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पीडिया में फर्जी मुठभेड़ मामले पर पर्दा डाल रही सरकार : पीयूसीएल की रिपोर्ट

जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि छत्तीसगढ़ पुलिस के अधिकारियों के बयान से ही स्पष्ट हो जाता है कि यह मुठभेड़ की पूरी तरह से झूठी और मनगढ़ंत कहानी है, क्योंकि कथित मुठभेड़ में मृत घोषित किए गए कई लोगों की पहचान गलत तरीके से की गई है। पढ़ें, यह खबर

गत 10 मई को छत्तीसगढ़ के बीजापुर के पीडिया में पुलिस द्वारा आदिवासी समुदाय के 11 लोग मारे गए। पुलिस के मुताबिक सभी मृतक नक्सली थे। हालांकि इसके बाद बोगडा में ड्रोन तथा हवाई फायरिंग के इस्तेमाल से दो बच्चों की मौत हो गई। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की प्रदेश इकाई ने इन दोनों मामलों की जांच के लिए पांच सदस्यीय तथ्यान्वेषी दल का गठन किया। इस दल ने गत 15 से 17 मई के बीच मौका-ए-वारदात पर जाकर जांच किया। इस दौरान यह दल गंगालूर थाना के पीडिया गांव तथा बेहरामगढ़ तहसील के बोडगा गांव भी गया। इस दल का नेतृत्व प्रसिद्ध सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ता सोनी सोरी ने किया। उनके इस दल में रिनचिन, हिडमे मड़काम, सुकालू कोठारी और वीरेंद्र भारद्वाज शामिल रहे। इस दल ने अपनी रिपोर्ट में आरोप लगाया है कि पुलिस ने पीडिया में 11 लोगों की न्यायेतर हत्याएं की।

इसके पहले 10 मई को पुलिस ने दावा किया था कि बीजापुर जिले के गंगालूर थाना के पीडिया गांव में नक्सलियों और पुलिस-अर्द्धसैनिक बलों की एक सर्च ऑपरेशन टीम के बीच कथित मुठभेड़ हुई, जिसमें 11 कथित नक्सली मारे गए। लेकिन पीयूसीएल की रिपोर्ट में कहा गया है कि कथित मुठभेड़ स्थल का दौरा करने और प्रभावित गांवों और मारे गए लोगों के परिवार के सदस्यों से मिलने पर, ग्रामीणों ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह किसी भी तरह से मुठभेड़ नहीं थी, जैसा कि पुलिस ने दावा किया है, बल्कि वास्तव में सुरक्षा बलों द्वारा न्यायेतर हत्या का एक स्पष्ट मामला है, जहां अपने दैनिक कार्यों में लगे ग्रामीणों को पुलिस ने घेर लिया। उनका पीछा किया और गोली मार दी। गोलीबारी की आवाज सुनकर दो गांवों के लोग आस-पास के जंगलों में शरण लेने के लिए भाग गए। उनमें से कुछ लोग सुरक्षा के लिए पेड़ों पर चढ़ गए थे, जिन्हें पुलिस ने ढूंढ लिया और उन्हें घेर लिया। उनके और अन्य ग्रामीणों की कई विनती के बावजूद – जो सभी गांव में अपने दैनिक कार्य (तेंदू पत्ता तोड़ रहे थे) कर रहे थे, और निहत्थे थे – पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के जवानों ने गोलियां चलाईं और उन्हें मार डाला। 

टीम ने कथित मुठभेड़ स्थल का दौरा किया और फोटोग्राफिक साक्ष्य एकत्र किए, जिसमें पेड़ों पर गोलियों के निशान इस तरह से दिखाई देते हैं और स्पष्ट रूप से संकेत देते हैं कि गोलीबारी केवल एक तरफ से हुई थी। किसी भी तरह की क्रॉस-फायरिंग का कोई सबूत मौका-ए-वारदात पर नहीं मिला और यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि यह कोई लंबी मुठभेड़ नहीं थी जैसा कि पुलिस दावा करती है। एक ग्रामीण ने टीम को एक रिकॉर्डेड बयान भी दिया है कि गोलीबारी के बीच में वह एक पेड़ के पीछे से निकलकर आया और पुलिस से विनती की कि वे सभी ग्रामीण हैं और निहत्थे हैं और उसने पुलिस से गोली न चलाने का अनुरोध किया। इस पर पुलिस ने ध्यान नहीं दिया और गोलीबारी जारी रखी। पीयूसीएल के जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यह एक बहुत ही चिंताजनक तथ्य है कि पुलिस द्वारा मारे गए कई लोग 18-20 की उम्र के नौजवान थे। जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि मृतकों में कुछ अवयस्क किशोर हो सकते हैं।

घटनास्थल पर टीम को पुलिस की गोलीबारी में घायल हुए एक लड़के के कपड़े मिले, जो इस समय अस्पताल में है। रिपोर्ट के मुताबिक जहां वह नहा रहा था, उसके कपड़े वहीं पड़े थे। जांच दल ने सवाल उठाया है कि उसे अस्पताल ले जाते समय कौन से कपड़े पहनाए गए थे? मृतकों में से एक युवती सुनीता कुंजाम एक पेड़ पर चढ़ गई थी और उसे भी वहीं गोली मार दी गई।

पीडिया गांव के लोगों के बीच सोनी सोरी व जांच दल के अन्य सदस्य

रिपोर्ट के मुताबिक, प्रत्यक्षदर्शियों ने बार-बार जोर देकर कहा कि लोगों ने पुलिस से कई बार चिल्लाकर कहा कि वे निहत्थे हैं और गोलीबारी बंद करें। लेकिन उनकी एक भी नहीं सुनी गई। ग्रामीणों ने यह भी बताया कि पुलिस ने कई घरों में घुसकर तोड़फोड़ की और कई महिलाओं के साथ मारपीट की।

जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि पुलिस के अधिकारियों के बयान से ही स्पष्ट हो जाता है कि यह मुठभेड़ की पूरी तरह से झूठी और मनगढ़ंत कहानी है, क्योंकि कथित मुठभेड़ में मृत घोषित किए गए कई लोगों की पहचान गलत तरीके से की गई है। जिन लोगों के मारे जाने का दावा किया गया है और जिन्हें इनामी नक्सली (जिसकी गिरफ्तारी के लिए इनाम रखा गया था) बताया गया है, उनमें से एक व्यक्ति वर्तमान में जेल में बंद है। इसके अलावा रिपोर्ट बताती है कि पुलिस के बयान में कई शवों के नाम भी गलत बताए गए हैं। गलत जानकारी और गलत पहचान वाला ऐसा बयान स्पष्ट रूप से इस बात का संकेत देता है कि घटना को छिपाने के लिए पुलिस ने जल्दबाजी में पूरी कहानी गढ़ी है।

पीयूसीएल के जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि एक छोटा लड़का जिसके पैर में दो गोलियां लगी थीं, वह जीवित था और जब टीम ने दौरा किया, तब वह गांव में ही था। उसे चिकित्सा की आवश्यकता है, लेकिन वह इलाज के लिए अस्पताल नहीं जा सका। बाद में स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों की पहल पर लड़के को अस्पताल ले जाया गया और वह इलाजरत है।

हालांकि रिपोर्ट में यह उद्धृत किया गया है कि सीपीआई (माओवादी) ने भी एक बयान जारी किया है, जिसमें पुष्टि की गई है कि मारे गए 11 लोगों में से 2 पार्टी से जुड़े थे, हालांकि वे बीमार हो गए थे और बीमारी से उबरने के लिए गांव में अपने रिश्तेदारों से मिलने गए थे और वे वास्तव में निहत्थे थे। इसे देखते हुए, पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार करना संभव था। इसके बजाय उन्हें मार दिया गया। शेष मृतक अपने दैनिक कार्यों में लगे हुए थे। मुख्य रूप से तेंदू पत्ता संग्रह, क्योंकि यह तेंदू पत्ता संग्रह का सीजन है।

रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीणों ने मृतकों के शवों को दफनाया है, लेकिन उनका पारंपरिक तरीके से अंतिम संस्कार नहीं किया है, क्योंकि ग्रामीण इस बात पर अड़े हुए हैं कि जब तक उन्हें न्याय नहीं मिल जाता तब तक वे मृतकों का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे।

पीयूसीएल की रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस ने एक प्रेस नोट भी जारी किया, जिसमें मारे गए लोगों को इनामी नक्सली बताया गया और कुछ 12 बोर की राइफलें दिखाई गईं, जो उनके अनुसार ‘मुठभेड़ स्थल’ से बरामद की गई थीं। पुलिस ने लगभग 100 ग्रामीणों को हिरासत में लिया है। स्थानीय लोग और उनके परिजनों को उनके बारे में कोई जानकारी नहीं दी जा रही है।

हवाई फायरिंग के बिना विस्फोट वाले मोर्टार के विस्फोट के कारण दो बच्चों की मौत

12 मई, 2024 को बीजापुर जिले के बोडगा गांव के 9 और 12 साल के दो बच्चे, लछमन और बोटी ओयम, एक विस्फोट में मारे गए, जब उन्होंने अनजाने में मिट्टी में दबा हुआ एक बिना फटा मोर्टार शेल उठा लिया। बच्चे तेंदू पत्ता व्यापारी के साथ पत्तों के बंडलों को सुखाने में मदद कर रहे थे। दोपहर का खाना खाने के बाद वे खेतों की ओर लौट रहे थे, जहां तेंदू पत्ता सूख रहा था। उन्हें अचानक मिट्टी में धंसा एक बम मिला, जिसे उन्होंने उत्सुकता में निकाल लिया और यह प्राणघातक घटना घटित हुई। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि बस्तियों के इतने नजदीक गोलीबारी कैसे हो रही है। सामाजिक कार्यकर्ता के आग्रह पर ही शवों को पोस्टमार्टम के लिए बैरमगढ़ भेजा गया और जिला कलेक्टर ने परिवारों से मुलाकात की, हालांकि परिवार के सदस्यों ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सुरक्षा बलों की गोलीबारी से छोड़े गए मोर्टार के गोले के कारण बच्चों की मौत हुई है।

इस संबंध में पुलिस और प्रशासन ने एक प्रेस नोट जारी किया, जिसमें दावा किया गया कि नक्सलियों द्वारा लगाए गए आईईडी के कारण बच्चों की मौत हुई है। परिवारों को अंतिम संस्कार आदि के लिए आपातकालीन मुआवजे के रूप में पच्चीस-पच्चीस हजार रुपए दिए गए और उनसे कहा गया कि यदि वे इच्छुक हों तो वे प्रत्येक बच्चे के लिए 5 लाख रुपए “नक्सल पीड़ित” के रूप में मांग सकते हैं। लेकिन इसके लिए उन्हें स्वीकार करना होगा कि बच्चों की मौत नक्सलियों द्वारा लगाए गए आईईडी के कारण हुई है। यह गांव का दौरा किए बिना या यहां तक कि परिवार के सदस्यों के बयान पर विचार किए बिना किया गया था। घटना को छिपाने का स्पष्ट प्रयास था।

बहरहाल, पीयूसीएल की प्रदेश इकाई द्वारा गठित जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में मांग की है कि दोनों घटनाओं की स्वतंत्र उच्च स्तरीय न्यायिक जांच की जाए। इसके अलावा पीडिया मामले में सुरक्षा बलों द्वारा की गई गोलीबारी के पीड़ितों के परिवारों की शिकायतों को पुलिस द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए और सुरक्षा बलों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए। साथ ही यह मांग भी की गई है कि पीडिया में मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा दिया जाना चाहिए तथा हिरासत में लिए गए लोगों व अस्पताल में भर्ती घायलों (पुलिस की हिरासत में) को रिहा किया जाना चाहिए, क्योंकि परिवार के सदस्यों को डर है कि उन्हें भी झूठे आरोपों के तहत गिरफ्तार किया जाएगा। वहीं बोडगा में हुई घटना के संबंध में जांच दल की मांग है कि नागरिक बस्तियों में हवाई हथियारों के इस्तेमाल की स्वतंत्र जांच की जानी चाहिए जो कानून का उल्लंघन है। और कानून का स्पष्ट उल्लंघन करते हुए अपने ही लोगों के खिलाफ इन हथियारों के इस्तेमाल को तत्काल रोका जाना चाहिए। साथ ही, प्रशासन को इस घटना की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि क्षेत्र में ऐसे किसी भी बचे हुए बम को हटा दिया जाए, ताकि उनकी लापरवाही के कारण ऐसी घटना फिर न हो। इसके अलावा मृतक बच्चों के परिवारों को मुआवजा दिया जाना चाहिए क्योंकि उनकी मौत के लिए सरकार जिम्मेदार है और इसे नक्सल और आईईडी का जामा पहना कर सच्चाई को ना छिपाया जाए।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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