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जहरीली शराब से मौतों का सिलसिला कब रूकेगा?

सवाल उठता है कि क्या मदिरापान इतनी बड़ी समस्या है? और इस समस्या का निदान क्या सिर्फ़ शराबबंदी है? और जहां शराबबंदी लागू करके इस समस्या का निदान कर दिया गया है वहां शराब लोगों को क्यों और कैसे मिल रही है? बता रहे हैं सुशील मानव

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अधिकारियों को सूबे में शराबबंदी के प्रभाव का अध्ययन करने का निर्देश दिया है। मुख्यमंत्री का यह आदेश गत 17-18 नवंबर, 2023 के दौरान सीतामढ़ी जिले में जहरीली शराब पीने से छह लोगों की मौत के बाद आया है। हालांकि जहरीली शराब के कारण मौतें केवल बिहार में हीं नहीं होतीं। अभी हाल ही में दीपावली से ठीक एक दिन पहले 11 नवंबर, 2023 को हरियाणा के यमुनानगर और अंबाला जिले में ज़हरीली शराब पीने से 12 लोगों की मौत हो गई। इस तरह की अधिकांश घटनाओं में मृतक दलित-बहुजन ही होते हैं।

बिहार के सीतामढ़ी जिले में हुई घटना के बारे में परिजनों के मुताबिक 16 नवंबर की शाम सभी लोगों ने एक साथ शराब पी थी। अगले दिन सुबह में सभी की तबीअत बिगड़ने लगी और 3 लोगों की मौत उसी दिन और 3 लोगों की मौत 18 नवंबर को हो गई। ये लोग आसपास के तीन गावों के थे। इनमें बाजापट्टी थानाक्षेत्र सोलमन टोला का रामबाबू राय, बिक्रम कुमार, नरहा कला के महेश राय, अवधेश राय, बाबू नरहर गांव के संतोष महतो और रौशन कुमार शामिल थे। 

जहरीली शराब से होनेवाली मौत के कुछ मामलों पर नज़र डालें तो 14-18 अप्रैल, 2023 के दौरान बिहार के पूर्वी चंपारण में जहरीली शराब पीने से 47 लोगों की जान गई थी। जबकि दर्जनों लोगों के आंख की रोशनी चली गयी थी। इसके अलावा 14-17 दिसंबर, 2022 के दरम्यान छपरा जिले में 53 लोगों की मौत हुई थी। इसमें सीवान और बेगूसराय का आंकड़ा जोड़ दें तो तीन जिलों में ज़हरीली शराब से 83 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। वहीं इसके पहले अक्टूबर-नवंबर, 2021 में गोपालगंज-सीवान-चंपारण में ज़हरीली शराब पीने से 65 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई थी। बिहार से इतर जुलाई, 2022 में ही गुजरात के भावनगर जिले में जहरीली शराब से 57 लोगों की मौत हुई थी। फऱवरी 2019 में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में ज़हरीली शराब पीने से हुई 124 लोगों की मौत हुई थी, जिसमें सहारनपुर और आसपास के जिले में 88 और रुड़की हरिद्वार में 36 से अधिक लोगों की मौत ज़हरीली शराब से हुई थी। 

दरअसल ज़हरीली शराब से मौत की अधिकांश ख़बरें साल 2016 में शराबबंदी करने वाले बिहार राज्य से आती रही हैं। जबकि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक साल 2016-2021 के दौरान देश भर में 6954 लोगों की मौत ज़हरीली शराब पीने से हुई है, जिसमें सबसे ज़्यादा 1322 मौतें मध्य प्रदेश में हुईं। इसके अलावा दूसरे नंबर पर कर्नाटक रहा जहां 1013 लोग बेमौत मारे गए। इसी तरह पंजाब में 852 और छत्तीसगढ़ में 535 और हरियाणा में 489 मौतें ज़हरीली शराब से हुईं। 

बिहार के छपरा में एक व्यक्ति की जहरीली शराब पीने से मौत के बाद रोते-बिलखते परिजन

आश्चर्यजनक रूप से बिहार में इस दौरान ज़हरीली शराब से केवल 23 मौतें दर्ज की गई हैं। बता दें कि भारत में बिहार, गुजरात, मिजोरम, नागालैंड और लक्षद्वीप में शराबबंदी है। साल 1995-96 के दौरान आंध्र प्रदेश में 16 महीने शराबबंदी रही। हरियाणा में भी 1996-98 के दौरान शराबबंदी लागू थी। वहीं मणिपुर में साल 1991 से शराबबंदी लागू थी, जिसे राजस्व संग्रह के लिहाज से सितंबर, 2022 में हटा दिया गया। अब सवाल उठता है कि क्या मदिरापान इतनी बड़ी समस्या है? और इस समस्या का निदान क्या सिर्फ़ शराबबंदी है? और जहां शराबबंदी लागू करके इस समस्या का निदान कर दिया गया है वहां शराब लोगों को क्यों और कैसे मिल रही है? ये सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वहां बड़ी संख्या में लोग ज़हरीली शराब पीकर मर रहे हैं।  

गौर तलब है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में 1990 के दशक में स्थानीय लोक गायक समाज की समस्याओं और मुद्दों को स्वर देकर कैसेट्स के माध्यम से दलित-बहुजन समाज को चेतनाशील बना रहे थे। दिहाड़ीपेशा, मेहनतकश दलित-बहुजन समाज में मदिरापान की समस्या को लेकर उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र के बिरहा गायक हैदर अली ‘जुगनू’ का एक बिरहा ‘दारू और दहेज’ ने तो कैसेट्स बिक्री का नया रिकॉर्ड ही बना डाला था, जिसमें उन्होंने दारू को समाज का कैंसर की उपमा देते हुए यह बतलाया था कि किस तरह से दारू एक निम्नवर्गीय परिवार को तबाह कर देता है। हैदर अली जुगनू के इस बिरहा को सुनकर समाज की एक आम-धारणा बनी कि व्यक्ति अपने मजे के लिए दारू पीता है। वह चाहे तो इसे त्याग दे और शराब के पैसे घर परिवार और बच्चों पर ख़र्च करके एक बेहतर ज़िन्दग़ी जिए। 

दरअसल मदिरापान को लेकर भारतीय समाज की सोच सुविधाभोगी वर्ग की मानसिकता से ग्रस्त रही है। जबकि मद्यपान करने वालों के दो वर्ग हैं– पहला सुविधाभोगी वर्ग और दूसरा वंचित वर्ग। सुविधावादी वर्ग के लिए मद्यपान भोग विलासिता की चीज है। जबकि वंचित समाज के लोगों को मद्यपान जीवन की तमाम दुश्वारियों, असाध्य शारीरिक कष्टों, हाड़तोड़ मेहनत से उपजी शारीरिक पीड़ा, और प्रतिकूल मौसम में लगातार काम करने के दौरान होने वाले असहनशील कष्टों को कुछ देर के लिए भूलने का या महसूस नहीं करने का एक ज़रिया है। 

दरअसल, मूल समस्या संसाधनों का असमान वितरण है। लोगों की आय में जमीन-आसामान का फर्क है। जहां एक तरफ संपन्न वर्ग महंगी शराब पीता है तो दूसरी ओर कम आय वाले लोग हैं, जो कम कीमत पर उपलब्ध शराब पीते हैं और इस तरह के शराबों की गुणवत्ता का कहीं कोई निर्धारण नहीं होता। इसके अलावा गांवों में देसी शराब के चलन ने समस्या को और गंभीर बना दिया है, जो तमाम सरकारी दावों के बावजूद धड़ल्ले से जारी है।  

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

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