अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सरकार का पहरा अब परंपरा बन चुकी है। लेकिन अब वैश्विक सोशल मीडिया कंपनियां, जो मीडिया खबर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक ले जानेवाला वाहक है,, भी सरकार के सीधे निशाने पर हैं। बीते दिनों किसानों के आंदोलन को देखते भारत सरकार ने ‘एक्स’ में कुछ पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों के खातों को प्रतिबंधित करने को कहा। ‘एक्स’ ने भारत सरकार के इस निर्देश का पालन किया। हालांकि उसने अपने बयान में असहमति जतायी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार बताया।
‘एक्स’ ट्वीटर का नया नाम हैं। इसका इस्तेमाल कर लाखों लोगों अपनी भावनाएं और एक-दूसरे की राय-विचार पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हैं। वैश्वीकरण के इस दौर में, जिसमें ‘एक्स’ बस एक प्लेटफार्म है, को प्यार से पुकारने के लिए सोशल मीडिया का नाम दिया गया है।
दरअसल, केंद्र सरकार को 2021 के किसान आंदोलन के व्यापक समर्थन हासिल होने की उम्मीद नहीं थी और उससे मिले सबक के कारण इस बार वह भयभीत है। खासतौर से लोकसभा के लिए होने वाले चुनाव के मद्देनजर सत्ताधारी पार्टी ज्यादा परेशान है। तीसरी बार के लिए सत्ता में बने रहने की वह हरसंभव कोशिश कर रही है। इसीलिए वह न केवल देश की पारंपरिक प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, बल्कि अब वैश्विक मीडिया कंपनियों पर भी नियंत्रण बनाए हुए हैं।
आमतौर पर यह माना जाने लगा है कि लोगों का ‘प्यारा’ सोशल मीडिया सरकार का खिलौना बन गया है। केंद्र सरकार ने कानूनों में नए-नए प्रावधान कर यह व्यवस्था बना ली है कि वह किसी भी वैश्विक कंपनी को अपने देश की सीमा के भीतर कुछ भी कहने से रोक सकती है। सरकार चलाने वाली पार्टियां या सरकार की मशीनरी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश चाहती है, यह सर्वविदित है। फिर चाहे कोई भी पार्टी हो।
भारत में अंग्रेजो की सरकार से लेकर अब तक सरकारों के बारे में भी यही अनुभव है। लेकिन लोकतंत्र के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मंच तैयार होते रहते हैं। तकनीक के विकास के साथ जब वैश्विक स्तर की कंपनियों ने सोशल मीडिया के नाम पर भारतीय समाज में अपनी जगह बनाई तो लोगों को यह लगा कि भारतीय कंपनियां सरकार की गोद में भले बैठ गई हो, लेकिन वैश्विक कंपनियों का सरकार कुछ नहीं बिगाड़ सकती है। लेकिन यह देखा गया कि जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मंचों को भी दबोचने के लिए सरकार ने हर संभव कोशिश की। उनमें विज्ञापनों से लेकर छापेमारी तक की घटनाएं शामिल है। बीबीसी के दफ्तर पर न केवल छापेमारी की गई बल्कि छापेमारी के दिन से लेकर अभी तक बीबीसी सरकारी नियंत्रण से पूरी तरह उबर नहीं पाया है।
लोकंतत्र में कंपनियों के ब्रांडो को लोगों की अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम मान लेना लोकतंत्र की विचारधारा के कमजोर होने का सूचक माना जा सकता है। यह अनुभव किया गया है कि जब भी किसी नई कंपनी को अपने ब्रांड के लिए समाज में जगह बनानी होती है, तब वह लोगों के बीच जाकर लोगों की भावनाओं और अपेक्षाओं को स्वर देता है। भारत में स्वतंत्रता के पूर्व और बाद में बनी कंपनियों द्वारा मीडिया मंचों की शुरुआत और उसके बाद उसके रवैये में बदलाव को लेकर कई अध्ययन मौजूद हैं। यह इस बात को पुष्ट करते हैं कि मीडिया कंपनियों ने जो अपने शुरुआती दिनों में लोगों के बीच जगह बनाई वह बाद के दौर में सरकार व दूसरे शक्तियों के हितों के काम में सक्रिय रही है। मीडिया कंपनियां मालामाल हुई हैं। मीडिया के अलावा उनके कई धंधे शुरु हुए और वे फले-फूले हैं। लोकंतत्र के लिए मीडिया हो, उसके लिए यह अब तक नियम नहीं बना है कि मीडिया कंपनी दूसरे किसी व्यवसाय या धंधे में शामिल नहीं होगी।
‘एक्स’ मुनाफे के लिए चलने वाली वैश्विक स्तर की कंपनी है। एलन मस्क उसके मालिक हैं जबकि दूसरे बिलियनॉयर मार्क जुकरबर्ग फेसबुक और व्हाट्सऐप के मालिक है। जिस तरह से देश में कुछ मीडिया कंपनियों के नियंत्रण में भारतीय समाज का दर्शक, पाठक और श्रोता हैं, उसी तरह से वैश्विक स्तर पर भी कुछ कंपनियों का ही नियंत्रण बनने की दिशा में दुनिया बढ़ रही है। ट्वीटर के जमाने में भी किसान आंदोलन को लेकर सरकार ने सोशल मीडिया के खिलाफ सख्ती दिखाई थी और ट्वीटर को झुकना पड़ा था। उसने जब कभी सरकार के सामने नहीं झुकने का साहस भी किया तो वह आगे नहीं बढ़ सकी। ट्वीटर (एक्स बनने से पहले) ने केंद्र सरकार के मनमानेपन को पूरी तरह से मानने से इंकार किया था और कर्नाटक हाई कोर्ट में भी केन्द्र सरकार के आदेशों के खिलाफ पहुंची। लेकिन न्यायालय के एकलौते ‘पंच परमेश्वर’ ने सरकार के रुख का समर्थन किया। उसके बाद ट्वीटर ने अपील की तो उसकी सुनवाई पूरी नहीं हो पा रही है।
इन स्थितियों को सरकार और कंपनी के रवैये को आमने सामने रखकर नहीं समझा जा सकता है। बल्कि एक-दूसरे के बीच साझापन की भावना को एकसाथ रखकर समझा जाता है तो लोकतंत्र की वास्तविकता का अंदाजा लग सकता है। भारत सरकार दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र होने का विज्ञापन जारी कर देती है। उसे इस बात की परवाह नहीं होती है कि पूरी दुनिया में इस देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर छवि खराब हो रही है। यह एक तरह की विडंबना है कि दुनिया के बीच लोकंतत्र के दावे के लिए विज्ञापन और दुनिया के बीच वास्तविक छवि की परवाह नहीं। दरअसल लोगों के लिए लोकतंत्र विचार हैं, शोर नहीं। लेकिन सरकार विज्ञापन को ही लोकतंत्र मानती है और उसका जब जैसा मन चाहता है वैसा विज्ञापन जारी कर देती है।
बहरहाल, किसान आंदोलन हो, या लोकंतत्र में अन्य कोई विरोध या मांग के लिए संगठित अभिव्यक्ति हो, सरकार तकनीक के स्तर पर सबसे पहले दमनात्मक कार्रवाई करती है। अब तो सबसे पहले वह इंटरनेट बंद कर देती है। भारत में सरकार द्वारा इंटरनेट बंद करने के मनमाने फैसले को लेकर दुनिया के स्तर पर आवाज उठ रही है। किसान आंदोलन भी इससे जूझ रहा है।
(संपादन : नवल/अनिल)