केंद्र सरकार ने बेशक महिला आरक्षण बिल को पारित करवा दिया है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वह 2029 से या फिर उसके बाद लागू होगा। लेकिन यह कानून अधूरा है, क्योंकि इसमें कोटा के तहत कोटा की बात नहीं कही गई है। वर्तमान प्रावधान के अनुसार 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी, लेकिन इसमें दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्ग की महिलाओं की क्या हिस्सेदारी होगी, यह तय नहीं है। यदि जातिगत जनगणना हो तो देश में इन वर्गों की महिलाओं की स्थिति भी सामने आएगी और यह तो तय है कि मौजूदा स्वरूप में महिला आरक्षण का लाभ किन समुदायों/वर्गों की महिलाओं को मिलेगा। ये बातें नई दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब के डिप्टी स्पीकर सभागार में भूतपूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की 93वीं जयंती के मौके पर आयोजित समाराेह में प्रो. शेफालिका शेखर ने अपने संबोधन में कही। इस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. कांचा आइलैय्या शेपर्ड, बांका (बिहार) से जदयू के लोकसभा सांसद गिरिधारी यादव, राज्यसभा सांसद पी. विल्सन (ऑनलाइन तरीके से) आदि ने संबोधित किया।
अपने संबोधन में प्रो. शेफालिका शेखर ने इस मांग को रखा कि भारत सरकार विश्वनाथ प्रताप सिंह को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ सम्मान दे, क्योंकि उन्होंने 11 महीने के अपने प्रधानमंत्रित्व काल में मंडल कमीशन को लागू कर देश के बहुसंख्यक वर्ग को उनका वाजिब हक दिया। उन्हाेंने इसके लिए हस्ताक्षर अभियान चलाने का आह्वान किया।
प्रो. शेखर की इस मांग का समर्थन करते हुए मुख्य वक्ता प्रो. कांचा आइलैय्या शेपर्ड ने अपने संबोधन में कहा कि भारतीय इतिहास में वीपी सिंह एकमात्र ऐसे क्षत्रिय हुए, जिन्होंने अपने जातिगत सीमाओं से परे जाकर इस देश के ओबीसी वर्ग के लोगों को वह अधिकार दिया, जो उन्हें 1950 के दशक में ही मिल जाना चाहिए था। उन्होंने वीपी सिंह के इस योगदान की भी चर्चा की कि उन्होंने ही बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति रहे नेल्सन मंडेला को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। उन्होंने भारत सरकार पर आरएसएस की विचारधारा व मनु का विधान विश्वविद्यालयों में थोपे जाने की बात कही।
अपने संबोधन में बांका के सांसद गिरिधारी यादव ने कहा कि यह बात दलगत सीमाओं से उपर उठकर कहे जाने की जरूरत है कि आज देश में जातिगत जनगणना की अनिवार्यता है। जबतक जातिगत जनगणना नहीं कराया जाएगा, न तो इस देश के बहुसंख्यक वर्गों के लिए नीतियां बनाई जाएंगीं और न ही शासन-प्रशासन में उनकी समुचित भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी। उन्होंने पेपरलीक का सवाल उठाते हुए कहा कि आज देश में शिक्षा व्यवस्था के नाम पर जिस तरह की लूट मची है, उसका सबसे अधिक शिकार दलित, आदिवासी और पिछड़े समुदायों के युवा हो रहे हैं, जो गरीबी में भी किसी तरह पढ़-लिखकर डाक्टर, इंजीनियर बनने का सपना देखते हैं।
जयंती समारोह को ऑल इंडिया ओबीसी इंप्लायज वेलफेयर एसोसिएशन के राष्ट्रीय महासचिव जी. करुणानिधि ने पटना हाई कोर्ट द्वारा बिहार में एससी, एसटी और ओबीसी का आरक्षण 50 फीसदी से 65 फीसदी किए जाने संबंधी राज्य सरकार के निर्णय पर रोक लगाए जाने का उल्लेख करते हुए कहा कि न्यायालय के न्यायादेश में कोई नया तर्क नहीं है। न्यायालय ने इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार मामले को आधार बनाकर राज्य सरकार के आदेश को लागू करने से रोक दिया है। जबकि ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों) को दस फीसदी आरक्षण देने के समय सुप्रीम कोर्ट तक ने इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार के मामले में दिए गए अपने ही आदेश को दरकिनार किया। जी. करुणानिधि ने कहा कि यह समय दलितों, ओबीसी और आदिवासियों को एक साथ मिलकर संघर्ष करने का है, तभी हम वीपी सिंह के सपनों का भारत बना सकेंगे।
समारोह को पी. विल्सन ने भी ऑनलाइन संबोधित किया, जिसे तकनीकी कारणों से सुना नहीं जा सका। अन्य वक्ताओं में ट्रूथसीकर इंटरनेशनल के संस्थापक निदेशक सुनील सरदार, पत्रकार सुमित चौहान, सामाजिक कार्यकर्ता पलटन यादव, ओबीसी महासभा के सदस्य धर्मेंद्र कुशवाहा, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ द्रविड़ियंस के सदस्य कायाल्वीझ्वी जे, और सामाजिक कार्यकर्ता उमेश यादव आदि शामिल रहे। समारोह का संचालन प्रो. अरविंद कुमार ने किया।
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)
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