तक जो तथ्य सामने आए हैं, उनसे सरकार पर ही सवाल उठते हैं। सवाल यह है कि यदि उसके पास ‘सबूत’ हैं तो सरकार को इसकी भनक पहले क्यों नहीं लगी? क्या वह न्यूयार्क टाइम्स में खबर प्रकाशित होने का इंतजार कर रही थी? या यह मीडिया को यूएपीए का डर दिखाकर उसकी आवाज बंद करने की सरकारी साजिश है? 

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, संस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

केशव प्रसाद मौर्य बनाम योगी आदित्यनाथ : बवाल भी, सवाल भी
उत्तर प्रदेश में इस तरह की लड़ाई पहली बार नहीं हो रही है। कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह के बीच की खींचतान कौन भूला...
बौद्ध धर्मावलंबियों का हो अपना पर्सनल लॉ, तमिल सांसद ने की केंद्र सरकार से मांग
तमिलनाडु से सांसद डॉ. थोल थिरुमावलवन ने अपने पत्र में यह उल्लेखित किया है कि एक पृथक पर्सनल लॉ बौद्ध धर्मावलंबियों के इस अधिकार...
मध्य प्रदेश : दलितों-आदिवासियों के हक का पैसा ‘गऊ माता’ के पेट में
गाय और मंदिर को प्राथमिकता देने का सीधा मतलब है हिंदुत्व की विचारधारा और राजनीति को मजबूत करना। दलितों-आदिवासियों पर सवर्णों और अन्य शासक...
मध्य प्रदेश : मासूम भाई और चाचा की हत्या पर सवाल उठानेवाली दलित किशोरी की संदिग्ध मौत पर सवाल
सागर जिले में हुए दलित उत्पीड़न की इस तरह की लोमहर्षक घटना के विरोध में जिस तरह सामाजिक गोलबंदी होनी चाहिए थी, वैसी देखने...
फुले-आंबेडकरवादी आंदोलन के विरुद्ध है मराठा आरक्षण आंदोलन (दूसरा भाग)
मराठा आरक्षण आंदोलन पर आधारित आलेख शृंखला के दूसरे भाग में प्रो. श्रावण देवरे बता रहे हैं वर्ष 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण...