क्या आपने दिल्ली के पुराने संसद भवन के सामने बाबा साहेब की आदमकद प्रतिमा को देखा है? प्रतिमा के दाएं हाथ की उंगली इस मुद्रा में उठी हुई है मानो वह चेतावनी दे रही है कि इस देश की सामाजिक और आर्थिक विषमता का अंत करना है। वरना असमानता की चक्की चलाने वाले लोग इस व्यवस्था को ही मिट्टी में मिला देंगे।
अब बात यदि असमानता की करें तो मार्च, 2024 में आए विश्व असमानता रिपोर्ट – 2024 शृंखला के तहत ‘इनकम एंड वेल्थ इनइक्वलिटी इन इंडिया, 1922-2023 : द राइज ऑफ द बिलियनॉयर राज’ के अनुसार भारत का मोदी राज ‘अरबपति राज’ बन गया है। एक तरफ 81 करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराया जा रहा है तो दूसरी तरफ 2022-23 में शीर्ष एक फ़ीसदी लोगों का 22.6 प्रतिशत आय और 40.1 प्रतिशत संपत्ति पर कब्जा है।
रिपोर्ट कहती है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के आजादी के अमृतकाल में आर्थिक असमानता ब्रिटिश राज से भी ज्यादा बढ़ गई है। क्रॉनी कैपिटलिज्म (पूंजीवाद जिसमें शासन-प्रशासन और पूंजीपतियों के बीच सांठ-गांठ हो) का प्रभाव यह है कि एक फ़ीसदी लोगों की आय और धन की हिस्सेदारी (क्रमशः 22.6 प्रतिशत, 40.1 प्रतिशत) ऐतिहासिक तौर पर सबसे ऊंचे स्तर पर है। भारत की शीर्ष एक फ़ीसदी आबादी के पास आय की हिस्सेदारी दुनिया में सबसे अधिक है, यहां तक कि दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और अमेरिका से भी अधिक है।
इस रिपोर्ट के आने के बाद कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला। दरअसल, राहुल गांधी पिछले सात साल से लगातार देश को इस संबंध में सचेत करते रहे हैं। भारत में ही नहीं बल्कि विदेश के तमाम प्रतिष्ठानों और संस्थानों में भाषण देते हुए राहुल गांधी ने देश में बढ़ती विषमता और गरीबी पर सवाल उठाते हुए बार-बार मोदी सरकार को आगाह किया। लेकिन मोदी और उनके समर्थकों ने राहुल गांधी की चेतावनी का हमेशा मजाक उड़ाया। शायद वे भूल गए कि शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन रेत में गड़ा देने से तूफान नहीं रुकते।
इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि मोदी सरकार के एक दशक के कार्यकाल में पूंजीवाद का बहुत एकांगी विकास हुआ है। गुजराती उद्योगपति अंबानी और अडानी की संपत्ति लगातार बढ़ती रही। जमीन, कोयला, अभ्रक, लीथियम आदि प्राकृतिक संसाधन एक के बाद एक अडानी-अंबानी को सौंप दिए गए। बिजली, गैस, पैट्रोलियम से लेकर रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा जैसे हजारों प्रोजेक्ट दोनों पूंजीपतियों के हवाले कर दिए गए। इस बीच यह भी सामने आया कि अनेक पूंजीपति हजारों करोड़ रुपया लेकर विदेश पलायन कर गए। दूसरी ओर मित्र पूंजीपतियों पर मोदी की मेहरबानी के दौर में सैकड़ों ऐसे उद्योगपति और लाखों लघु-मध्यम उद्योग किनारे लगा दिए गए, जो करोड़ों लोगों को संगठित और असंगठित क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध करा रहे थे।
इसका नतीजा यह हुआ कि इस समय देश में बेरोजगारों और गरीबों की संख्या अनवरत बढ़ती रही। रही सही कसर कोरोना आपदा ने पूरी कर दी। इस दौरान शहरों-महानगरों में जो लघु मध्यम उद्योग बंद हुए थे, उन्हें मोदी सरकार ने कोई राहत नहीं दी। जबकि 22 बड़े पूंजीपतियों की 16 लाख करोड़ रुपए की बैंक उधारी मोदी सरकार ने माफ कर दी। इसका नतीजा यह हुआ कि डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में उभरने वाला मध्यवर्ग ठहर गया और रोजगार पैदा करने वाले अवसरों पर तालाबंदी हो गई। परिणामस्वरूप बेरोजगारी बढ़ती गई। वहीं निम्न मध्यवर्ग गरीबी की तरफ बढ़ता चला गया। और जो गरीब थे, वे 5 किलो राशन पर निर्भर हो गए। फिर इसके बाद मोदी सरकार ने 81 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने, अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया। जबकि वास्तविकता यह रही कि मोदी राज में असमानता की खाई चौड़ी होती गई।
राहुल गांधी ने पिछले दो साल में दो यात्राएं कीं। पहले वे कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा पर निकले। इस यात्रा में राहुल गांधी ने किसान, दलित, आदिवासी, महिलाओं, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों से सीधा संवाद किया। इस यात्रा में राहुल गांधी ने देश को बखूबी समझा और यह पाया कि कमजोर वंचित मेहनतकश समाज के साथ मोदी सरकार और उसकी विचारधारा बहुत अन्याय कर रही है। पुनः इस अन्याय के खिलाफ उन्होंने अपनी दूसरी यात्रा शुरू की। मणिपुर से मुंबई तक हुई भारत जोड़ो न्याय यात्रा में राहुल गांधी ने गरीब, वंचित पीड़ित समाज के उत्थान का संकल्प किया। कांग्रेस का चुनाव घोषणा पत्र इसी संकल्प का दस्तावेज है, जिसमें सामाजिक न्याय के साथ-साथ आर्थिक न्याय की भी पुरजोर वकालत की गई है। एक तरफ दलित, आदिवासी, ओबीसी और महिलाओं को सामाजिक न्याय और सामाजिक सुरक्षा का संकल्प कांग्रेस के घोषणा पत्र में है तो दूसरी तरफ किसानों और नौजवानों के लिए लंबे समय से चली आ रही मांगों को पूरा करने की गारंटी प्रदान की गई है। किसानों के लिए एमएसपी लागू करने और ऋण माफी की गारंटी घोषणापत्र में मौजूद है। केंद्रीय सेवाओं में नौजवानों को 30 लाख सरकारी नौकरियों के अलावा 1 वर्ष की अप्रेंटिसशिप का भी प्रोग्राम इसमें है। अप्रेंटिसशिप के दौरान एक लाख रुपये नौजवानों को दिए जाएंगे। इसी तरह प्रत्येक गरीब परिवार की एक महिला को प्रतिवर्ष एक लाख रुपया बैंक खाते में ट्रांसफर करने की गारंटी दी गई है। महत्वपूर्ण यह है कि ये योजनाएं व्यावहारिक हैं। ये वादे 15 लाख खाते में आने और 2 करोड़ प्रति वर्ष रोजगार देने की तरह जुमले नहीं हैं।
बहरहाल, जिस दिन कांग्रेस का यह घोषणा पत्र आया, भाजपा के खेमे में बेचैनी बढ़ गई। अभी यह घोषणा पत्र लोगों के सामने ठीक से आया भी नहीं था कि नरेंद्र मोदी ने इस पर सांप्रदायिक हमला बोल दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के घोषणा पत्र पर मुस्लिम लीग की छाप है। इतना सुनते ही कांग्रेस के समर्थकों ने ही नहीं, भाजपा के समर्थकों और नौजवानों ने भी इसे पढ़ा। इससे कांग्रेस को नुकसान होने के बजाय उल्टा उसके घोषणा पत्र का प्रचार हो गया। रातों-रात नौजवानों, किसानों, दलितों, पिछड़ों तक यह घोषणा पत्र पहुंच गया। इससे कांग्रेस के जनाधार में इजाफा हुआ। जो कांग्रेस उत्तर भारत में चुनाव मैदान में ठहरी हुई नजर आ रही थी, घोषणा पत्र आने के बाद उसकी सक्रियता और चर्चा बढ़ गई। जो मीडिया कांग्रेस को दरकिनार कर रही थी, मोदी के हमले के बाद उसके घोषणापत्र पर चर्चा करने लगी।
विश्व असमानता रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद राहुल गांधी ने मोदी राज पर हमला बोलते हुए कहा कि वे सरकार में आएंगे तो संपत्ति और संसाधनों का भी सर्वे करेंगे। राहुल गांधी जातीय जनगणना कराने और आरक्षण की सीमा की बढ़ाने की बात तो पहले ही कह चुके हैं। निजी क्षेत्रों और उच्च न्यायालयों में भी आरक्षण लागू करने का वादा कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में किया है। लेकिन जैसे ही संसाधनों के एक्सरे की बात राहुल गांधी ने की, मोदी ने लोगों को डराना शुरू कर दिया। मोदी ने कहा कि कांग्रेस गरीबों की संपत्ति लेकर मुसलमानों में बांट देगी। इसके लिए साजिशन पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को उद्धृत करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा कि उन्होंने तो पहले ही कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। जबकि मनमोहन सिंह ने सभी पिछड़े समुदायों के आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिए कहा था कि दलित, आदिवासी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों को देश के संसाधनों में प्राथमिकता देनी होगी। जो बात मनमोहन सिंह ने कही थी, उसकी आज और भी ज्यादा जरूरत है, क्योंकि असमानता की खाई पहले से बहुत ज्यादा बढ़ गई है। इसे छुपाने के लिए नरेंद्र मोदी ने महिलाओं को डराया कि वे आपके मंगलसूत्र भी नहीं छोड़ेंगे। मुसलमान और मंगलसूत्र के जरिये मोदी चुनाव में ध्रुवीकरण का प्रयास ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि इस सच पर पर्दा डाल रहे हैं कि देश के एक फीसदी लोगों का 40 फीसदी संपत्ति पर कब्जा है और 81 करोड़ लोग मुफ्त राशन पर जी रहे हैं।
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)
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